100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

उत्तर प्रदेश में जाति प्रतीकों पर प्रतिबंध

Lokesh Pal September 23, 2025 05:30 91 0

संदर्भ:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश को जातिगत महिमामंडन को विनियमित करने के लिए दिए गए हालिया निर्देशों पर कार्रवाई करते हुए, राज्य ने एक अधिसूचना जारी की है, जिसके तहत जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों, पुलिस थानों में आरोपी व्यक्तियों की जातियों का उल्लेख और वाहनों, साइनबोर्ड आदि पर जाति का उल्लेख करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय (प्रवीण छेत्री बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि:

  • न्यायालय की आलोचना: न्यायालय ने आधुनिक पहचान-पत्रों (आधार, बायोमेट्रिक्स) की उपलब्धता के बावजूद पुलिस रिकॉर्ड (गिरफ्तारी ज्ञापन, सूचना एकत्रण) में जाति के निरंतर उपयोग की आलोचना की।
  • न्यायिक शब्दावली: न्यायाधीश ने जाति महिमामंडन और जाति आत्मप्रशंसा जैसे शब्दों का प्रयोग किया।
  • जाति गौरव के झूठे प्रतीक: वाहनों पर जातिगत स्टिकर लगाना जातिगत अहंकार का संकेत और जाति महिमामंडन का प्रयास माना जाता है
    • यह झूठे जातिगत गौरव को दर्शाता है: यह मानना ​​कि उस जाति में जन्म लेना सबसे बड़ी उपलब्धि है।

उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश की मुख्य विशेषताएं:

  • रैलियां: सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने वाली जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध।
  • वाहन: मोटर वाहन अधिनियम के तहत वाहनों पर जातिसूचक स्टिकर लगाने पर प्रतिबंध।
  • मोहल्ले के नाम: जाति के नाम पर मोहल्लों के नामकरण पर प्रतिबंध (जैसे, ठाकुर मोहल्ला)।
  • पुलिस रिकॉर्ड: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) अधिनियम के मामलों को छोड़कर, पुलिस रिकॉर्ड में जाति का कॉलम खाली रहेगा।
  • CCTNS पोर्टल: अपराध एवं आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (CCTNS) पुलिस पोर्टल से जाति कॉलम हटा दिया गया।
  • पहचान सत्यापन: गिरफ्तारी के दौरान माता और पिता दोनों के नाम दर्ज किए जाएंगे।
  • सोशल मीडिया: जाति-संबंधी घृणा सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए निगरानी

आदेश के पक्ष में संवैधानिक तर्क:

  • अनुच्छेद 14 (समानता): जातिगत प्रतीक पदानुक्रम की भावना उत्पन्न करते हैं और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं।
  • अनुच्छेद 15 (भेदभाव): जाति का सार्वजनिक प्रदर्शन भेदभाव और विभाजन को बढ़ावा देता है।
  • अनुच्छेद 51A (मौलिक कर्तव्य): जातिगत प्रतीक समाज को विभाजित करते हैं और समान भाईचारे को बढ़ावा देने के मौलिक कर्तव्य में बाधा डालते हैं।
  • अस्पृश्यता का अप्रत्यक्ष अंत (अनुच्छेद 17- अस्पृश्यता का उन्मूलन): सार्वजनिक स्थानों पर जाति के दिखावे को समाप्त करने से भेदभाव समाप्त हो सकता है।

प्रमुख नैतिक दुविधाएँ शामिल हैं:

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सार्वजनिक व्यवस्था:
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: नागरिकों का तर्क है कि उन्हें अपनी जातिगत पहचान व्यक्त करने का अधिकार है।
    • उचित प्रतिबंध: उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंध का बचाव करते हुए सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबंध लगाने की संवैधानिक शक्ति का हवाला दिया।
      • इस बात पर बहस जारी है कि क्या जातिगत स्टिकर सीधे तौर पर सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करते हैं या क्या यह प्रतिबंध अनावश्यक रूप से स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाता है।
  • दावा बनाम महिमामंडन:
    • संस्कृतिकरण (एम.एन. श्रीनिवास): ऐतिहासिक रूप से, हाशिए पर पड़े समूह सामाजिक सीढ़ी पर चढ़ने के लिए उच्च जातियों का अनुकरण करते थे।
    • आधुनिक अभिकथन: हाल के दशकों में, हाशिए पर पड़े वर्ग आत्मविश्वास के प्रतीक के रूप में अपनी जातिगत पहचान पर गर्व व्यक्त करते हैं।
    • अंतर: हाशिए पर दावासशक्तिकरण को दर्शाता हैजबकि उच्च जाति का महिमामंडन अक्सर झूठे गर्व में निहित आत्ममुग्धता को दर्शाता है।

आदेश के कार्यान्वयन में विद्यमान चुनौतियाँ:

  • प्रणालीगत मुद्दों से निपटना: हालांकि आदेश का प्रतीकात्मक उद्देश्य प्रशंसनीय है, आलोचकों का तर्क है कि सार्वजनिक दृष्टि से जाति को मिटा देने से प्रणालीगत भेदभाव के वास्तविक मुद्दों का समाधान नहीं होगा।
  • जाति एक एकीकृत कारक के रूप में: जाति समाज को विभाजित करने के साथ-साथ हाशिए पर पड़े वर्गों को एकजुट होने, लामबंद होने और सरकार से अपने अधिकारों की सफलतापूर्वक मांग करने की शक्ति भी प्रदान करती है।
  • कार्यान्वयन कठिनाइयाँ: प्रतिबंध को लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकिमौजूदा स्टिकरों की भारी संख्या, सोशल मीडिया की निगरानी में विद्यमान समस्याएँ और “जाति रैली” की परिभाषा के संबंध में विद्यमान अस्पष्टता का सामना करना पड़ रहा है।

निष्कर्ष:

वास्तविक परिवर्तन के लिए पुलिस सुधार, पुलिस संवेदनशीलता में वृद्धि, पाठ्यक्रम में समानता को शामिल करना, हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए आर्थिक सशक्तिकरण और भेदभाव के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: जाति प्रतीकों के सार्वजनिक प्रदर्शन पर प्रतिबंध का उद्देश्य सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है, लेकिन यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जाति पहचान के दावे पर गंभीर प्रश्न उठाता है। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.