प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत(DPSPs), संपत्ति का अधिकार।
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSPs) के मध्य संघर्ष, निजी संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले।
संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर सुनवाई कर रहा है कि क्या ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों’ में संविधान के अनुच्छेद 39 (b) के तहत निजी स्वामित्व वाले संसाधन शामिल हैं।
निजी स्वामित्व वाली संपत्ति के पुनर्वितरण का प्रावधान:
संविधान का अनुच्छेद 39(b): संविधान के भाग IV में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSPs) के तहत आने वाला अनुच्छेद 39(b) सरकार को समाज के कल्याणार्थ भौतिक संसाधनों को उचित तरीके से साझा करने के लिए नीतियां बनाने का अधिकार देता है।
गैर-प्रवर्तनीय दिशा-निर्देश: DPSP ऐसे कानूनों के अधिनियमन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत है, लेकिन ये किसी भी अदालत में सीधे प्रवर्तनीय योग्य नहीं हैं।
निजी स्वामित्व वाली संपत्ति के पुनर्वितरण से संबंधित विचार:
कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी 1977: SC की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से माना कि निजी स्वामित्व वाले संसाधन “समुदाय के भौतिक संसाधनों” के दायरे में नहीं आते हैं।
निजी स्वामित्व वाले संसाधनों परन्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के विचार: ‘निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को भी समुदाय का भौतिक संसाधन माना जाना चाहिए।’
संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल (1983): इसके तहत पांच न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया कि यह प्रावधान निजी से सार्वजनिक स्वामित्व में धन के हस्तांतरण पर विचार करता है और यह उन संपत्तियों तक सीमित नहीं है जो पहले से ही सार्वजनिक हैं।
मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ (1996): न्यायमूर्ति परिपूर्णन ने न्यायमूर्ति अय्यर की राय से सहमति जताते हुए कहा कि ‘भौतिक संसाधनों’ में प्राकृतिक या भौतिक संसाधन शामिल होंगे जो चल या अचल संपत्ति हैं और इनमें भौतिक जरूरतों को पूरा करने के सभी निजी और सार्वजनिक स्रोत शामिल हैं, न कि केवल सार्वजनिक संपत्ति तक ही सीमित है।
महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 (MHADA):
उद्देश्य: इसे तेजी से असुरक्षित होने के बावजूद पुरानी, जीर्ण-शीर्ण इमारतों में (गरीब) किरायेदारों के रहने की समस्या का समाधान करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
उपकर (Cess) की गई संपत्तियां : MHADA ने इमारतों में रहने वालों पर उपकर लगाया, जिसका भुगतान मरम्मत और बहाली परियोजनाओं की देखरेख के लिए मुंबई बिल्डिंग रिपेयर एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड (MBRRB) को किया जाएगा।
1986 का संशोधन: अनुच्छेद 39(b) को लागू करके,
MHADA में धारा 1A जोड़ी गई: इसका उद्देश्य भूमि और इमारतों के अधिग्रहण की योजनाओं को क्रियान्वित करना है, ताकि उन्हें “जरूरतमंद व्यक्तियों” और “ऐसी भूमि या इमारतों के कब्जेदारों” को हस्तांतरित किया जा सके।
अध्याय VIII-A को सम्मिलित करना : इसमें ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो राज्य सरकार को उपकर भवनों (और जिस भूमि पर ये निर्मित किये गये हैं) का अधिग्रहण करने की अनुमति देते हैं,यदि 70% निवासी ऐसा अनुरोध करते हैं।
समानता के अधिकार का उल्लंघन: मुंबई में संपत्ति मालिकों के संगठन ने MHADA के अध्याय VIII-A को बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी और दावा किया कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत संपत्ति मालिकों के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
DPSP को प्रतिरक्षा : अदालत ने माना कि DPSP को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से निर्मित कानूनों को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 31C (“कुछ निर्देशक सिद्धांतों को प्रभावी करने वाले कानूनों को बचाना”) के अनुसार समानता के अधिकार का उल्लंघन किया है।
समुदाय के भौतिक संसाधनों की व्याख्या: इस संगठन ने दिसंबर 1992 में सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष, केंद्रीय प्रश्न यह बन गया कि क्या अनुच्छेद 39 (b) के अनुसार “समुदाय के भौतिक संसाधनों” में निजी स्वामित्व वाले संसाधन शामिल हैं, जिनमें उपकर धारित इमारतें शामिल होंगी।
निष्कर्ष:
इस सुनवाई के नतीजे ने सिद्ध किया कि इसमें भारत में,निजी संपत्ति पर सरकारी अधिकार की सीमा,(खासकर सार्वजनिक कल्याण के लिए धन के वितरण के संबंध में) को फिर से परिभाषित करने की सामर्थ्य है। यह निर्णय वर्षों के कानूनी विश्लेषण पर आधारित होगा और भविष्य में संपत्ति से संबंधित अधिकारों और सामाजिक नीतियों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न : (UPSC:2020)
प्रश्न. भारत के संविधान का कौन सा भाग “कल्याणकारी राज्य के आदर्श की घोषणा” करता है?
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