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एलोपैथी तथा आयुर्वेद

Lokesh Pal April 08, 2024 05:00 138 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एलोपैथिक दवाओं के अन्दर्भ में, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक एवं आयुष के बारे में।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पारंपरिक दवाओं और एलोपैथी से जुड़े मुद्दे।

संदर्भ:

वर्ष 2022 के दौरान इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पतंजलि के संस्थापक बाबा रामदेव के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिन्होंने एलोपैथी के खिलाफ बयान देकर लोगों के मध्य नकारात्मक धारणा पैदा कर दी थी।

परिचय:

  • एलोपैथी के ख़िलाफ़ बयान: बाबा रामदेव ने दावा किया है कि एलोपैथी एक “मूर्खतापूर्ण विज्ञान” है और इसके इस्तेमाल की वजह से लाखों लोगों की मृत्यु हो रही है।
  • SC Action: उच्चतम न्यायालय (SC) ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाया जिसकी वजह से बाबा रामदेव को कोर्ट में माफी माँगनी पड़ी।

एलोपैथी के बारे में:

  • शब्द की उत्पत्ति: “एलोपैथी” शब्द 1810 के दौरान होम्योपैथी के संस्थापक सैमुअल हैनीमैन द्वारा गढ़ा गया था।
  • टकराव: भारत में आयुर्वेद और एलोपैथी के मध्य टकराव की स्थिति की शुरुआत 16वीं शताब्दी के दौरान हुई थी।
  • भारत में एलोपैथी: पुर्तगाली जहाज कई एलोपैथिक डॉक्टरों को भारत लाए। एलोपैथिक के डॉक्टरों द्वारा चेचक का सफलतापूर्वक इलाज किए जाने के उपरान्त आयुर्वेद और एलोपैथी के मध्य वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई।
  • भारत में एलोपैथी की वर्तमान स्थिति:
    • डॉक्टरों की संख्या: भारत में 12 लाख से अधिक एलोपैथिक डॉक्टर हैं, जिनमें से कई विदेश में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
    • एक रिपोर्ट के अनुसार एलोपैथी भारत में प्रत्येक वर्ष तकरीबन 20 लाख लोगों के जीवन की रक्षा कर रही है।

एलोपैथी की कमियाँ:

  • समाधानों का अभाव: आधुनिक चिकित्सा में सुधार के बावजूद, एलोपैथी में अभी भी कई दुष्प्रभावों और बीमारियों के समाधान का अभाव है।
  • उच्च लागत: एलोपैथी के साथ सबसे बड़ी समस्या दवा कंपनियों द्वारा अधिक शुल्क लेना है, भारत जैसे देशों में इसे अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है।
  • एलोपैथी से बदलाव: एलोपैथी में व्याप्त कमियों ने लोगों को आयुर्वेद और योग जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की ओर लोगों को आकर्षित किया है।
  • चिकित्सा लापरवाही: WHO की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में तकरीबन 26 लाख लोगों की मृत्यु चिकित्सा संबंधी गलतियों की वजह से हो जाती है।

पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का उदय:

  • एलोपैथी की कमियाँ: एलोपैथी ने आयुर्वेद और अन्य वैकल्पिक दवाओं को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बना दिया है खासकर COVID-19 महामारी के बाद से ।
  • वैकल्पिक चिकित्सा की माँग: जब मरीजों  के लिए एलोपैथिक डॉक्टरों और बिस्तर की कमी हो जाती है तो इस वजह से भी वैकल्पिक चिकित्सा की माँग में वृद्धि हो जाती है।

पारंपरिक चिकित्सा से संबंधित चिंताएँ

  • ज्ञान की कमी: पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का सबसे बड़ा दावा यह है कि इन दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है, जो कि एक मिथक है।
    • भारत में किए गए एक शोध में पाया गया है कि वैकल्पिक दवाओं में अधिक मात्रा में भारी धातुएँ होती हैं, जिसकी वजह से लोगों में कैंसर की समस्या का पता चलता है।
    • उदाहरण के तौर पर हाल ही में अहमदाबाद में आयुर्वेदिक सिरप पीने से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई।
  • पारंपरिक दवाओं को मान्यता न देना: संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश पारंपरिक चिकित्सा को मान्यता नहीं देते हैं और इसे केवल भोजन की खुराक के रूप में वर्गीकृत करते हैं।
  • अनुसंधान का अभाव: पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में उनकी प्रभावकारिता के मजबूत करने के लिए जरुरी अनुसंधान और नैदानिक ​​प्रमाण का अभाव है।
  • मानकीकरण का अभाव: पारंपरिक चिकित्सा में मानकीकरण का अभाव है, जिसका अर्थ है कि किसी विशेष प्रकार की बिमारी के इलाज में कोई एकरूपता नहीं है।
    • हालाँकि, एलोपैथी में प्रत्येक बीमारी के इलाज के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) होती है।
  • पारंपरिक दवाओं का व्यावसायीकरण: जहाँ एलोपैथी की इसकी व्यावसायिक प्रकृति के लिए आलोचना की जाती है, वहीं यही समस्या अब पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में भी देखी जा रही है।
    • उदाहरण: बड़ी आयुर्वेदिक दवा कंपनियाँ खराब शोध के बावजूद भारी रकम वसूलती हैं।
    • ऐसे घोटाले देखे गए हैं जहां कैंसर रोगियों को बिना किसी सिद्ध प्रभावशीलता के महंगी आयुर्वेदिक दवाएं बेची जाती हैं। 
  • भ्रामक विज्ञापन: इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय ने पतंजलि और सरकार को फटकार लगाई है, उदाहरण के लिए विज्ञापनों में बीपी और मधुमेह जैसी जानलेवा बीमारियों के इलाज के बारे में फर्जी दावे किए जाते हैं, 
    • ध्यातव्य है कि इन बीमारियों को सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है, ठीक नहीं ।
    • दवाओं के बारे में भ्रामक दावे करना ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ [आपत्तिजनक विज्ञापन] अधिनियम, 1954 और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक अधिनियम, 1945 के तहत एक आपराधिक कृत्य है।
  • सरकार की विफलता: हालाँकि, सरकार ने कड़ी कार्रवाई नहीं की है, जिससे झूठे विज्ञापन के मामलों में वृद्धि हुई है।
    • आयुष मंत्रालय के अनुसार, झूठे विज्ञापन के मामले 2018 में 411 से बढ़कर 2022 में 25,657 हो गए हैं।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः सरकार को भ्रामक दावों के मुद्दे को सख्ती से निपटाना चाहिए। पारंपरिक चिकित्सा और एलोपैथी को एक-दूसरे का विरोध करने के बजाय एक-दूसरे का पूरक बनना चाहिए, जिससे स्वस्थ भारत की प्रगति सुनिश्चित हो सके।

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