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क्या शिक्षण के मूल आदर्शों को खोए बिना कक्षा में AI को अपनाया जा सकता है?

Lokesh Pal September 06, 2025 05:15 39 0

संदर्भ:

वर्त्तमान में शिक्षकों को कक्षा की जिम्मेदारियों के साथ-साथ अनेक संस्थागत मांगों में संतुलन स्थापित करना पड़ता है।

  • चिंतनशील/विचारात्मक शिक्षक की पारंपरिक छवि अब प्रौद्योगिकी-संचालित वातावरण में अतिसक्रिय प्रबंधक की छवि में बदल गई है
  • जैसा कि बौद्रिलार्ड ने तर्क दिया, विश्व “अतिवास्तविक ” हो गई है, अब शिक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वे इस अतिवास्तविक, तकनीक-मध्यस्थ वास्तविकता के अनुकूल बने।

कक्षाओं में AI को अपनाने से संबंधित प्रमुख चिंताएँ:

  • चिंतन से अतिसक्रियता की ओर बदलाव: शिक्षकों को चिंतनशील मार्गदर्शक के बजाय अतिसक्रिय प्रबंधकों के रूप में देखा जाने लगा है, जिससे शिक्षण की चिंतनशील भूमिका कम हो रही है।
  • शिक्षा का तकनीकी दृष्टिकोण: शैक्षणिक संस्थान अक्सर अच्छे शिक्षण को प्रौद्योगिकी-संचालित प्रदर्शन के बराबर मानते हैं, तथा गहन शैक्षणिक मूल्यों को दरकिनार कर देते हैं।
  • निष्क्रिय उपभोक्ता: AI को अपनाने के तीव्र प्रयास से शिक्षकों और विद्यार्थियों के आलोचनात्मक विचारकों के बजाय प्रौद्योगिकी के निष्क्रिय उपभोक्ता बनने का खतरा है।
  • तकनीक-प्रेमी होने का सतही मापदंड: “तकनीक-प्रेमी” होने को संकीर्ण रूप से गैजेट्स और ऑडियो-विजुअल उपकरणों के उपयोग के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें शिक्षण के वास्तविक परिवर्तनकारी पहलुओं की अनदेखी की जाती है।
  • मानव क्षमता की उपेक्षा: शिक्षक और छात्र के बीच विश्वास, संवाद और पारस्परिक शिक्षा का मानवीय आयाम अक्सर प्रौद्योगिकी द्वारा प्रभावित होता है।
  • दोहरे नैतिक मापदंड: शैक्षिक सामग्री बनाने के लिए ChatGPT जैसे AI उपकरणों का उपयोग नैतिक मुद्दों को उठाता है। ये मुद्दे विशेष रूप से साहित्यिक चोरी और छात्र मूल्यांकन में निष्पक्षता से संबंधित हैं।
  • सृजनात्मकता का दमन: जटिल संस्थागत मांगों के कारण शिक्षकों के तकनीकी-प्रबंधक बनने का खतरा है, जिससे प्रौद्योगिकी के साथ सार्थक नवाचार करने के लिए उनके स्थान सीमित हो जाएंगे।
  • मानवतावादी आदर्शों का क्षरण: AI-संचालित शिक्षा की ओर बढ़ती हुई होड़, रवींद्रनाथ टैगोर के उस दृष्टिकोण को खतरे में डालती है, जिसमें उन्होंने छात्रों को निर्भरता से स्वतंत्रता की ओर ले जाने वाली शिक्षण प्रक्रिया के रूप में शिक्षण की बात कही थी।
    • तकनीकी-स्मार्ट प्रशिक्षकों की कठोर मांग के विपरीत, यह मॉडल शिक्षण में स्वतंत्रता, रचनात्मकता और नवाचार पर बल देता है।
      • यदि शिक्षकों को इसे यांत्रिक तरीके से उपयोग करने के बजाय कल्पनाशील तरीके से उपयोग करने की स्वतंत्रता दी जाए तो प्रौद्योगिकी मुक्तिदायक साबित हो सकती है।

आगे की राह:

  • स्मार्टनेस को पुनर्परिभाषित करना: कक्षाओं में रचनात्मकता और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए गैजेट के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • मानवतावाद और प्रौद्योगिकी में संतुलन: यह सुनिश्चित करना कि AI शिक्षक और छात्र के बीच संवादात्मक संबंध को प्रतिस्थापित न करके उसका पूरक बने।
  • शिक्षकों को सशक्त बनाना: शिक्षकों को तकनीकी-प्रबंधक बनाने के बजाय उन्हें नवीन तकनीक का उपयोग करने का अवसर प्रदान करना।
  • नैतिक स्पष्टता सुनिश्चित करना: दोहरे मानदंडों से बचने के लिए शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए AI के उपयोग पर सुसंगत मानदंड तैयार करना।
  • मानवतावादी आदर्शों को संरक्षित रखना: टैगोर के दृष्टिकोण का बढ़ावा देना, शिक्षक एक मार्गदर्शक है जो छात्रों को स्वतंत्रता और स्वाधीनता के लिए प्रेरित करता है।

निष्कर्ष:

 शिक्षण में तकनीक को नियंत्रण के बजाय सशक्तिकरण के साधन के रूप में कार्य करना चाहिए। कक्षाओं में बेहतर समझदारी नवाचार को विश्वास, संवाद और सीखने की स्वतंत्रता के मानवतावादी आदर्शों के साथ सम्मिश्रित करने में निहित है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: AI शिक्षकों के लिए मुक्तिदायक हो सकता है, लेकिन इससे उन्हें तकनीकी-प्रबंधक बनने का भी खतरा है। समकालीन भारतीय शिक्षा के संदर्भ में इस दुविधा पर चर्चा कीजिए। भारत एक वैश्विक AI केंद्र बनने और शिक्षण-अधिगम के मानवतावादी सार को बनाए रखने के बीच कैसे संतुलन स्थापित कर सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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