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Lokesh Pal December 13, 2024 05:15 37 0
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी और एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने इस विषय को फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है कि क्या अनुसूचित जाति (एससी) एक समान समूह बनाते हैं, और क्या अस्पृश्यता अभी भी उन्हें इस श्रेणी में शामिल करने का प्राथमिक कारण है।
अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के उदय को चौथी शताब्दी से जोड़कर व्याख्यायित करने का प्रयास किया। उनके अनुसार यह उस दौर की बात है जबकि ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म से अपना दर्जा पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया था।
“विखंडित समाज या व्यक्ति” और उनका हाशिए पर चले जाना
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जैसे-जैसे भारत स्वतंत्रता की ओर आगे बढ़ा, अंबेडकर ने दलित वर्गों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेक शर्तें निर्धारित की:
यह मूलतः जात-पात तोड़क मंडल के लिए लिखा गया भाषण था, जिसे अंबेडकर के विचारों की विवादास्पद प्रकृति के कारण उनके भाषण के सम्बोधन को रद्द कर दिए जाने के बाद स्वयं प्रकाशित किया गया था।
चूंकि वर्तमान भारत जातिगत भेदभाव के मुद्दों और अधिक समावेशी समाज की मांग से जूझ रहा है, इसलिए अंबेडकर के कार्यों पर पुनर्विचार करना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी नागरिकों के लिए सामाजिक न्याय और समानता का संवैधानिक आदर्श साकार हो, चाहे उनकी जाति या पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्नप्रश्न: अम्बेडकर का अस्पृश्यता का विश्लेषण सामाजिक भेदभाव से आगे बढ़कर आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक आयामों को भी समाहित करता है। इसके उन्मूलन के लिए उनका दृष्टिकोण न केवल संवैधानिक था बल्कि परिवर्तनकारी भी था। भारत में समकालीन जाति आधारित चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी अंतर्दृष्टि किस प्रकार प्रासंगिक बनी हुई है, इसका आलोचनात्मक परीक्षण करें? (15 अंक, 250 शब्द) |
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