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बाल गंगाधर तिलक और गणेश महोत्सव

Lokesh Pal September 07, 2024 05:15 209 0

संदर्भ :

1893 से पहले गणेश चतुर्थी मुख्य रूप से ब्राह्मणों और उच्च जातियों द्वारा मनाया जाने वाला एक दिवसीय उत्सव था। यह सीमित सार्वजनिक भागीदारी वाला एक साधारण त्योहार था। हालाँकि, 1893 में बाल गंगाधर तिलक ने इस परंपरा को बदल दिया। उनके प्रयासों ने गणेश चतुर्थी को एक भव्य, दस दिवसीय सार्वजनिक महोत्सव में बदल दिया, जिसे बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

बाल गंगाधर तिलक और गणेश महोत्सव 

  • तिलक, जिन्हें लोकमान्य या जनता के नेता के रूप में जाना जाता है, उदारवादियों के विपरीत उग्रवादी परंपरा से संबंधित थे। उदारवादियों की तुलना में उग्रवादियों के तरीके कुछ आक्रामक थे।
  • 1857 के अनुभव के बाद, जब भारतीय सैनिकों द्वारा अंग्रेज़ों को उखाड़ फेंकने का प्रयास, जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है, विफल हो गया और विद्रोह को बेरहमी से कुचल दिया गया; तब कुछ उदारवादी नेता औपनिवेशिक शासन को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने के बजाय अंग्रेज़ों से अधिक शक्ति और रियायतों की मांग का समर्थन करने लगें।
  • इसके विपरीत अरबिंदो घोष जैसे चरमपंथी स्वशासन या स्वराज का समर्थन करते थे।
  • तिलक ने घोषणा की, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।” उन्होंने दो समाचार पत्र शुरू किए- केसरी (मराठी में) और मराठा (अंग्रेज़ी में) | वे गांधी से पहले सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे।
  • उस समय, अंग्रेज़ अक्सर भारतीयों को ‘असभ्य’, ‘अशिक्षित’ के रूप में चित्रित करते थे तथा दावा करते थे कि उन्हें ‘सभ्य’ बनाना उनका दैवीय मिशन था। कई भारतीयों ने इस कथन पर विश्वास किया।
  • हालाँकि, तिलक सहित कुछ महान नेताओं ने इस चित्रण की आलोचना की और कहा कि भारतीय सभ्यता पहले से ही महान और समृद्ध थी। 
  • तिलक ने शिवाजी जैसे ऐतिहासिक व्यक्तियों को लोकप्रिय बनाकर इसका मुकाबला करने का लक्ष्य रखा, लोगों को उनके योगदान को पहचानने, गर्व महसूस करने और प्रेरित होने के लिए प्रोत्साहित किया। 
  • तिलक ने हिंदू समाज को प्रेरित करने के लिए गणेश उत्सव का उपयोग करने का अवसर देखा। 
  • उन्होंने गणेश चतुर्थी को एक सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की तथा युवाओं से इसे भारतीय सभ्यता की गौरवशाली परंपरा के रूप में मनाने का आग्रह किया। 
  • वह अंग्रेज़ों को यह दिखाना चाहते थे कि भारतीय संस्कृति और परंपराएँ श्रेष्ठ हैं। यह महोत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाने लगा, जहाँ लोग इकट्ठा हो सकते थे, देशभक्ति के गीत गा सकते थे और राष्ट्रवादी विचारों पर चर्चा कर सकते थे।
  • इस बदलाव ने न केवल इस महोत्सव को सार्वजनिक रूप से सबके समक्ष लाया, बल्कि इसे राजनीतिक लामबंदी के साधन में भी बदल दिया।
  • उसी वर्ष, राष्ट्रवादी प्रतिरोध के कारण को आगे बढ़ाने के लिए, तिलक ने युवा महाराष्ट्रियों के बीच राष्ट्रवादी विचारों को प्रेरित करने के उद्देश्य से 1896 में शिवाजी उत्सव की शुरुआत की।
  • उसी वर्ष, उन्होंने कपास पर उत्पाद शुल्क लगाए जाने के विरोध में विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए महाराष्ट्र में एक अभियान भी चलाया।

ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भों में धार्मिक प्रेरणाएँ

  • संपूर्ण भारतीय इतिहास में, धर्म का प्रयोग सामान्यतः विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है, जैसे कि सत्ता संचय, राजनीतिक लाभ और सैनिकों को प्रेरित करना।
  • हाल ही में तालिबान ने धार्मिक आधार पर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और दावा किया कि उनका उद्देश्य अफगानिस्तान में ‘शरिया’ कानून लागू करना है।
  • इसी प्रकार, मध्यकालीन इतिहास में कई इस्लामी शासकों ने अपनी लड़ाइयों को जिहाद अर्थात् एक पवित्र संघर्ष के रूप में प्रस्तुत करके अपने सैनिकों को प्रेरित किया।
  • भारत में अरबिंदो घोष ने युवाओं को प्रेरित करने के लिए इसी तरह की रणनीति का प्रयोग किया। उन्होंने राष्ट्र को एक देवी, ‘भारत माता’ के रूप में चित्रित किया, जो जंजीरों में जकड़ी हुई थी। 
    • उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे धर्म के प्रति अपने समर्पण को अपने देश के प्रति समर्पण के समानांतर देखें। 
    • उन्होंने युवाओं को अपनी ‘देवी’ के उत्पीड़न को बर्दाश्त न करने और उन्हें बंधन से मुक्त करने तक अपना संघर्ष जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।

आलोचना और विवाद

  • स्वतंत्रता संग्राम में सांप्रदायिकता : हालाँकि, तिलक की आलोचना स्वतंत्रता संग्राम को सांप्रदायिक रंग देने और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए की गई। कांग्रेस नेताओं की भी हिंदू धर्म की ओर झुकाव तथा हिंदू हितों का समर्थन करने के लिए आलोचना की गई।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 1893 में पूरे देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक झड़पों की लहर देखी गई। 
    • 11 अगस्त को बॉम्बे शहर ने उस पैमाने पर हिंसा देखी, जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी।
  • तिलक की ब्रिटिश नीतियों पर प्रतिक्रिया : तिलक, जो पूना (अब पुणे) में रहते थे, ने सांप्रदायिक तनाव भड़काने के लिए अंग्रेज़ों पर हमला किया और उन पर मुसलमानों के प्रति पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया।
    • उन्होंने कहा कि जब सरकारी सुरक्षा विफल हो गई, तो हिंदुओं को बढ़ते मुस्लिम आक्रमण का सामना करना पड़ा तथा हिंसा का सहारा केवल उकसावे पर लिया गया। 
    • उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि हिंदुओं के बीच बढ़ती एकता को अंग्रेज़ों ने खतरे के रूप में देखा, जिन्होंने मुसलमानों के साथ गठबंधन करके इसका मुकाबला किया।
    • इस प्रकार, उनका बल हिंदू एकता और प्रतीकवाद पर था।

निष्कर्ष 

आज गणेश महोत्सव अपने भव्य समारोहों और जन भागीदारी के साथ तिलक की दूरदर्शिता का प्रमाण है। हालाँकि यह एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक और व्यावसायिक आयोजन के रूप में विकसित हो चुका है, लेकिन इसकी जड़ें तिलक की औपनिवेशिक शासन के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट करने और उन्हें संगठित करने की रणनीति में निहित हैं।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

विश्लेषण कीजिए, कि किस प्रकार क्षेत्रीय आंदोलनों और स्थानीय प्रयासों, जैसे तिलक द्वारा गणेश उत्सव के परिवर्तन ने भारतीय राष्ट्रवाद के व्यापक उद्देश्य में योगदान दिया। भारत के अन्य भागों से इस प्रकार के उदाहरणों पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

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