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नागरिकता संशोधन अधिनियम नियम

Lokesh Pal March 12, 2024 05:15 135 0

संदर्भ:

हाल ही में, गृह मंत्रालय द्वारा नागरिकता संशोधन नियम, 2024 को अधिसूचित किया गया, जो वर्ष 2019 में संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के कार्यान्वयन को सक्षम बनाएगा।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के बारे में।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) – प्रावधान, चिंताएँ और आगे की राह।


नागरिकता संशोधन अधिनियम नियमों के बारे में:

  • संबंधित: वर्ष 2019 के CAA द्वारा वर्ष 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया गया, जिससे उन हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता की अनुमति दी गई जिन्होंने दिसंबर, 2014 से पहले पड़ोसी मुस्लिम बहुसंख्यक देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न के भय से पलायन किया था।  
    • हालाँकि, इस अधिनियम में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है।
  • पात्रता: CAA 2019 संशोधन के तहत, जो प्रवासी अपने मूल देश में “धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न का भय” का सामना कर चुके थे और 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवेश कर चुके थे, उन्हें नए कानून द्वारा नागरिकता के लिए पात्र बनाया गया था।
  • उपलब्धता: इस प्रकार के प्रवासियों को छह वर्षों में फास्ट ट्रैक भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत इन प्रवासियों के देशीयकरण के लिए निवास अवधि की आवश्यकता को ग्यारह वर्ष से घटाकर पाँच वर्ष कर दिया गया था।
  • छूट: नागरिकता अधिनियम, 1935 के तहत, देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिए आवश्यक शर्तों में से एक यह थी कि आवेदक को विगत 12 महीनों के साथ-साथ पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहना चाहिए।
    • इस संशोधन द्वारा इन छह धर्मों और उपर्युक्त तीन देशों से संबंधित आवेदकों के लिए एक विशिष्ट शर्त के रूप में दूसरी आवश्यक शर्त को 11 वर्ष से घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया है।
  • अवैध प्रवासियों के संबंध में : इस अधिनियम के तहत, एक अवैध प्रवासी उस विदेशी को माना जायेगा जो:
    • पासपोर्ट और वीजा जैसे वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना देश में प्रवेश करता है, या
    • वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करता है, लेकिन अनुमत समय अवधि से अधिक रुकता है।
  • छूट: यह संशोधित अधिनियम उन छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है। गौरतलब है कि ये दोनों अधिनियम अवैध रूप से देश में प्रवेश करने और वीजा एवं परमिट के समाप्त होने के उपरांत यहाँ रहने के लिए उन अवैध प्रवासियों को सजा निर्दिष्ट करते हैं।
  • छठी अनुसूची के संबंध में: हालाँकि, इस अधिनियम के प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों और इनर लाइन परमिट (ILP) द्वारा संरक्षित अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड राज्यों पर लागू नहीं होंगे।
    •  गौरतलब है कि बाद में, मणिपुर को छूट प्राप्त राज्यों की सूची में जोड़ा गया।
    •  इसका अर्थ यह है कि जिन ‘अवैध’ प्रवासियों को इस अधिनियम के माध्यम से भारतीय नागरिक माना जाएगा, वे इन छूट प्राप्त क्षेत्रों में नहीं बस सकते हैं।

अधिनियम पर सरकार का रुख:

  • यह अधिनियम धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता, बल्कि प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को राहत प्रदान करता है।
  • यह देश के विभाजन से प्रभावित अल्पसंख्यकों की दुर्दशा को संबोधित करता है।
    • अपने हलफनामे में, सरकार द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया है कि वर्ष 1950 के नेहरू-लियाकत समझौते के तहत, भारत और पाकिस्तान द्वारा अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए “नागरिकता की पूर्ण समानता” और “सुरक्षा की पूर्ण भावना” का संकल्प लिया गया था।
    • इस वादे का सम्मान करने में पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश के विफल रहने की स्थिति में  इन दोनों देशों के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को राहत देने के कदम को भारत सरकार उचित ठहराती है।
  • CAA “सहानुभूतिपूर्ण और सुधारात्मक” है और यह किसी भी भारतीय को नागरिकता से वंचित नहीं करता है।
    • नागरिकता अधिनियम, 1955 पूरी तरह से क्रियाशील है और किसी भी तरह से इस कानूनी स्थिति में संशोधन या परिवर्तन नहीं करता है।
    • इसलिए, किसी भी देश और किसी भी धर्म के वैध प्रवासियों को, पंजीकरण या देशीयकरण हेतु कानून में पहले से ही प्रदान की गई पात्रता शर्तों को पूरा करने के उपरांत, भारतीय नागरिकता मिलती रहेगी।
  • CAA, पूर्वोत्तर राज्यों की मूल आबादी को संविधान द्वारा प्रदत्त सुरक्षा को प्रभावित नहीं करता है।
  • CAA का उद्देश्य उन अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करना है जिन्होंने मुस्लिम-बहुल देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया है।

अधिनियम की आलोचनाएँ:

  • मुसलमानों को निशाना बनाना: प्रदर्शनकारियों द्वारा दावा किया गया है कि यह कानून संविधान का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसका उद्देश्य मुसलमानों को छोड़कर अन्य को धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।
  • समानता के अधिकार के विरुद्ध: आलोचकों का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है।
  • संस्कृति के लिए खतरा: बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को मिलने वाली नागरिकता की संभावना ने गहरी चिंताएँ उत्पन्न की हैं, जिनमें जनसांख्यिकीय परिवर्तन, आजीविका के अवसरों की हानि और स्वदेशी संस्कृति के क्षरण जैसी आशंकाएँ शामिल हैं।

चुनौतियाँ: 

  • फिलहाल यह भी स्पष्ट नहीं है कि यदि मुस्लिम आप्रवासी हिंदू धर्म अपना लेते हैं, तो वे CAA के तहत पात्र होंगे या नहीं।
  • यह संशोधन अधिनियम ‘उत्पीड़न’ को परिभाषित नहीं करता है या लाभार्थियों को उनकी धार्मिक पहचान से परे और क्या साबित करने की आवश्यकता होगी, इसके बारे में भी सार्थक मार्गदर्शन प्रदान नहीं करता है।

समाचार स्रोत: द हिंदू

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