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परमाणु परीक्षण के विरुद्ध वैश्विक सहमति कमजोर पड़ने के कारण, भारत को अपने विकल्पों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए

Lokesh Pal November 04, 2025 05:00 29 0

संदर्भ:

शीत युद्ध के बाद परमाणु परीक्षण पर वैश्विक रोक वर्त्तमान संदर्भ में कमजोर पड़ रही है, क्योंकि अमेरिका, रूस और चीन अपनी परीक्षण नीतियों पर पुनर्विचार कर रहे हैं, जिससे 1998 से स्व-लगाए गए प्रतिबंध से बंधा भारत एक नए रणनीतिक दुविधा में फंस गया है।

परमाणु परीक्षणों का पुनरुत्थान:

  • अमेरिकी संकेत: संयुक्त राज्य अमेरिका ने सवाल उठाया है कि क्या उसका शस्त्रागार भौतिक परीक्षण के बिना विश्वसनीय साबित हो सकता है।
  • रुसी गतिविधि: रूस ने अपने आर्कटिक परमाणु परीक्षण स्थलों पर बुनियादी ढाँचे को पुनर्जीवित किया है।
  • चीन का विस्तार: चीन लोप नूर में अपनी परीक्षण सुविधाओं का तेजी से विस्तार और आधुनिकीकरण कर रहा है।
  • परमाणु संयम का पतन: लगभग 30 वर्षों तक, परमाणु शक्तियों ने स्वैच्छिक रोक का सम्मान किया, जबकि व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) कभी लागू नहीं हुई।

भारत और परमाणु परीक्षण:

  • संप्रभुता का दावा: भारत द्वारा परमाणु अप्रसार संधि (NPT) की भेदभावपूर्ण प्रकृति को चुनौती देने के लिए ऑपरेशन शक्ति (1998) का आरंभ किया गया तथा यह दावा किया कि असमान संधियाँ भारत के सुरक्षा हितों को निर्धारित नहीं कर सकतीं।
  • स्वैच्छिक रोक: भारत ने 1998 के बाद भविष्य में परमाणु परीक्षण पर स्वैच्छिक रोक की घोषणा की, जिससे भारत को एक परिपक्व और जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में पेश किया गया।
  • सामरिक लाभ: भारत के संयम ने उसे प्रतिबंधों पर काबू पाने और 2008 के भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत करने में मदद की, जिससे भारत को वैश्विक परमाणु मुख्यधारा में औपचारिक प्रवेश मिल सका।
    • हालांकि, यह चेतावनी दी गई है कि समय-समय पर समीक्षा के बिना संयम रणनीतिक जड़ता बन जाता है, और सुरक्षा वातावरण में परिवर्तन होने पर रणनीति विकसित करनी होगी।

भारत के परमाणु सिद्धांत के सैद्धांतिक स्तंभ:

  • प्रथम प्रयोग नहीं (NFU): भारत परमाणु हथियारों का पहले प्रयोग नहीं करने के लिए प्रतिबद्ध है।
    • परमाणु हथियारों का प्रयोग केवल भारत या भारतीय सेना पर परमाणु हमले के जवाब में किया जाएगा।
  • विश्वसनीय न्यूनतम निवारण (CMD): भारत केवल न्यूनतम संख्या में परमाणु हथियार रखेगा जो विश्वसनीय निवारण सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है – जो अस्वीकार्य क्षति पहुंचाने के लिए पर्याप्त हो, न कि अन्य देशों के हथियार की बराबरी करने के लिए।

भारत के परमाणु सिद्धांत के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:

  • पुराना डाटा: भारत के वर्तमान हथियार डिजाइनों को 1998 में मान्य किया गया था, तथा विश्वसनीयता के लिए अब उभरते खतरों के मद्देनजर अद्यतन, डेटा-समर्थित सत्यापन की आवश्यकता है।
  • प्लेटफार्म एकीकरण: अग्नि-5 और पनडुब्बी से प्रक्षेपित मिसाइलों (K-15/K-4) जैसी नई वितरण प्रणालियाँ द्वितीय-आक्रमण क्षमता को बढ़ाती हैं, लेकिन उनके परमाणु एकीकरण को मान्य किया जाना चाहिए।
  • मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल (MIRV) की आवश्यकता: MIRV क्षमता के लिए छोटे, सटीक और अत्यधिक विश्वसनीय आयुधों की आवश्यकता होती है, और यदि लघुकरण का परीक्षण नहीं किया गया तो भारत के चीन और पाकिस्तान से पीछे रह जाने का खतरा है।
  • सिमुलेशन सीमाएं: कंप्यूटर सिमुलेशन और सबक्रिटिकल परीक्षण ज्ञान का विस्तार करते हैं, लेकिन नए अनुभवजन्य डेटा उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, यह एक ऐसी सीमा है जिसे अमेरिका द्वारा भी स्वीकार किया जाता है।
  • धारणा: निवारण तभी सफल होता है जब विरोधियों को विश्वास हो कि भारतीय हथियार कार्य करेंगे, तथा अनिश्चितता शस्त्रागार के आकार से भी अधिक निवारण को कमजोर करती है।

आगे की राह:

  • तत्परता: यदि प्रमुख शक्तियां परमाणु विस्फोट पुनः आरंभ करती हैं तो भारत को परीक्षण पुनः आरंभ करने के लिए तकनीकी और संभारतंत्रीय तत्परता बनाए रखनी होगी।
  • वैज्ञानिक परीक्षण: यदि परीक्षण अपरिहार्य हो जाए, तो इसे सीमित रूप से और भूमिगत किया जाना चाहिए, तथा इसका उद्देश्य शक्ति का संकेत देने के बजाय विशुद्ध रूप से नए हथियार डिजाइनों को प्रमाणित करना होना चाहिए।
  • डिजाइन सत्यापन: यदि आवश्यक हो तो परीक्षण द्वारा, द्वितीय-आक्रमण क्षमता सुनिश्चित करने के लिए MIRV-संगत और SLBM-सक्षम वारहेड डिजाइनों को सत्यापित किया जाना चाहिए।
  • णनीतिक संकेत: भारत को स्पष्ट रूप से यह बताना चाहिए कि कोई भी परीक्षण विश्वसनीय न्यूनतम निवारण बनाए रखने के लिए होगा, न कि हथियारों की होड़ को बढ़ाने या शुरू करने के लिए।
  • कूटनीतिक सुरक्षा: भारत को संभावित प्रतिबंधों से बचने और अपनी जिम्मेदार-शक्ति वाली छवि को बनाए रखने के लिए अपने साझेदारों (अमेरिका, फ्रांस, जापान आदि) के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिए।

निष्कर्ष:

जैसे-जैसे वैश्विक परमाणु संयम कम होता जा रहा है, भारत को विश्वसनीयता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाना होगा, अपने नैतिक संयम को त्यागे बिना परीक्षण की तत्परता बनाए रखनी होगी तथा वर्ष 2047 तक बदलते शक्ति समीकरणों के बीच विश्वसनीय न्यूनतम निवारण और रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करनी होगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: परमाणु संयम पर नए सिरे से वैश्विक अनिश्चितता के आलोक में, परीक्षण कीजिए कि क्या भारत द्वारा परमाणु परीक्षणों पर निरंतर रोक उसकी सामरिक स्वायत्तता को मज़बूत करती है या बाधित करती है। चर्चा कीजिए कि भारत अपने निवारक उपायों की विश्वसनीयता को ज़िम्मेदार परमाणु आचरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के साथ कैसे संतुलित कर सकता है।

(10 अंक, 150 शब्द)

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