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भोजन, ईंधन और लकड़ी के रूप में बांस

Lokesh Pal August 20, 2024 05:30 51 0

संदर्भ :

बांस, जिसे अक्सर ‘गरीबों की लकड़ी’ कहा जाता है, किसानों के लिए एक आकर्षक फसल के रूप में उभरा है, जिसने इसे ‘हरा सोना’ की उपाधि दी है। आधुनिक कृषि पद्धतियों के साथ इसकी कृषि, अन्य कई फसलों की तुलना में अधिक लाभदायक साबित हो रही है, जिनमें गन्ना और कपास जैसी फसलें भी शामिल हैं।

बांस की खेती को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहलें

  • किसानों की आय बढ़ाने में बांस की क्षमता को पहचानते हुए सरकार ने ‘राष्ट्रीय बांस मिशन’ और बागवानी के एकीकृत विकास मिशन को नया रूप दिया है। देश के विभिन्न भागों में बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए इन योजनाओं को क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • इन कार्यक्रमों में विभिन्न क्षेत्रों में लकड़ी के विकल्प के रूप में बांस के उपयोग को प्रोत्साहित करने और बांस तथा इसके उत्पादों के उत्पादन, घरेलू विपणन और निर्यात के लिए मूल्य शृंखला बनाने के उपाय शामिल हैं। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में सरकारी उद्देश्यों के लिए बांस से बने फर्नीचर का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।
    • असम में टूथपेस्ट और कंघी जैसे रोजमर्रा के उत्पाद बांस से बनाए जाते हैं। त्रिपुरा में छोटे पैमाने के उद्यम बांस की छड़ें बनाते हैं, जिन्हें बाद में बड़ी विनिर्माण कंपनियों को बेचा जाता है।
    • सरकार इन छोटी फर्मों को सब्सिडी देकर सहायता कर रही है, जिससे एक मूल्य शृंखला बन रही है।
  • सरकार किसानों के लिए बांस की क्षमता को भी पहचान रही है और उन्हें अपने उत्पादों को घरेलू स्तर पर बेचने में मदद कर रही है। उदाहरण के लिए स्थानीय कारीगरों को मेट्रो स्टेशनों के पास बांस के उत्पाद बेचते देखा जा सकता है।

भारत में बांस की मांग में वृद्धि

बाज़ार की संभावनाएँ

  • नीति आयोग ने अनुमान लगाया है कि 2025 तक वैश्विक बांस बाजार का मूल्य लगभग $98.3 बिलियन होगा
  • भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांस उत्पादक है और इस तेजी से बढ़ते बाजार में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी के लिए प्रयास कर रहा है।
  • देश में बांस की 136 से अधिक देशी प्रजातियाँ हैं और यह सालाना इस अत्यधिक मूल्यवान और बहुमुखी पौधे का लगभग 3.23 मिलियन टन उत्पादन करता है।

नीतिगत परिवर्तन

  • 2017 में ‘भारतीय वन अधिनियम’ में किए गए संशोधन से बांस की खेती को जंगली फसल के बजाय कृषि फसल के रूप में बढ़ावा मिला, जिसने बांस को ‘पेड़’ के बजाय ‘घास’ के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया।
  • इस परिवर्तन ने बांस को पेड़ों और अन्य प्रकार के वन उत्पादों की कटाई, परिवहन और बिक्री से संबंधित विभिन्न प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया।
  • यह कदम पौधों के वनस्पति वर्गीकरण द्वारा समर्थित है, जो बांस को गेहूँ, चावल, जई, राई, मक्का, जौ, ज्वार और बाजरा जैसी महत्त्वपूर्ण खाद्य फसलों के साथ घास के पोएसी (ग्रामीनी) परिवार में रखता है ।
  • बांस को अब किसी भी अन्य फसल की तरह उगाया जा सकता है और वन विभाग या किसी अन्य सरकारी एजेंसी से लाइसेंस या अनुमति की आवश्यकता के बिना विपणन किया जा सकता है।

विस्तार संबंधी पहलें

  • बांस की खेती मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में तेजी से फैल रही है, इसके अलावा पूर्वोत्तर क्षेत्र और पश्चिम बंगाल में इसके प्राकृतिक आवास भी हैं।
  • बांस की खेती के अंतर्गत आने वाली भूमि का अनुमान 15.70 मिलियन हेक्टेयर से अधिक है, जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र में देश के कुल बांस संसाधनों का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा है।
  • हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में गुजरात में बांस किसानों की संख्या दुगुनी हो गई है।
  • महाराष्ट्र सरकार ने बांस की खेती के तहत आने वाले क्षेत्र को 10,000 हेक्टेयर तक बढ़ाने की योजना की भी घोषणा की है, जिसके तहत प्रति हेक्टेयर ₹7 लाख का प्रोत्साहन दिया जाएगा। यह पहल पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए कार्बन सिंक (कार्बन डाइऑक्साइड पृथक्करण क्षेत्र) बनाने की राज्य की रणनीति का हिस्सा है।

बांस के पौधे के उपयोग

  • बांस के पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलने की अपनी दक्षता के लिए जाने जाते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि बांस अन्य वनस्पतियों की तुलना में लगभग 35 प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन उत्पन्न करता है।
  • बांस दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले पौधों में से एक है। यह एक दिन में 30 सेमी. से 90 सेमी. (1 से 3 फीट) तक बढ़ सकता है, जो इसे बायोमास के सबसे कुशल उत्पादकों में से एक बनाता है। यह तेज़ वृद्धि बांस को भोजन से लेकर ईंधन तक कई तरह से प्रयोग करने की अनुमति देती है।
  • भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में, ताजे बांस के अंकुरों को सब्ज़ी के रूप में खाया जाता है या स्थानीय व्यंजनों में सामग्री के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • बांस से बने खाद्य पदार्थ अपने उच्च फाइबर सामग्री और कम कैलोरी की मात्रा के कारण स्वस्थ माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त बांस के अंकुरों में एक अनूठा स्वाद होता है, जिसे पाक (भोजन संबंधी) तैयारियों में विशेष महत्त्व दिया जाता है।
  • बांस के पौधे के कुछ हिस्सों, जिसमें इसकी जड़ें भी शामिल हैं, में चिकित्सीय गुण पाए जाते हैं और इनका उपयोग पूर्वोत्तर में पारंपरिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में किया जाता है।
  • बांस को पर्यावरण के अनुकूल जैव ईंधन जैसे- इथेनॉल, में भी परिवर्तित किया जा सकता है या कागज़ बनाने के लिए लुगदी बनाई जा सकती है।
  • इसके अलावा, बांस का इस्तेमाल निर्माण क्षेत्र में लकड़ी के विकल्प के रूप में और मचान बनाने के लिए व्यापक रूप से किया जाता है | हल्का वज़न, टिकाऊपन और विशिष्ट प्राकृतिक उपस्थिति के कारण टेबल, कुर्सियाँ और बिस्तर जैसे फर्नीचर बनाने में भी इसका उपयोग बढ़ रहा है, ।

बांस की कटाई

  • वाणिज्यिक बागानों में, बांस को आमतौर पर बरसात के मौसम में इसके तने या प्रकंदों की कटिंग के माध्यम से प्रचारित किया जाता है।
  • काटे गए पौधे फिर से उग आते हैं, जिससे नई फसल पैदा होती है। बांस के पौधों को कटाई योग्य अवस्था तक पहुँचने में लगभग पाँच साल लगते हैं।
  • बांस के बागानों के शुरुआती दो से तीन वर्षों के दौरान, अतिरिक्त आय प्रदान करने के लिए बांस के पौधों के बीच हल्दी, मिर्च और अदरक जैसी अन्य फसलें उगाई जा सकती हैं।
  • बांस की औसत वार्षिक उपज आमतौर पर प्रति हेक्टेयर 30-35 टन तक होती है। उच्च उपज देने वाली किस्मों, उचित नकद इनपुट और अच्छी कृषि पद्धतियों का उपयोग करके अच्छी तरह से प्रबंधित बागानों से और भी अधिक उत्पादन हो सकता है।

नोट : ‘बीमा बांस’ जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से विकसित सबसे लोकप्रिय उच्च उपज वाली किस्मों में से एक है। बांस की औसत कीमत ₹100 प्रति छड़ी होने के कारण, उत्पादक आसानी से प्रति हेक्टेयर ₹75,000-80,000 का शुद्ध वार्षिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष 

भारतीय कृषि में बांस की विशिष्ट उपयोगिता स्पष्ट है, जिसके चलते यह न केवल किसानों की आय को दुगुनी करने में सहायक हो सकता है, बल्कि कृषक आत्महत्या में भी कमी ला सकता है | यह भारतीय अर्थव्यवस्था को समृद्ध बनाने में सहायक है, जिससे भारत एक आयातक राष्ट्र की श्रेणी से हटकर निर्यातक राष्ट्रों की सूची में शामिल हो सकता है | 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

बांस को ‘हरा सोना’ क्यों कहते हैं? भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि एवं विकास हेतु बांस की उपयोगिता बताइए |

(10 अंक, 150 शब्द)

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