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चीन की विस्तारवादी नीति : भारत के लिए एक गंभीर समस्या

Lokesh Pal January 16, 2025 05:30 4 0

संदर्भ :

हाल ही में चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध निर्माण और लद्दाख में नए जिलों के निर्माण ने भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को चुनौती दी है।

भारत-चीन सीमा पर चीनी आक्रामकता

  • भारत के लिए चुनौती : भारत को चीनी आक्रामकता की दो बड़ी घटनाओं का सामना करना पड़ा-  ब्रह्मपुत्र पर बाँध की घोषणा और लद्दाख में नए जिलों का निर्माण।
  • भारत की प्रतिक्रिया : भारत ने इन कार्रवाइयों की निंदा करते हुए इन्हें अवैध तथा अपनी संप्रभुता के लिए प्रत्यक्ष खतरा बताया।
  • जलविद्युत परियोजना पर चिंता : भारत ने चीन की जलविद्युत परियोजना पर चिंता व्यक्त की है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए स्थिति पर निरंतर नजर बनाए रखी है।
  • सैन्य टुकड़ियों की वापसी : ये घटनाक्रम वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य टुकड़ियों की वापसी के समझौते के बाद हुए हैं, जो चीन के अप्रत्याशित दृष्टिकोण को रेखांकित करता है।

सीमापार जल मुद्दे

  • दक्षिण एशियाई राष्ट्रों पर प्रभाव : चीन की कार्रवाइयों से न केवल भारत बल्कि नेपाल और भूटान जैसे दक्षिण एशियाई राष्ट्र भी प्रभावित होते हैं, जो क्षेत्रीय अतिक्रमण का सामना कर रहे हैं।
  • जल सुरक्षा को खतरा : ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी सीमापारीय नदियों के चीन के एकतरफा प्रबंधन से भारत, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और पाकिस्तान में जल सुरक्षा को खतरा है।
  • प्रस्तावित बाँध निर्माण : प्रस्तावित बाँध निर्माण से प्रतिवर्ष 300 बिलियन किलोवाट घंटे बिजली उत्पन्न हो सकती है, लेकिन इससे भारत और बांग्लादेश जैसे निचले देशों के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
  • पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभाव : बाँध के कारण जल और गाद का प्रवाह कम हो सकता है, जिससे भारत और बांग्लादेश में कृषि, मत्स्य पालन और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • निचले जल पर प्रभाव : बाँध के निर्माण से निचले जल तक पहुँचने वाले जल और गाद में कमी आने की संभावना है, जिससे भारत और बांग्लादेश में कृषि, मत्स्य पालन तथा जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
  • सामरिक भेद्यता : मानसून या भू-राजनीतिक तनाव के दौरान अनियंत्रित जल-प्रवाह से भारतीय सीमा पर विनाशकारी बाढ़ आ सकती है, जिससे सामरिक भेद्यता उत्पन्न हो सकती है।
  • संवेदनशील हिमालय : पूर्वी हिमालय सुभेद्य है और 2015 में नेपाल में आई भूकंप जैसी घटनाओं  के लिए प्रवण है। यदि भूकंप आता है, तो यह बाँध भारत और नेपाल में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न सकता है।
  • भारत के प्रत्युत्तर : इसके उत्तर में, भारत ने अपनी जलविद्युत परियोजनाओं में तेजी ला दी है तथा अरुणाचल प्रदेश में 12 जलविद्युत स्टेशनों के निर्माण के लिए $1 बिलियन का निवेश किया है।

चीन के साथ सीमा विवाद

  • मानचित्रण संबंधी समस्या : चीन ने स्थानों का नाम बदलकर, नए काउंटी स्थापित करके और विवादित क्षेत्रों को अपने मानचित्रों में शामिल करके अपनी मानचित्रण संबंधी आक्रामकता को बढ़ा दिया है।
    • लद्दाख में इन कार्रवाइयों का उद्देश्य विवादित क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना है, जबकि चीन अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करता है, जो भारत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
  • चीन की बढ़ती रणनीति : चीन क्षेत्रीय दावों को स्थापित करने के लिए स्थानों का नाम बदलने, बस्तियाँ स्थापित करने और विवादित क्षेत्रों को अपने मानचित्रों में शामिल करने जैसी रणनीति का तेजी से उपयोग कर रहा है।
    • उदाहरण के लिए, चीन ने 2021 और 2017 में इसी तरह की कार्रवाइयों के बाद 2023 में अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों को मानकीकृत किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून : अंतर्राष्ट्रीय कानून केवल मानचित्रण पर आधारित क्षेत्रीय दावों को मान्यता नहीं देता है। 
    • मिंक्वियर्स और एक्रेहोस विवाद पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के निर्णय जैसे ऐतिहासिक मामलों से पता चलता है, कि संप्रभुता सिद्ध करने के लिए मानचित्र अपर्याप्त हैं।
  • संप्रभुता पर आईसीजे का निर्णय : आईसीजे ने निर्णय दिया कि विवादित क्षेत्रों के स्वामित्व का निर्धारण करने के लिए मानचित्रों के बजाय प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण और संप्रभुता महत्त्वपूर्ण है।
  • चीन की कार्रवाइयों के कानूनी निहितार्थ : हालाँकि चीन की मानचित्रण आक्रामकता अनुचित  है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत इसकी कानूनी वैधता नहीं है। विवादित क्षेत्रों में बस्तियाँ  बनाने के चीन के प्रयास भारत के लिए भविष्य के मामलों को जटिल बना सकते हैं।

दक्षिण एशियाई प्रतिक्रिया

  • आर्थिक भागीदारी : यद्यपि चीन सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ आर्थिक भागीदारी चाहता है, फिर भी उसके क्षेत्रीय और जल संबंधी विवादों के कारण क्षेत्रीय संबंधों में तनाव बना हुआ है।
  • द्विपक्षीय दृष्टिकोण : दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के विपरीत, जो मुद्दों के समाधान के लिए मेकॉंग  नदी आयोग (एमआरसी) और आसियान जैसे बहुपक्षीय संगठनों का उपयोग करते हैं, भारत सहित दक्षिण एशियाई देश चीन के साथ द्विपक्षीय चर्चा को प्राथमिकता देते हैं।
  • शक्ति विषमता : यह द्विपक्षीय दृष्टिकोण व्यापक रूप से चीन और उसके छोटे दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच शक्ति विषमता से प्रभावित है।

आगे की राह

  • भारत की भूमिका : दक्षिण एशिया में प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत को चीन की कार्रवाइयों पर सामूहिक प्रतिक्रिया को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
  • एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता : क्षेत्रीय मंचों, बहुपक्षीय संस्थाओं और संवर्द्धित कूटनीतिक समन्वय को शामिल करते हुए एक एकीकृत रणनीति दक्षिण एशिया की स्थिति को मजबूत करेगी।
    • इस तरह के दृष्टिकोण से क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव और क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं से निपटने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि चीन की बढ़ती आक्रामकता के मद्देनजर भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए कूटनीतिक सहभागिता तथा क्षेत्रीय सहयोग से जुड़ी एक व्यापक रणनीति अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

क्षेत्रीय दावों और जल संसाधनों पर चीन की हालिया कार्रवाइयों के माध्यम से दक्षिण एशिया में उसकी विस्तारवादी रणनीति का विश्लेषण कीजिए । चर्चा कीजिए कि द्विपक्षीय वार्ता के लिए भारत का दृष्टिकोण दक्षिण-पूर्व एशिया की सामूहिक प्रतिक्रिया से किस प्रकार भिन्न है। क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखते हुए ऐसी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा का सुझाव दीजिए ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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