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मृत्यु दंड (Capital Punishment)

Samsul Ansari January 30, 2024 06:35 179 0

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका के अलबामा में पहली बार मृत्यु दंड के लिए नाइट्रोजन हाइपॉक्सिया का उपयोग करके किसी दोषी को मृत्यु दी गई है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मृत्यु दंड।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: मृत्यु दंड- महत्त्व, चुनौतियाँ और आगे की राह।

मृत्यु दंड के बारे में

  • मृत्यु दंड: मृत्यु दंड का आदेश किसी अपराध के कारण राज्य द्वारा दिया जाता है। जिन अपराधों के परिणामस्वरूप मृत्यु दंड की सजा हो सकती है उन्हें मृत्यु दंड या मृत्यु दंड अपराध के रूप में जाना जाता है।
  • उद्देश्य: मृत्यु दंड देने का मुख्य कारण ऐसे अपराधों के दोहराव या ऐसे अन्य अपराधों  को रोकने में इसकी प्रभावशीलता से है।

विश्व भर में मृत्यु दंड की स्थिति

  • दुनिया भर के 36 देशों द्वारा दंड देने की इस व्यवस्था को अपनाया गया है और 103 देशों द्वारा इसे सभी अपराधों के लिए पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है।
  • यूरोपीय संघ: यूरोपीय संघ के मौलिक अधिकारों के चार्टर का अनुच्छेद-2, सजा के रूप में मृत्यु दंड के प्रावधानों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
  • यूरोपीय परिषद: यूरोपीय परिषद के 47 सदस्य देशों द्वारा मृत्यु दंड के प्रयोग पर रोक लगाया गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प: वर्ष 2007, 2008, 2010, 2012 और 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा अपनाए गए संकल्प के तहत मृत्यु दंड को समाप्त करने के संबंध में सहमति बनाते हुए अंततः गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव पारित किए गए।
  • हालाँकि कई देशों ने मृत्यु दंड को समाप्त कर दिया है लेकिन चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और इंडोनेशिया द्वारा मृत्यु दंड को सजा के रूप में अभी भी जारी रखा गया है।

भारत में मृत्युदंड

  • सांख्यिकी: भारत में मृत्यु दंड: वार्षिक सांख्यिकी 2022′ रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2007 से 2022 तक केवल सात लोगों को मौत की सजा दी है। वर्ष 2023 में सभी मौत की सजाएँ या तो रद्द कर दी गईं या आजीवन कारावास में बदल दी गईं, क्योंकि वे “दुर्लभ से दुर्लभतम मामले” के तहत नहीं आते थे।
  • ट्रायल कोर्ट : वर्ष 2022 में ट्रायल कोर्ट द्वारा 165 मौत की सजा सुनाई गई थी, जो विगत दो दशकों में सबसे अधिक है।
  • वैधानिक प्रावधान: वायु सेना अधिनियम, 1950, सेना अधिनियम, 1950, और नौसेना अधिनियम, 1957 अपराधों के लिए सजा प्रदान करते हैं, जिसमें फाँसी या गोली मारकर मृत्युदंड देने का प्रावधान भी शामिल है।

मृत्युदंड पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • जगमोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1972): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्यु दंड को बरकरार रखा था।
  • राजेंद्र प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1979): सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि मौत की सजा सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत संरक्षित लोगों के जीवन को प्रभावित करती है।
  • मृत्युदंड देने के मामले में दो चीजों की अनिवार्यता
    • किसी मामले में मृत्यु दंड देने के लिए विशेष कारण दर्ज किए जाने चाहिए।
    • मृत्यु दंड केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिए।
  • बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड को बरकरार रखा, लेकिन इसे ‘दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों’ तक सीमित कर दिया गया।
  • दीना दयाल बनाम भारत संघ और अन्य (1983): इस मामले में यह निर्णय देकर मृत्यु दंड को बरकरार रखा कि फाँसी दर्द रहित होनी चाहिए और “किसी भी अन्य ज्ञात विधि से दोषी को अधिक दर्द नहीं होना चाहिए”

मृत्यु दंड के पक्ष में तर्क

  • प्रतिशोध: मृत्यु की सजा को हत्या करने वाले दोषी के लिए उचित प्रतिशोध के रूप में देखा जाता है।
  • उपयोगितावाद: इसके अनुसार समाज का परिणामी कल्याण अपराधी के जीवन के अभाव से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • निवारण: मौत की सजा संभावित अपराधियों के लिए निवारण का काम करती है।
  • सार्वजनिक सुरक्षा: किसी हत्यारे की रिहाई की संभावना को समाप्त करते हुए जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • सबसे कम मानवीय तरीका: मृत्यु दंड कठोर या अमानवीय न होने के अलावा इसे दंड निष्पादन के सबसे कम सामान्य तरीके के रूप में देखा जाता है।

 मृत्युदंड के विरुद्ध तर्क

  • जीवन के अधिकार का उल्लंघन: यह भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
  • वैकल्पिक तरीके: भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य द्वारा स्वीकृत निष्पादन यथासंभव सहज और दर्द रहित होना चाहिए।
  • खराब निवारण प्रभाव: सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा दर्शाया गया था कि मृत्यु दंड का कोई निवारक प्रभाव नहीं था और विश्व भर के लोगों के विचार इसके उन्मूलन के पक्ष में ही थे ।
  • सुधार: आजीवन कारावास पुनर्वास का अवसर उपलब्ध कराता है, जबकि मृत्यदंड से ऐसा संभव नहीं है।
  • निर्दोषों को फाँसी: कुछ मामलों में, आतंकवाद विरोधी कानूनों द्वारा स्थापित विशेष या सैन्य अदालतों द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन करते हुए नागरिकों को मौत की सजा सुनाई गई है।
  • भेदभावपूर्ण: भारत की मृत्युदंड रिपोर्ट के अनुसार, मृत्युदंड के लगभग 76% दोषी निचली और पिछड़ी जातियों के थे।

आगे की राह

  • आजीवन कारावास एक विकल्प: भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने ‘आजीवन कारावास’ को किसी के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए एक शब्द के रूप में परिभाषित किया है और यह मौत की सजा के  एक डिफॉल्ट विकल्प के रूप में होना चाहिए।
  • क्षमा का विकल्प: कानून से मृत्यु दंड की सजा के प्रावधान को हटाकर एक तर्कसंगत और सार्वभौमिक माफी नीति पेश करके  न्याय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार किए जाने की आवश्यकता है।
  • पुनर्वास का अधिकार : समाज की सहायता लेना दोषी का नैतिक अधिकार होता है।
  • विधि आयोग की सिफारिश: कुछ मामलों को छोड़कर, जहाँ अभियुक्त को आतंक से संबंधित अपराध में दोषी ठहराया गया है, मृत्यु दंड को समाप्त किया जाना चाहिए।

                                                                                        News Source: The Indian Express

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