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ब्रिक्स और क्वाड से आगे

Lokesh Pal July 03, 2025 05:00 7 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका की व्यापक बहु राष्ट्र यात्रा, जिसमें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भी शामिल है, आर्थिक और राजनीतिक अवसरों को सुरक्षित करने तथा भारत को आंतरिक रूप से मजबूत बनाने की दिशा में बदलाव का प्रतीक है।

  • हालाँकि, भारत की ” बहुपक्षीयता” या बहु-गठबंधन रणनीति, जिसमें ब्रिक्स और क्वाड दोनों के साथ जुड़ाव शामिल है, तेजी से उभरती विश्व व्यवस्था के समक्ष जटिल साबित हो रही है।

ब्रिक्स के बारे में

  • पांच प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह: ब्रिक्स विश्व के पाँच देशों यथा ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का समूह है। इसे मूल रूप से 2006 में “ब्रिक” के रूप में बनाया गया था, जिसमें 2010 में दक्षिण अफ्रीका भी शामिल हुआ था।

प्रमुख विशेषताएँ

  • जनसंख्या: यह वैश्विक जनसंख्या का 40% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है।
  • उद्देश्य: बहुध्रुवीयता, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक शासन संस्थाओं में सुधार करना।
  • पहल: न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) ब्रिक्स द्वारा 2014 में स्थापित एक बैंक है जिसका उद्देश्य ब्रिक्स और अन्य विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करना है। इसका मुख्यालय शंघाई (चीन) में है और यह सभी सदस्यों को समान मतदान शक्ति प्रदान करता है

ब्रिक्स की सीमाएँ

ब्रिक्स, जिसे कभी अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने वाली तथा एक नई विश्व व्यवस्था स्थापित करने वाली एक शक्तिशाली इकाई के रूप में देखा गया था, अब गंभीर आंतरिक विरोधाभासों का सामना कर रहा है। यही कारण है कि इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है।

  • आंतरिक मतभेद: ब्रिक्स के भीतर गहरे मतभेद स्पष्ट हैं, विशेष रूप से भारत और चीन के बीच यह स्पष्ट देखा जा सकता है। यह आंतरिक संघर्ष मूल रूप से पश्चिमी व्यवस्था का मुकाबला करने की समूह की मूल आकांक्षा को कमजोर करता है।
  • सामूहिक रक्षा में विफलता: ब्रिक्स समूह की उदासीनता तब स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हुई जब रूस और चीन जैसे सदस्य अमेरिका और इजरायल के हमलों के दौरान ईरान को खुला समर्थन देने में विफल रहे। उनकी प्रत्यक्ष कार्रवाई की कमी व्यक्तिगत राष्ट्रीय हितों से प्रेरित थी। उदाहरण: रूस का चल रहा संघर्ष और अमेरिका के साथ चीन की व्यापार गतिशीलता।
  • घटती हुई अपील: ब्रिक्स की सदस्यता अस्वीकार करने का अर्जेंटीना का निर्णय वैश्विक मंच पर इस मंच के घटते हुए आकर्षण को उजागर करता है।
  • रूस की चीन पर निर्भरता: क्रीमिया पर कब्ज़ा करने और यूक्रेन पर आक्रमण करने सहित रूस की कार्रवाइयों ने मास्को को बीजिंग के काफी करीब लाने में योगदान दिया है। इससे एशिया में चीन के खिलाफ भारत के लिए संतुलन शक्ति के रूप में रूस की पारंपरिक भूमिका के बारे में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • द्विपक्षीय समझौतों को प्राथमिकता देना: वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्थाके बारे में बयानबाजी के बावजूद, रूस और चीन सहित प्रमुख ब्रिक्स सदस्य, वाशिंगटन के साथ द्विपक्षीय समझौते कर रहे हैं, जो उनके स्वार्थी व्यवहार को दर्शाता है।
  • डी- डॉलराइजेशन की अस्पष्टता: जबकि ब्रिक्स के भीतर डी-डॉलरीकरण पर चर्चा की गई है। हालांकि भारत ने संभावित व्यापार व्यवधान के कारण इसका खुलकर समर्थन नहीं किया है परंतु भारत रूस के साथ स्थानीय मुद्रा व्यापार में संलग्न है।
    • डी-डॉलराइजेशन से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वित्त और विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करते हैं। उदाहरण: स्थानीय मुद्राओं या विकल्पों का उपयोग करना।

क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) के बारे में

  • क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक रणनीतिक समूह है।
  • इसका उद्देश्य समुद्री सुरक्षा, प्रौद्योगिकी, जलवायु और आपदा प्रतिक्रिया पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक स्वतंत्र, खुला और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करना है।
  • इसे चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रतिकार के रूप में देखा जा रहा है।

क्वाड के भीतर चुनौतियाँ

मुख्य रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते आधिपत्य को रोकने के लिए स्थापित क्वाड को भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

  • अमेरिका कीअमेरिका प्रथमनीति: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दृष्टिकोण और ऑस्ट्रेलिया तथा जापान जैसे सहयोगियों से रक्षा खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के 3 प्रतिशत या उससे अधिक तक बढ़ाने की उनकी मांग, सहयोगियों के बीच मतभेद और अविश्वास उत्पन्न कर रही है, जो कि सभी हितधारकों के लिए एक चुनौती है।
  • सुरक्षा गठबंधनों को कमजोर करना: ट्रम्प की व्यापार पहलेकी रणनीति अमेरिका और उसके एशियाई साझेदारों के बीच दीर्घकालिक सुरक्षा गठबंधनों के लिए खतरा बन रही है।
  • अमेरिका-चीन संबंध को सुधारना: चीन के साथ एक आकर्षक सौदेके लिए ट्रम्प की उदारता, अमेरिका-चीन वाणिज्यिक संबंधों में सुधार के साथ-साथ, अमेरिकी सहयोगियों को वाशिंगटन की दीर्घकालिक हिंद-प्रशांत रणनीति पर सवाल उठाने के लिए मजबूर करता है।
  • अमेरिका-पाकिस्तान संबंध: पाकिस्तान के प्रति ट्रम्प के अप्रत्याशित रुख से भारत के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

भारत का विकसित होता कूटनीतिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय हित

  • पिछले दशक में भारत की विदेश नीति में कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है।
  • चीन के साथ संबंधों में सुधार के बारे में प्रारंभिक आशावाद डोकलाम और गलवान में सीमा पर आक्रामकता के कारण शीघ्र ही समाप्त हो गया, जिससे बीजिंग के आक्रामक इरादे प्रदर्शित हो गए।
  •  चीन के साथ बढ़ता शक्ति असंतुलन भारत के लिए दीर्घकालिक रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करता है।

आगे की राह

  • द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता देना: भारत को द्विपक्षीय संबंधों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो सीधे राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करते हों तथा प्रतीकात्मकता की तुलना में सार को प्राथमिकता देनी चाहिए
  • घरेलू नींव को मजबूत करना: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शक्ति प्रदर्शित करने की भारत की क्षमता आंतरिक शक्ति और लचीलेपन पर निर्भर करती है। आर्थिक सुधारों में तेजी लाना और घरेलू राजनीतिक एकता बहाल करना महत्वपूर्ण है।
  • पुनः क्षेत्रीय नेतृत्व प्राप्त करना: चीन, सार्क की शिथिलता का फायदा उठाते हुए, पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत के बिगड़े हुए संबंधों के कारण उत्पन्न क्षेत्रीय शून्यता को भरने की कोशिश कर रहा है।
    • बीजिंग ने पहले ही अपना हिंद महासागर मंच बना लिया है।
    • यह अर्जेंटीना, ब्राजील, घाना और नामीबिया में अपनी आर्थिक उपस्थिति को मजबूत कर रहा है।
    • भारत को दक्षिण एशिया में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका पुनः प्राप्त करनी होगी। इसके लिए आवश्यक है कि वह किसीबड़े भाईहोने कीहीन भावनासे ग्रसित होकर पहल न करे।
  • व्यावहारिक साझेदारी: विकासशील देशों के साथ संबंधों में वैचारिक संरेखण के बजाय व्यापार, प्रौद्योगिकी और रक्षा में यथोचित सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

ऐसे समय में जब महाशक्तियों के साथ-साथ पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों में नई अनिश्चितताएं व्याप्त हो रही हैं, भारत को घरेलू स्तर पर आर्थिक सुधारों में तेजी लाने, घरेलू राजनीतिक एकता बहाल करने, उपमहाद्वीप का नेतृत्व पुनः प्राप्त करने तथा प्रमुख विकासशील देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत की बहु-गठबंधन रणनीति ने उसे प्रतिस्पर्धी वैश्विक शक्तियों के साथ जुड़ने में सक्षम बनाया है। ध्रुवीकृत अंतर्राष्ट्रीय वातावरण में इस दृष्टिकोण को बनाए रखने के अवसरों और चुनौतियों का विश्लेषण करें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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