जन्म: भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले (वर्तमान फैसलाबाद, पाकिस्तान) के बंगा गाँव में हुआ था।
मृत्यु: 1931 में केवल 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के लिए उन्हें फाँसी की सजा दे दी गई थी।
राजनीतिक रूप से सक्रिय: भगत सिंह के पिता किशन और चाचा अजीत दोनों ही अंग्रेजों के खिलाफ राजनीतिक रूप से सक्रिय थे।
उनके चाचा को उनके भड़काऊ भाषणों और पंजाब उपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ आंदोलन के लिए 1907 में मांडले निर्वासित कर दिया गया था।
ग़दर पार्टी के साथ जुड़ाव: अपनी रिहाई के बाद, वह यूरोप और फिर अमेरिका चले गए जहाँ से वे सैन-फ्रांसिस्को स्थित ग़दर पार्टी से जुड़ गए थे।
डिसेंटर: क्रिस मोफैट ने इंडियाज रिवोल्यूशनरी इनहेरिटेंस: द पॉलिटिक्स एंड प्रॉमिस ऑफ भगत सिंह (2019) में लिखा – “असहमति रखने वालों के परिवार से एक डिसेंटर।”
विद्वत्तापूर्ण कार्य
पत्रिकाएँ: उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी की पत्रिका कीर्ति के लिए और कुछ समय के लिए दिल्ली में प्रकाशित वीर अर्जुन अखबार के लिए काम किया ।
भगत सिंह अक्सर बलवंत, रंजीत और विद्रोही जैसे छद्म नामों का इस्तेमाल करते थे।
काव्यात्मक प्रभाव: उनकी जेल नोटबुक से न केवल उनकी सामाजिक और राजनीतिक चिंताओं का पता चलता है बल्कि इससे उनकी साहित्यिक रुचियों का भी पता चलता है।
वे जेल में रहते हुए रवींद्रनाथ टैगोर, विलियम वर्ड्सवर्थ, वाजिद अली शाह, जॉन मिल्टन, मिर्जा गालिब और इकबाल जैसे कवियों की कविताएँ पढ़ते थे ।
धार्मिक और राजनीतिक मान्यताएँ: भगत सिंह नास्तिक और अराजकतावादी झुकाव वाले मार्क्सवादी थे।
भगत सिंह द्वारा नास्तिकता का अभ्यास करने के कारण:
तर्कवाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण: भगत सिंह आलोचनात्मक सोच और साक्ष्य-आधारित समझ में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे।
उनके लिए, वैज्ञानिक सिद्धांतों ने दुनिया को समझने के लिए धार्मिक सिद्धांतों की तुलना में अधिक विश्वसनीय और तार्किक रूपरेखा प्रदान की।
समाजवाद और वर्ग संघर्ष: भगत सिंह भी समाजवादी आदर्शों के समर्थक थे और धर्म, विशेष रूप से संगठित धर्म को शासक वर्ग द्वारा जनता को नियंत्रित करने और हेरफेर करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एक उपकरण के रूप में देखते थे।
हठधर्मिता और अंधविश्वास का विरोध: उन्होंने तर्क दिया कि अंध विश्वास और धार्मिक सिद्धांतों की निर्विवाद स्वीकृति, प्रगति और आलोचनात्मक सोच में बाधा बनती है।
वे तर्क और वैज्ञानिकता के विचार में विश्वास रखते थे।
धर्मनिरपेक्षता और समावेशिता: उन्होंने एक लोकतांत्रिक राज्य के विचार का विरोध किया और राज्य के मामलों से धर्म को अलग करने संबंधी मत को स्वीकृति दी।
भगत सिंह का बचाव:
जिन्ना का बचाव: ब्रिटिश ने एक विधेयक पारित करने का प्रयास किया, जो अभियुक्तों की उपस्थिति के बिना – अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने को कानूनी बना देगा और जिन्ना इसके खिलाफ दृढ़ता से खड़े रहे।
जवाहरलाल नेहरू का बचाव: नेहरू कानूनी प्रक्रिया और अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अन्याय के आलोचक थे।
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