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भारत में जातिगत जनगणना: एक समग्र विश्लेषण

Lokesh Pal May 03, 2025 05:00 7 0

संदर्भ:

हाल ही में, राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCPA) ने अपने 2021 के दृष्टिकोण को परिवर्तित करते हुए आगामी जनगणना के हिस्से के रूप में जातिगत जनगणना को मंजूरी दे दी है।

नई घोषणा: अगली जनगणना में जाति आधारित आँकड़ें

  • सरकार आगामी जनगणना में जाति आधारित आँकड़ों को शामिल करेगी।
  • पारदर्शी, संरचित प्रश्नावली का उपयोग किया जाएगा।
  • जैसे बिहार का 17 कॉलम वाला जाति सर्वेक्षण फॉर्म।
  • अन्य पिछड़ा वर्ग उप-जातियों, अल्पसंख्यकों पर भी डेटा।
  • पहचानने में मदद करता है, कि कौन बहुसंख्यक, सम्पन्न या हाशिए पर है।

जनगणना: मुख्य बिंदु

  • परिभाषा: जनगणना एक दशकीय, राष्ट्रव्यापी जनसंख्या सर्वेक्षण है, जिसके द्वारा जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक आँकड़ें एकत्र किए जाते हैं।
  • ऐतिहासिक उत्पत्ति: जनगणना 1872 से नियमित रूप से आयोजित की जाती रही है तथा पहली पूर्ण जनगणना उसी वर्ष ब्रिटिश शासन के अधीन आयोजित की गई थी।
  • स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक प्राधिकारी: स्वतंत्रता के बाद, जनगणना अधिनियम-1948 के तहत भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जनगणना का संचालन किया जाता है।
  • स्वतंत्रता के बाद से जनगणना रिकॉर्ड: स्वतंत्रता के बाद से, भारत सरकार ने कुल 15 जनगणना आयोजित की हैं, जिनमें से अंतिम जनगणना वर्ष 2011 में हुई थी।
  • 2021 की जनगणना की स्थिति: 2021 के लिए निर्धारित जनगणना को COVID-19 के कारण स्थगित कर दिया गया, जिसे अभी तक आयोजित नहीं किया गया है।
  • विधिक ढाँचा: 1951 के बाद से सभी जनगणना, भारतीय जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत आयोजित की गई हैं।
  • संवैधानिक स्थिति: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के अंतर्गत जनगणना एक संघीय विषय है (प्रविष्टि 69, संघ सूची, अनुसूची VII)

ऐतिहासिक संदर्भ

  • औपनिवेशिक युग की आधार रेखा: अंतिम जाति-आधारित जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के तहत आयोजित की गई थी।
  • अप्रकाशित प्रयास: SECC-2011 में जातिगत आँकड़ें एकत्र करने का प्रयास किया गया, लेकिन आँकड़ों में विसंगतियों के कारण परिणाम जारी नहीं किए जा सके।
  • वर्तमान डेटा अंतराल: वर्तमान जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) शामिल हैं, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अन्य हाशिए के समूह शामिल नहीं हैं।

जाति आधारित जनगणना के लाभ

  • डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि: सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल और जातियों में असमानताओं का सटीक आकलन करने में सक्षम बनाता है।
  • लक्षित नीति-निर्माण: लक्षित कल्याणकारी योजनाओं और संसाधनों के कुशल आवंटन को सुगम बनाता है।
  • नीति प्रभाव मापन: आरक्षण और सकारात्मक कार्रवाई नीतियों की प्रभावशीलता के मूल्यांकन के लिए एक उपकरण प्रदान करता है।
  • हाशिए पर व्याप्त लोगों को सशक्त बनाना: ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर व्याप्त समुदायों को पहचानने और दृश्यता प्रदान करने में सहायता करता है।
  • लोकतंत्र को मजबूत बनाना: लोकतांत्रिक भागीदारी को मजबूत बनाता है और सार्वजनिक संस्थाओं में प्रतिनिधित्व बढ़ाता है।
  • वास्तविकता को स्वीकार करना: भारत में जारी जाति-आधारित असमानता की वास्तविकताओं को स्वीकार करना।

संवैधानिक मूल्य

  • संवैधानिक मूल्यों के साथ संरेखण: न्याय, समानता, बंधुत्व और समावेशी विकास के प्रति भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धता के साथ संरेखित।
  • तथ्य-आधारित शासन: शासन को मान्यताओं से तथ्यों की ओर तथा बहिष्कार को सशक्तीकरण की ओर स्थानांतरित करता है।

चुनौतियाँ और जोखिम

  • निष्पादन जटिलता: त्रुटियों से बचने के लिए सावधानीपूर्वक नियोजन, पारदर्शिता और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।
  • दुरुपयोग की संभावना: जोखिमों में जातिगत आँकड़ों का संभावित राजनीतिकरण और दुरुपयोग शामिल है।
  • डेटा की प्रामाणिकता महत्त्वपूर्ण: जनगणना के उद्देश्यों की सफलता के लिए डेटा की प्रामाणिकता और नैतिक प्रबंधन सुनिश्चित करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत आँकड़ों को शामिल करना साक्ष्य-आधारित शासन की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम है, जिसका उद्देश्य हाशिए पर व्याप्त समुदायों को सशक्त बनाना तथा समानता और सामाजिक न्याय के संवैधानिक दृष्टिकोण को बनाए रखना है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत में राष्ट्रव्यापी जातिगत जनगणना के राजनीतिक, संवैधानिक और सामाजिक निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। क्या इसे सामाजिक न्याय या राजनीतिक रणनीति के साधन के रूप में देखा जाना चाहिए?

(15 अंक, 250 शब्द)

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