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भारत में भिक्षावृत्ति तथा इसकी विधिक स्थिति

Lokesh Pal January 03, 2025 05:15 47 0

संदर्भ :

16 दिसंबर, 2024 को इंदौर के जिला कलेक्टर ने केंद्र सरकार की “स्माइल योजना” के तहत भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 163 के तहत भिखारियों को भीख देने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसका उद्देश्य हाशिए पर व्याप्त समूहों की सहायता करना है।

स्माइल योजना

  • स्माइल योजना (आजीविका और उद्यम के लिए हाशिए पर व्याप्त व्यक्तियों को सहायता) भारत में केंद्र सरकार द्वारा संचालित एक सरकारी पहल है, जिसका उद्देश्य भीख माँगने वाले लोगों को शिक्षा, चिकित्सा देखभाल और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करके उनका पुनर्वास करना है | 
  • इस योजना का लक्ष्य 2026 तक भारत को “भिखारी मुक्त” (Beggar-Free) बनाना है ।

भिखारी मुक्त शहर का विचार

  • 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में, दिल्ली का लक्ष्य भिखारियों को हटाकर एक “विश्व स्तरीय शहर” निर्मित करना था। 
  • परिणामस्वरूप, सरकार ने भिखारियों के लिए “शून्य-सहिष्णुता क्षेत्र” घोषित कर दिया। 
    • मोबाइल अदालतों और प्रवर्तन वैनों ने गरीब और बेघर लोगों के साथ-साथ झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों और सड़क विक्रेताओं को भी गिरफ्तार किया, जिन्हें “विश्व स्तरीय शहर” की छवि के साथ असंगत माना गया।
  • SMILE योजना के लिए एक सीख : संघ राज्यक्षेत्र दिल्ली का दृष्टिकोण SMILE योजना के लिए सीख प्रदान करता है, जो दर्शाता है कि “भिखारी मुक्त” या “भिक्षावृत्ति मुक्त” शहर बनाने के प्रयास गरीबों को कैसे नुकसान पहुँचा सकते हैं। 
    • इसे समझने के लिए हमें “भिखारी” की परिभाषा पर सवाल उठाने होंगे तथा गरीबी के प्रति राज्य के औपनिवेशिक दृष्टिकोण को समझना होगा ।

विधिक परिभाषा 

  • भीख माँगना आवारागर्दी/खानाबदोशी (Vagrancy) के दायरे में आता है, जिसका उल्लेख संविधान की  समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) में किया गया है।
  • यह प्रविष्टि केंद्र और राज्य सरकारों को भीख माँगने के साथ-साथ खानाबदोश और प्रवासी जनजातियों से निपटने के लिए कानून बनाने की शक्ति प्रदान करती है।

 

संविधान सभा में इस विषय पर चर्चा

  • 1 सितंबर, 1949 को संविधान सभा में चर्चा के दौरान राज बहादुर द्वारा “भिक्षावृत्ति पर नियंत्रण और उन्मूलन” को संघ सूची में जोड़ने का  प्रस्ताव रखा गया था।
  • राज बहादुर ने तर्क दिया, कि कुछ लोग आलस्य के कारण भीख माँगते हैं, ईमानदारी से कार्य करके समाज में योगदान दिए बिना भीख माँगते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि ये लोग समाज के लिए बोझ हैं।
  • इसके उत्तर में डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने स्पष्ट किया, कि भिक्षावृत्ति का मुद्दा पहले से ही समवर्ती सूची में “भिक्षावृत्ति” के तहत संबोधित किया गया है, जो केंद्र और राज्यों दोनों को विधायी कार्रवाई करने की अनुमति देगा। 
  • अम्बेडकर ने जोर देकर कहा, कि इस मुद्दे को संघ सूची में अलग से शामिल करने की आवश्यकता नहीं है।

भिक्षावृत्ति का ऐतिहासिक संदर्भ

  • “भिक्षावृत्ति” की विधिक रूपरेखा की जड़ें ऐतिहासिक हैं, जो विशेष रूप से औपनिवेशिक काल के दौरान खानाबदोश जनजातियों के साथ संबंधित हैं । 
  • औपनिवेशिक भारत में खानाबदोश जनजातियों का अपराधीकरण ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य साम्राज्य के भीतर विभिन्न समूहों की आवाजाही को नियंत्रित और विनियमित करना था।
  • मीना राधाकृष्ण ने अपनी पुस्तक में विस्तार से बताया है, कि औपनिवेशिक राज्य ने कुछ खानाबदोश समुदायों को अपराधी के रूप में वर्गीकृत करने के लिए वर्ष 1871 का “आपराधिक जनजाति अधिनियम”  बनाया था।
    • यह कानून पूर्वाग्रहों और आर्थिक उद्देश्यों, जैसे- भूमि राजस्व को अधिकतम करना तथा निजी उद्यम की सुरक्षा, दोनों से प्रेरित था। 
    • अंग्रेजों ने इन समूहों को स्थायी बनाने का प्रयास किया, जिससे वे मजदूरी अपनाने और खानाबदोश जीवन शैली को त्यागने हेतु बाध्य हो गए। 
  • “भिखारियों” को आलसी और अयोग्य बताए जाने के बारे में चल रही चर्चा मध्ययुगीन इंग्लैंड के दृष्टिकोण की प्रतिध्वनि है । 
    • मध्ययुगीन इंग्लैंड में, इसी प्रकार के पूर्वाग्रहों को वर्ष 1349 के मजदूरों के अध्यादेश के माध्यम से संस्थागत रूप दिया गया था, जो इंग्लैंड का पहला प्रमुख भिक्षावृत्ति कानून था, जिसे ब्लैक प्लेग के बाद अधिनियमित किया गया था
  • ब्लैक प्लेग ने इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला। महामारी के कारण मज़दूरों की कमी हो गई, जिसके परिणामस्वरूप उच्च मज़दूरी और बेहतर कार्यशील परिस्थितियों की माँग बढ़ गई, मुख्य रूप से  शहरों में इसकी माँग अधिक थी ।
    • इस परिवर्तन से सामंती व्यवस्था को खतरा पैदा हो गया, जो सस्ते कृषि श्रम की निरंतर आपूर्ति पर निर्भर थी। 
    • इसके जवाब में अंग्रेजी शासक वर्ग ने गरीबों को, विशेष रूप से काम न करने वाले गरीबों को, आलसीपापी और नैतिक रूप से हीन बताया।
  • विलियम चैम्बलिस ने कहा, कि यह चित्रण गरीबों पर सामाजिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण था। 
    • उन्हें “आलसी” करार देकर, कानून ने उनकी आवाजाही को प्रतिबंधित करने और मौजूदा सामंती संरचना को बनाए रखने का प्रयास किया।
  • मैरी-ईव सिल्वेस्ट्रे ने अपने निबंध में लिखा है, कि एंग्लो-सैक्सन कानूनी प्रणालियों ( Anglo-Saxon legal systems) ने इस प्रवृत्ति को जारी रखा, जिसमें कई कानूनों ने गरीबों को नैतिक रूप से हीन, आलसी और बेईमान व्यक्तियों के रूप में चित्रित किया। 
    • ये कानून गरीबों को अपराधी मानते थे तथा प्रायः उन्हें सार्वजनिक व्यवस्था के लिए संभावित खतरा मानते थे।

भिक्षावृत्ति संबंधी उत्तर-औपनिवेशिक कानून

  • बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 : यह अधिनियम वर्तमान भिक्षावृत्ति विरोधी कानूनों के लिए कानूनी आधार के रूप में कार्य करता है, जो “भिक्षावृत्ति” को न केवल भिक्षा मांगने के रूप में परिभाषित करता है, बल्कि सड़क पर प्रदर्शन करने या निराश्रित दिखने जैसी गतिविधियों के रूप में भी परिभाषित करता है। 
    • यह परिभाषा न केवल भिखारियों को बल्कि खानाबदोश समुदायों को भी लक्षित करती है।
  • समकालीन कानूनों पर प्रभाव : यह वर्गीकरण पुलिस और जिला प्राधिकारियों को सार्वजनिक स्थानों को “खूबसूरत” बनाने के लिए इन समूहों को पकड़ने का पूर्ण अधिकार देता है, जैसा कि हमने दिल्ली के मामले में देखा है।

हालिया न्यायशास्त्र और बदलते परिप्रेक्ष्य

  • दिल्ली उच्च न्यायालय का 2018 का निर्णय : न्यायालय ने बॉम्बे अधिनियम के कई प्रावधानों को रद्द कर दिया, उन्हें “स्पष्ट रूप से मनमाना” और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन घोषित किया, जो सम्मान के साथ जीने के अधिकार की गारंटी देता है। 
    • न्यायालय ने गरीबी के मूल कारणों पर ध्यान दिए बिना भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करने पर प्रश्न  उठाया।
  • 2021 में सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण : 2021 में, सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक स्थानों से भिखारियों को हटाने की माँग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से मना कर दिया, जिससे इस विचार को बल मिला कि भिक्षावृत्ति एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है और इसे अभिजात्य दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।

स्माइल योजना : अवसर और चिंताएँ

  • रचनात्मक दृष्टिकोण : जबकि SMILE योजना पुनर्वास, चिकित्सा देखभाल और कौशल निर्माण की प्रस्तुति  करके शहरी गरीबी को रचनात्मक रूप से संबोधित करने का अवसर प्रदान करती है, लेकिन यह पुरानी परिभाषाओं और दंडात्मक रूपरेखाओं को बनाए रखने का जोखिम भी रखती है।
  • भिक्षावृत्ति की विधिक व्याख्या का पुनर्मूल्यांकन : SMILE योजना के लिए एक प्रमुख चुनौती “भिखारियों” और “आवारा व्यक्तियों” की कानूनी और न्यायिक व्याख्या पर पुनर्विचार करना है। 
    • भिक्षावृत्ति और इससे संबंधित व्यवहार को अपराध मानने वाले कानूनों पर निर्भरता, योजना के लक्ष्यों और निष्पक्षता को कमजोर कर सकती है, जिससे इसकी प्रभावकारिता के बारे में चिंताएँ बढ़ सकती हैं।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि शहरों को “भिखारी मुक्त” बनाने की अवधारणा पर पुनः विचार किया जाना चाहिए। शहरी गरीबी के प्रति समग्र दृष्टिकोण, जो अपराधीकरण की तुलना में सम्मान, पुनर्वास और संरचनात्मक परिवर्तन को प्राथमिकता देता है, किसी भी योजना के दीर्घकालिक रूप से सफल होने हेतु आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

संवैधानिक अधिकारों, सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों और न्यायिक हस्तक्षेप के साथ उनके अंतर्संबंध पर चर्चा करते हुए भारत के भिक्षावृत्ति विरोधी कानून औपनिवेशिक विरासत को किस प्रकार दर्शाते हैं, आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए । शहरी गरीबी को दूर करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा का सुझाव दीजिए, जो कल्याण और सम्मान के बीच संतुलन बनाए रखने का कार्य करे ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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