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तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति : एक व्यवहार्य साधन

Lokesh Pal February 14, 2025 05:15 54 0

संदर्भ:

30 जनवरी, 2025 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों में अधिक संख्या में लंबित  मामलों के निपटान के लिए एक आदेश जारी किया।

मुख्य बिंदु

  • पूर्व नियमों का समापन: न्यायालय ने पूर्व नियमों को समाप्त कर दिया है, कि तदर्थ नियुक्तियाँ केवल तभी की जा सकती हैं जब रिक्तियाँ स्वीकृत संख्या के 20% से अधिक हों। यह समायोजन तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति में अधिक लचीलापन प्रदान करता है। 
  • तदर्थ न्यायाधीशों की सीमा: प्रत्येक उच्च न्यायालय दो से पाँच तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है, जिनकी कुल संख्या न्यायालय की स्वीकृत संख्या के 1% से अधिक नहीं होनी चाहिए। 
  • कार्य-सीमा: तदर्थ न्यायाधीश मुख्य रूप से आपराधिक अपीलों की सुनवाई पर ध्यान केंद्रित करेंगे और बेंच पर बैठे न्यायाधीशों के साथ बैठेंगे।

तदर्थ न्यायाधीश वे होते हैं, जिन्हें अस्थायी रूप से या विशेष उद्देश्यों के लिए नियुक्त किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 224A में उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति का उल्लेख है। उदाहरण के लिए, किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अधिक संख्या में लंबित मामलों के निपटान के लिए उच्च न्यायालय में तदर्थ आधार पर नियुक्त किया जा सकता है।

न्यायपालिका में तदर्थ न्यायाधीशों की आवश्यकता में वृद्धि

  • लंबित मामलों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ रही है, जनवरी 2025 तक उच्च न्यायालयों में लगभग 62 लाख मामले लंबित हैं। न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ के कारण न्याय में देरी होती है।
  • न्यायिक पदों पर रिक्तियों की संख्या भी अधिक है, कुल 1,122 स्वीकृत पदों में से 367 पद वर्तमान में रिक्त हैं।
  • नियमित न्यायाधीशों पर अत्यधिक बोझ है, जिससे मामलों को कुशलतापूर्वक निपटाने की उनकी क्षमता प्रभावित हो रही है।
  • विचाराधीन कैदी लंबे समय तक जेल में रहते हैं और उनके मामलों का समाधान नहीं हो पाता।
  • न्याय में देरी और अक्षमताओं के कारण न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कम होता जा रहा है।

नियुक्ति संबंधी चुनौतियाँ

  • लोक प्रहरी मामला: 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने लोक प्रहरी मामले में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति का समर्थन किया। न्यायालय ने सिफारिश की, कि उच्च न्यायालय तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम को प्रस्ताव भेजें, जो फिर अंतिम नियुक्तियों के लिए राष्ट्रपति को सिफारिशें भेजेगा।
    • नियुक्ति: हालाँकि, अभी तक कुछ ही नियुक्तियाँ की गई हैं।
    • समाधान: मुख्य न्यायाधीशों को इस समाधान को लागू करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए | इस पहल के सुचारू एवं प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सरकारी सहायता आवश्यक है।
  • बुनियादी ढाँचे और संसाधन समस्या: कई न्यायालय अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा विकास की समस्या का सामना करते हैं, जो तदर्थ न्यायाधीशों को कुशलतापूर्वक समायोजित करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है। 
    • सहायक कर्मचारियों की आवश्यकता: न्यायालयों के प्रभावी कामकाज में सहायता करने के लिए स्टेनोग्राफर और क्लर्क जैसे आवश्यक सहायक कर्मचारियों की कमी है। 
    • खाली कमरों में संशोधन: जबकि उच्च न्यायालयों में खाली कमरे हो सकते हैं, उन्हें उपयुक्त बनाने के लिए अक्सर विशेष संशोधनों की आवश्यकता होती है। 
    • समाधान: सरकार को इन बुनियादी ढाँचे और संसाधन अंतराल को दूर करने के लिए पर्याप्त बजट आवंटित करना चाहिए, जिससे तदर्थ न्यायाधीशों की सुचारू नियुक्ति और कामकाज सुनिश्चित हो सके। 
  • सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति में चुनौतियाँ: सेवानिवृत्त न्यायाधीश मध्यस्थता भूमिकाएँ लेने हेतु अधिक इच्छुक हो सकते हैं, क्योंकि ये अक्सर बेहतर वित्तीय मुआवज़ा प्रदान करते हैं। 
    • न्यायाधिकरणों का संघर्ष: सरकार को न्यायाधिकरणों के लिए न्यायाधीशों को नियुक्त  करने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जो न्यायिक पारिस्थितिकी तंत्र में विद्यमान अन्य चुनौतियों को उजागर करता है। 
    • वरिष्ठ अधिवक्ता: वरिष्ठ अधिवक्ता वित्तीय लाभों की कमी के कारण तदर्थ न्यायाधीश की भूमिकाएँ लेने में अनिच्छुक हो सकते हैं। 
    • समाधान: अनुभवी न्यायाधीशों को आकर्षित करने के लिए, उचित प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, जो तदर्थ पदों को अधिक आकर्षक बनाते हैं।

तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति

  • एमओपी: तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया 1998 के प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में उल्लिखित है, जिसे कॉलेजियम प्रणाली के निर्माण के बाद स्थापित किया गया था।
    • एमओपी के अनुसार, एक बार जब कोई सेवानिवृत्त न्यायाधीश नियुक्ति के लिए सहमत हो जाता है, तो मुख्य न्यायाधीश को न्यायाधीश का नाम और नियुक्ति का विवरण राज्य के मुख्यमंत्री को भेजना चाहिए।
    • इसके बाद मुख्यमंत्री केंद्रीय कानून मंत्री को सिफारिश भेजते हैं, जो प्रधानमंत्री को भेजने से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श करते हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सलाह देते हैं, कि नियुक्ति को मंजूरी दी जाए या नहीं।
  • लोक प्रहरी मामला/कॉलेजियम: हालाँकि, 2021 के लोक प्रहरी बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सिफारिश को सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम के माध्यम से जाना चाहिए, जिसमें CJI और दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल हैं।

न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रभाव

  • न्यायिक स्वतंत्रता एक मानसिकता के रूप में: न्यायिक स्वतंत्रता मूल रूप से एक मानसिकता  है, जिसका मुख्य उद्देश्य निर्णय लेने में निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।
  • तदर्थ न्यायाधीशों का सावधानीपूर्वक चयन: न्यायपालिका की अखंडता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए तदर्थ न्यायाधीशों को सावधानीपूर्वक चुना जाना चाहिए।
    • निष्पक्षता सुनिश्चित करना: एक कठोर चयन प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है, कि तदर्थ न्यायाधीश अपने निर्णयों में निष्पक्ष रहें।
  • सीमित पूर्वाग्रह जोखिम: चूँकि तदर्थ न्यायाधीशों की दीर्घकालिक करियर आकांक्षाएँ नहीं होती हैं, इसलिए पूर्वाग्रह की संभावना न्यूनतम होती है।

तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा नियमित नियुक्तियों पर उसका प्रभाव

  • नियमित पदोन्नति में कोई हस्तक्षेप नहीं: तदर्थ नियुक्तियाँ न्यायाधीशों की नियमित पदोन्नति प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप नहीं करेंगी।
  • तदर्थ न्यायाधीशों के लिए निश्चित अवधि: तदर्थ न्यायाधीशों को निश्चित अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है, आमतौर पर 2 से 3 वर्ष के लिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे स्थायी न्यायिक पदों का स्थान नहीं लेते हैं।
  • वरिष्ठता पर कोई प्रभाव नहीं: तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति से वर्तमान न्यायाधीशों की वरिष्ठता अप्रभावित रहती है।
  • नियमित न्यायाधीशों की आवश्यकता: उच्च न्यायालयों को न्यायिक कार्य के सम्पूर्ण दायरे को संभालने के लिए अभी भी नियमित न्यायाधीशों की आवश्यकता होगी, क्योंकि तदर्थ न्यायाधीशों का उद्देश्य केवल अस्थायी रूप से लंबित मामलों को हल करना है।

निष्कर्ष

तदर्थ न्यायाधीश अल्पावधि में लंबित मामलों के निपटान में सहायता कर सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए बेहतर नियमित नियुक्तियों और बुनियादी ढाँचा विकास की आवश्यकता होती है। न्यायिक प्रणाली में विश्वास बनाए रखने के लिए कम समय में उचित न्याय आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। क्या आपको लगता है कि यह न्यायिक स्वतंत्रता और गुणवत्ता को बनाए रखते हुए भारत के न्यायिक अतिभार को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकता है? संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और न्यायपालिका के लिए अपेक्षित सुधारों का सुझाव दीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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