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Lokesh Pal October 21, 2024 05:30 46 0
हाल ही में दूरदर्शी तथा प्रसिद्ध कारोबारी ‘रतन टाटा’ के निधन पर भारत और विश्व भर से श्रद्धांजलि दी गई। उनकी विरासत ने भारत में पूँजीवाद के भविष्य और व्यापार में नैतिक नेतृत्व के महत्त्व पर नए सिरे से विचार-विमर्श को जन्म दिया।
रतन टाटा के प्रति हाल ही में प्रदर्शित वैश्विक प्रेम कोई नई बात नहीं है; टाटा समूह ने लगभग एक शताब्दी से जनता की प्रशंसा अर्जित की है, जो पारंपरिक पूँजीवाद की संभावित कमियों को दर्शाता है।
हालाँकि भारत ने ऐसे कुछ ही लोगों को देखा है, अब अधिक-से-अधिक लोगों को नैतिक आचरण और सामाजिक उत्तरदायित्व अपनाने, सतत विकास और उत्तरदायी औद्योगिक परिदृश्य को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करने तथा प्रेरित करने की आवश्यकता है।
भारत एक ऐसा नीतिगत ढाँचा तैयार करके करुणामय पूँजीवाद को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है, जो करुणामय प्रथाओं और सुदृढ़ व्यावसायिक उद्देश्यों दोनों को प्रोत्साहित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि कंपनियाँ समाज में सकारात्मक योगदान करते हुए विकसित हो सकें।
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