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नवीकरणीय ऊर्जा की चुनौतियाँ

Lokesh Pal April 22, 2024 05:15 103 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वन अधिकार अधिनियम 2006, सौर पार्क योजना, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, रूफटॉप सौर योजना, ओरांस और सेक्रेड ग्रोव्स।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु प्रतिबद्धता और कार्रवाई में अंतराल,नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग हेतु उठाए गए कदम।

संदर्भ:

  • हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अगले दो वर्षों के महत्त्व पर जोर दिया।
    • विकास, धारणीयता और जलवायु परिवर्तन शमन के बीच जटिल अंतः क्रिया पर्यावरणीय चिंताओं और सामाजिक-आर्थिक आकांक्षाओं के बीच महत्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा की चुनौतियाँ:

  • संबंधों की सीमित समझ: विकास, धारणीयता और जलवायु परिवर्तन-शमन के बीच  संबंधों को अच्छी तरह समझा नहीं गया है।
  • अधारणीय विकास मॉडल: विकास के हमारे वर्तमान मॉडल ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को बढ़ाते हैं ,जो धारणीय नहीं हैं।
  • भारत का महत्वाकांक्षी नेट ज़ीरो जीएचजी उत्सर्जन लक्ष्य: हालाँकि भारत का लक्ष्य 2070 तक नेट ज़ीरो जीएचजी उत्सर्जन को प्राप्त करना है,जो मुख्य रूप से वृहद् पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण से प्रेरित है,लेकिन विकासात्मक या धारणीयता परिणामों पर इस तरह के बदलाव के निहितार्थ स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर स्पष्ट नहीं हैं।

सोलर पार्कों का अवलोकन:

  • वृहद्  पैमाने के सौर पार्कों की भूमिका: वृहद्  पैमाने के सौर पार्क भारत की शमन रणनीति के केंद्र में हैं, जिनका स्थानीय और राष्ट्रीय विकास और धारणीयता  लक्ष्यों पर संभावित प्रभाव पड़ता है।
  • भूमि की आवश्यकता संबंधी चुनौतियाँ : भारत में 214 वर्ग किमी भूमि पर सौर पार्क स्थापित हैं, लेकिन कुछ अध्ययनों का अनुमान है कि  नेट ज़ीरो लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु 50,000-75,000 वर्ग किमी भूमि की आवश्यकता हो सकती है, जो तमिलनाडु के आकार का लगभग आधा है।
  • भादला में  विरोध: भादला में, किसानों को ओरांस नामक पवित्र सामूहिक भूमि को खोना पड़ा तथा  चरवाहों को घटती चरागाह भूमि का सामना करना पड़ रहा है, जिससे कुछ लोगों को अपने पशुधन को औने-पौने दामों पर बेचने हेतु मजबूर होना पड़ा है।
    • इस तरह के नुकसान के कारण वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के तहत आम(सामूहिक) भूमि को मान्यता देने की माँग को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। 
  • पावागाड़ा में किसानों को आर्थिक लाभ: पावागाड़ा में कई किसान सौर पार्कों के लिए भूमि पट्टे पर देने से प्राप्त होनेवाली स्थिर वार्षिक आय से संतुष्ट पाए गए।
    • यह भूमि सूखाग्रस्त थी और इससे कोई उल्लेखनीय कृषि आय नहीं होती थी।
  • सौर पैनल के रखरखाव हेतु जल की आवश्यकता: सौर पैनलों को उनकी नियमित सफाई के लिए बड़ी मात्रा में जल  की आवश्यकता होती है।
  • सौर पार्कों के समीप जल की सीमित उपलब्धता: राष्ट्रीय स्तर पर सौर पार्कों हेतु भूमि की उपलब्धता के आकलन में  जल स्रोतों की उपलब्धता को ध्यान में नहीं रखा गया है।
  • संसाधन हेतु प्रतिस्पर्धा: सौर पार्क कृषि के साथ जल और भूमि जैसे आवश्यक संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, जो संभावित रूप से खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • जैव विविधता की हानि: वृहद् पैमाने के  सौर पार्कों के निर्माण से जैव विविधता में हानि के प्रभाव भी स्थान-विशिष्ट होते हैं।

विभिन्न दृष्टिकोण:

  • सामुदायिक स्वामित्व: सामुदायिक स्वामित्व मॉडल और योजना प्रक्रियाओं में भागीदारी सौर पार्कों से न्यायोचित विकास और राजस्व सृजन को बढ़ावा मिल सकता है।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव  के आकलन से छूट: सौर और पवन ऊर्जा पार्कों के निर्माण को पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव के आकलन से छूट प्रदान की गई है।
  • कानूनी प्रावधानों में संशोधन और सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता: प्रतिकूल सामाजिक और पर्यावरणीय परिणामों को सीमित करने हेतु  कानूनी प्रावधानों और नियामकीय तंत्र को संशोधित और सुदृढ़ किए जाने की आवश्यकता है।
  • स्थानीय शासन को शामिल करना : योजना और स्थान-चयन  प्रक्रियाओं में स्थानीय शासन इकाइयों को शामिल किए जाने से स्थानीय विकासात्मक लक्ष्यों को सौर पार्क के निर्माण के साथ संरेखित करने का अवसर प्राप्त हो सकता है।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक लाभों  में वृद्धि: वन अधिकार अधिनियम के तहत बंजर भूमि का वर्गीकरण और आम(सामूहिक) भूमि की मान्यता से पर्यावरणीय और सामाजिक परिणामों में सुधार हो सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा और कृषि को एकीकृत करना: कृषि के साथ सौर-ऊर्जा उत्पादन हेतु अनुसंधान और प्रयोगों को प्रोत्साहित करने से अक्षय ऊर्जा उत्पादन को कृषि के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जिससे धारणीयता में वृद्धि होगी।

अन्य चुनौतियाँ और अवसर:

  • पवन ऊर्जा का पक्षियों पर  प्रभाव: पवन ऊर्जा उत्पादन का पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • वृहद् पैमाने के नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का  रोजगार पर प्रभाव : वृहद् पैमाने के नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के  जिला स्तर पर सकारात्मक रोजगार परिणाम हो सकते हैं, लेकिन  राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रकों में  बड़े पैमाने पर रोजगार- परिवर्तन को प्रेरित कर सकते हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा हेतु कौशल कार्यक्रम: अकुशल और गरीब आबादी को लक्षित करने वाले पर्याप्त कौशल और प्रशिक्षण कार्यक्रम उनकी सुरक्षा हेतु आवश्यक हैं।

निष्कर्ष:

हमें धारणीयता, जलवायु परिवर्तन शमन और विकास संबंधी परिणामों के बीच तालमेल को अधिकतम करने हेतु अपनी तकनीकी, आर्थिक और संस्थागत तंत्रों को संरेखित करने की आवश्यकता है।

Source: The Hindu

प्रारंभिक परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न.निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:                                                (UPSC:2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
  2. इस गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं।

ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

  1. केवल 1 
  2. केवल 2 
  3. 1 और 2 दोनों 
  4. न तो 1  और न ही 2 

उत्तर: (a)

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