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ANRF योजना

Lokesh Pal July 08, 2024 05:45 104 0

संदर्भ:

भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान का मार्गदर्शन करने के लिए स्थापित अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF) में भारतीय उद्योग और राज्य विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व नहीं है, जबकि पहले यह प्रावधान किया गया था कि ये संस्थाएँ फाउंडेशन की संरचना और लाभों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: ANRF, NRF बजट, गवर्निंग बोर्ड और कार्यकारी परिषद, NRF की समस्याएँ आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: ANRF, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की आवश्यकता, समस्याएँ , NRF बजट, आगे की राह आदि।

NRF बजट :

इसमें पाँच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है, जिसमें से 36,000 करोड़ रुपये अर्थात  70% से अधिक, गैर-सरकारी स्रोतों, उद्योग और परोपकारियों, घरेलू और बाहरी स्रोतों से आने का अनुमान है।

गवर्निंग बोर्ड और कार्यकारी परिषद:

  • हाल ही में, इसने 15-सदस्यीय शासी बोर्ड और 16-सदस्यीय कार्यकारी परिषद की घोषणा की है
  • गवर्निंग बोर्ड के अध्यक्ष: गवर्निंग बोर्ड की अध्यक्षता प्रधानमंत्री  करते हैं
  • उपाध्यक्ष: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा शिक्षा मंत्री

राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की आवश्यकता:

  • अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण में वृद्धि:  अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल व्यय (GERD) सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.7 %पर स्थिर रहा, जो वैश्विक बेंचमार्क के 2% की तुलना में कम है।
  • उद्योग-अकादमिक सहयोग को मजबूत करना।
  • राज्य विश्वविद्यालय में अनुसंधान प्रकोष्ठों का विकास करना।

समस्याएँ:

  • प्रतिनिधित्व संतुलन का अभाव: भारत में 95% से अधिक छात्र राज्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ते हैं, बोर्ड और कार्यकारी परिषद में केंद्रीय या राज्य विश्वविद्यालयों या कॉलेजों का कोई सदस्य नहीं है
    • प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के अलावा, उनका प्रतिनिधित्व उन लोगों द्वारा किया जाता है जो आमतौर पर भारत सरकार की किसी उच्चस्तरीय समिति में होते हैं – सभी विज्ञान विभागों (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (DSIR) आदि के सचिव।
  • उद्योग जगत के प्रतिनिधित्व का अभाव: वर्तमान 15 सदस्यीय गवर्निंग बोर्ड में केवल एक उद्योगपति, रोमेश वाधवानी शामिल हैं, जो भारतीय मूल के अमेरिकी अरबपति हैं।
  • व्यवस्था नौकरशाही बाधा से मुक्त नहीं है।
  • निजी क्षेत्र का कम निवेश: 2019-20 में भारत के अनुसंधान व्यय (लगभग 1.2 लाख करोड़) का केवल 36% निजी क्षेत्र से आया।
    • भारत का अनुसंधान एवं विकास पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 0.6% है।
    • चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका में निजी क्षेत्र ने अनुसंधान व्यय में तकरीबन 70% का योगदान दिया है।
  • राज्य विश्वविद्यालयों का अभाव:
    • इसमें केवल भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) और टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR) का ही प्रतिनिधित्व है।

आगे की राह :

  • कर्मचरियों की पर्याप्त संख्या।
  • एक मजबूत अनुदान प्रबंधन प्रणाली का गठन।
  • समीक्षकों के लिए प्रोत्साहन के साथ एक आंतरिक मानक सहकर्मी-समीक्षा प्रणाली की व्यवस्था
  • आवेदन और निधि वितरण के बीच त्वरित टर्न-अराउंड समय (छह महीने से कम) के साथ अनुसंधान अनुदान और छात्र फेलोशिप का समय पर वितरण सुनिश्चित करना।
  • वित्त पोषण निकाय और अनुदान प्राप्त करने वाली संस्थाओं दोनों में नौकरशाही बाधाओं से मुक्त प्रणाली की स्थापना।
  • सरकार के कड़े सामान्य वित्तीय नियमों (GFR) का पालन किए बिना धन खर्च करने में लचीलापन प्रदान करना
  • सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) पोर्टल से गुजरे बिना व्यय/खरीदारी की अनुमति ।
  • ANRF को किसी भी अन्य मौजूदा सरकारी विज्ञान विभाग से अलग तरीके से काम करना चाहिए : इसमें विश्वविद्यालय प्रणाली से कार्यरत प्राकृतिक और सामाजिक वैज्ञानिकों का अधिक विविध प्रतिनिधित्व होना चाहिए, तथा इस समिति में अधिक संख्या में महिलाएँ और युवा उद्यमी शामिल होने चाहिए। 
  • विषय में विशेषज्ञता: मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पास उद्योग और शिक्षा दोनों की पृष्ठभूमि होनी चाहिए, और वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो ANRF के लिए धन जुटा सके और वैश्विक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को समझ सके। 
  • ANRF के पूर्ण पुनर्गठन की आवश्यकता है, अन्य सरकारी विभागों जैसा बनने से बचाने तथा हमारे विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और शिक्षण के बीच सेतु का काम करने के लिए। 
  • एकल समिति का गठन: ANRF को कई समितियों के होने से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से बचना होगा। इसलिए, जमीनी स्तर पर रणनीति बनाने और उसे लागू करने के लिए एकल समिति का निर्माण करना आवयश्क है।

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