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बजट निर्माण तथा उसमें केन्द्रीय संसद की भूमिका

Lokesh Pal March 22, 2025 05:00 38 0

संदर्भ:

भारत का कार्यकारी-संचालित बजट (वार्षिक वित्तीय विवरण) संसदीय निगरानी को सीमित करता है, जिससे राजकोषीय पारदर्शिता बढ़ाने के लिए संसदीय बजट कार्यालय की माँग उठ रही है।

वार्षिक वित्तीय विवरण (केन्द्रीय बजट) 

  • भूमिका: बजट राष्ट्र की प्राथमिकताओं, आर्थिक दृष्टि और सुशासन के दर्शन को प्रदर्शित करता है। लोकतंत्र में वित्तीय शक्ति संसद के पास होती है, जो राजकोषीय अनुशासन और पारदर्शिता को सुनिश्चित करती है।
  • भारत में बजट: हालाँकि, भारत में संसदीय प्रभाव न्यूनतम रहता है, जिसमें कार्यकारी-संचालित प्रक्रिया होती है, जो सरकार के विधायकों को दरकिनार करती है|
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया: बजट निर्माण एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है, जो सार्वजनिक संसाधनों को आवंटित करती है और आर्थिक प्राथमिकताओं को परिभाषित करती है।
  • जाँच: विधायी जाँच ने ऐतिहासिक रूप से कार्यकारी अतिक्रमण को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • वैश्विक उदाहरण: वैश्विक स्तर पर विधायिकाओं का बजट निर्माण पर भिन्न-भिन्न प्रभाव होता है:
    • कुछ लोग बजट प्रस्तावों को सक्रिय रूप से संशोधित करते हैं।
    • अन्य लोग केवल कार्यकारी निर्णयों को मंजूरी देते हैं।
    • अधिक पारदर्शिता और संसदीय भागीदारी से बेहतर आर्थिक स्थिरता तथा सामाजिक परिणाम प्राप्त होते हैं।

भारत में बजट निर्माण में संसद की भूमिका

  • कार्यपालिका द्वारा संचालित: भारत में बजट निर्माण मुख्य रूप से कार्यपालिका द्वारा संचालित होता है।
  • सीमित निरीक्षण: वित्त मंत्रालय बिना किसी व्यापक मंत्रिस्तरीय चर्चा के बजट तैयार करता है। यहाँ तक ​​कि कैबिनेट मंत्री भी लोकसभा में इसके प्रस्तुत होने तक इसके बारे में जानकारी नहीं रखते हैं, परिणामस्वरूप खंडित चर्चा और सीमित निरीक्षण होता है, जिससे प्रतिनिधि लोकतंत्र कमजोर होता है।
    • उदाहरण के लिए: 2016 में ₹500 और ₹1000 के नोटों का विमुद्रीकरण RBI अधिनियम की धारा 26(2) के तहत एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से लागू किया गया, जिसमें पूर्व संसदीय अनुमोदन को दरकिनार कर दिया गया था।
  • राज्यसभा की भूमिका: एक लोकतांत्रिक संस्था होने के बावजूद, बजट चर्चाओं में राज्यसभा की कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं होती है। विडंबना यह है, कि राज्यसभा से कोई वित्त मंत्री लोकसभा में अपने बजट पर मतदान नहीं कर सकता।
    • यह ब्रिटिश हाउस ऑफ लॉर्ड्स के विपरीत है, जो निर्वाचित न होने के बावजूद कुछ वित्तीय प्रभाव रखता है।
  • स्पष्ट चर्चा का अभाव: खराब चर्चा की गुणवत्ता, संक्षिप्त चर्चा और विषय समितियों द्वारा अप्रभावी जाँच विधायी निरीक्षण को कमजोर करती है।
  • शक्ति का अभाव: सांसदों के पास बजट प्रस्तावों को संशोधित करने या महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने की शक्ति का अभाव है, जिससे उनकी भूमिका निष्क्रिय अनुमोदन तक सीमित हो जाती है। 
    • यह यथास्थिति गैर-लोकतांत्रिक है, जो सरकार की जवाबदेही को कमजोर करती है। 
  • लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व में कमी: वर्तमान बजटीय प्रक्रिया निर्वाचित प्रतिनिधियों को दरकिनार कर देती है, जिससे वित्तीय नीतियों को आकार देने में उनकी भूमिका सीमित हो जाती है।
    • इससे लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व कमजोर होता है, क्योंकि संसद बजट निर्माण में सक्रिय भागीदार की  बजाय निष्क्रिय प्राप्तकर्ता बनी रहती है।

बजट निर्माण में संसद की भूमिका को मज़बूत करने हेतु सुधार

  • समर्पित चर्चा अवधि: संसद को सार्थक विधायी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए मानसून सत्र के दौरान पाँच से सात दिन की बजट-पूर्व चर्चा शुरू करनी चाहिए।
    • इससे राजकोषीय स्वास्थ्य का आकलन करने, बजट प्राथमिकताओं को रेखांकित करने और सरकार के विचार के लिए एक आर्थिक रोडमैप तैयार करने में मदद मिलेगी।
  • समन्वय विस्तार: विषय समितियों के बीच बेहतर समन्वय से सूचित और रचनात्मक बजट इनपुट प्राप्त होंगे।
  • सार्वजनिक प्रतिनिधित्व: बजट-पूर्व चर्चा विधायकों को सार्वजनिक चिंताओं को व्यक्त करने, संसाधन आवंटन का सुझाव देने तथा नीतिगत विकल्पों पर विचार-विमर्श करने में सक्षम बनाएगी।
  • पारदर्शिता और विश्वास: अधिक सार्वजनिक भागीदारी वित्तीय जवाबदेही और वित्तीय शासन में पारदर्शिता  को बढ़ावा देगी।
  • विश्लेषणात्मक अंतर: भारत में विधायकों की सहायता के लिए एक स्वतंत्र, पारदर्शी बजट विश्लेषण तंत्र का अभाव है।
  • वैश्विक प्रयास: यू.एस. कांग्रेसनल बजट कार्यालय (CBO) और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा तथा यूके में इसी तरह के संस्थानों के बाद, एक संसदीय बजट कार्यालय (PBO) निम्नलिखित कार्य करेगा:
    • डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि और आर्थिक पूर्वानुमान; 
    • सरकारी व्यय, राजस्व अनुमान और राजकोषीय प्रवृत्तियों का विश्लेषण;
    • राजकोषीय नीतियों का स्वतंत्र मूल्यांकन |
  • संसदीय बजट कार्यालय (PBO) की भूमिका: PBO विधायकों को नीतिगत संक्षिप्त जानकारी प्रदान करेगा, जिससे उन्हें सूचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। कार्यकारी प्राधिकरण पर अतिक्रमण करने की बजाय, यह वस्तुनिष्ठ शोध के माध्यम से शासन को पूरक बनाएगा।
  • जाँच को मजबूत करना: विधायी जाँच को मजबूत करने से एक अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बजट प्रक्रिया सुनिश्चित होगी।

निष्कर्ष 

उपर्युक्त सुधार प्रक्रियागत परिवर्तनों से कहीं आगे जाते हैं, जो सार्वजनिक वित्तीय निर्णयों पर सामूहिक विचार-विमर्श सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं। स्पष्ट है कि संसद की अधिक भागीदारी से अधिक न्यायसंगत आर्थिक नीतियाँ तथा पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

वर्तमान बजट-निर्माण प्रक्रिया में भारतीय संसद की भूमिका की आलोचनात्मक जाँच कीजिए। बजट-पूर्व चर्चाओं की शुरुआत और संसदीय बजट कार्यालय (PBO) की स्थापना आर्थिक नीतियों को आकार देने में इसकी प्रभावशीलता को कैसे बढ़ा सकती है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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