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सरदार पटेल और अंबेडकर के दृष्टिकोण में विकसित भारत के लिए सिविल सेवा

Lokesh Pal April 19, 2025 05:00 57 0

संदर्भ:

जैसे-जैसे भारत 2047 तक विकसित भारत बनने की ओर अग्रसर है, नैतिक और कुशल सिविल सेवा के लिए सरदार पटेल और डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दृष्टिकोण राष्ट्र का मार्गदर्शन करना जारी रखता है।

भारत में सिविल सेवा

  • शासन का ‘स्टील फ्रेम’: भारत के लौह पुरुष के रूप में विख्यात सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सिविल सेवा को शासन का ‘स्टील फ्रेम’ कहा था।
    • नए स्वतंत्र राष्ट्र को सहारा देने के लिए एक मज़बूत और लचीले प्रशासनिक ढाँचे की आवश्यकता में उनके विश्वास को दर्शाता है । उनका मानना था, कि एक मज़बूत सिविल सेवा निम्नलिखित के लिए आवश्यक है:
      • व्यवस्था बनाए रखें
      • सार्वजनिक नीतियों को लागू करना
      • स्थिर शासन सुनिश्चित करना, विशेष रूप से स्वतंत्रता और विभाजन के अशांत काल के दौरान ।
  • राष्ट्र निर्माण: सरदार पटेल के विचार में, राष्ट्र निर्माण में आधारभूत भूमिका निभाने, भारत के विविध नागरिकों को एकजुट करने तथा नव स्वतंत्र राष्ट्र में स्थायित्व, अखंडता और शासन प्रभावशीलता को बनाए रखने के लिए योग्यता आधारित एवं शक्तिशाली सिविल सेवा अत्यंत महत्त्वपूर्ण थी।
  • निष्पक्ष और पेशेवर: भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार डॉ . बी.आर. अंबेडकर ने स्वतंत्र सिविल सेवा को लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला के रूप में देखा था ।
    • सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की अपनी गहरी समझ के मद्देनजर, अम्बेडकर ने एक निष्पक्ष और प्रभावी प्रशासनिक प्रणाली सुनिश्चित करने में निष्पक्षता, जवाबदेही और व्यावसायिकता के महत्त्व पर बल दिया ।
  • औपनिवेशिक विरासत पर नियंत्रण : डॉ. अम्बेडकर ने देखा, कि औपनिवेशिक प्रशासनिक प्रणाली बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, जवाबदेही में कमी और जनता के विश्वास की कमी से ग्रस्त थी।
    • उत्तर स्वरूप उन्होंने एक ऐसी सिविल सेवा की वकालत की, जो संविधान और वैध प्राधिकार के प्रति उत्तरदायी हो – जो राजनीतिक प्रतिशोध से मुक्त हो और जनहित के लिए प्रतिबद्ध हो
  • योग्यता सुनिश्चित करना: यह सुनिश्चित करने के लिए, कि सक्षम व्यक्ति सिविल सेवा की ओर आकर्षित हों और वहाँ बने रहें, डॉ. अंबेडकर ने रोज़गार की सुरक्षा और मनमाने ढंग से बर्खास्तगी के खिलाफ सुरक्षा की आवश्यकता पर बल दिया ।
    • जनहित में गैर-लोकप्रिय लेकिन आवश्यक निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाकर शासन में जनता के विश्वास को बढ़ाएगा ।
  • नैतिक सिविल सेवा: अंबेडकर ने कहा था- “इतिहास दर्शाता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशास्त्र में टकराव होता है, जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को कभी भी स्वेच्छा से खुद को अलग करते हुए नहीं देखा गया है, जब तक कि उन्हें मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न हो।”
    • सुदृढ़ और नैतिक सिविल सेवा की आवश्यकता को रेखांकित करता है – जो अनुचित प्रभाव का विरोध करने में सक्षम हो और लोक कल्याण तथा संवैधानिक मूल्यों के प्रति दृढ़तापूर्वक प्रतिबद्ध रहे ।
  • समर्पित लोक सेवक: सरदार पटेल ने सिविल सेवकों की कल्पना ऐसे समर्पित लोक सेवक के रूप में की थी, जो नागरिकों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देंगे, राष्ट्रवाद और कर्तव्य की भावना का विकास करेंगे तथा लोक कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित करेंगे
    • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य शासन में ईमानदारी और उत्तरदायित्व की संस्कृति को बढ़ावा देना था, तथा यह सुनिश्चित करना था कि सिविल सेवक सामान्य हित और राष्ट्रीय प्रगति पर ध्यान केंद्रित करें।
  • असमानताओं को संबोधित करना: सरदार पटेल भारतीय समाज में सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के बारे में गहराई से जानते थे, और राष्ट्रवाद के उनके मॉडल ने उत्पादक शक्तियों को बढ़ाने, संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करने और स्थानीय स्वशासन के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने पर जोर दिया, विशेष रूप से ग्राम पंचायतों के माध्यम से
    • उनका मानना था, कि सिविल सेवकों को सामाजिक न्याय के प्रति संवेदनशील रहते हुए और समावेशी विकास को बढ़ावा देते हुए कृषि तथा उद्योग के बीच सहजीवी संबंध को बढ़ावा देना चाहिए
  • क्षमता निर्माण: सरदार पटेल ने सिविल सेवकों की क्षमता को निरंतर बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया तथा यह सुनिश्चित किया, कि वे उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक कौशल, ज्ञान और प्रशिक्षण से सुसज्जित हों।
    • राष्ट्र के प्रति प्रेम को बढ़ावा देते हुए, सामाजिक रूप से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए उनकी ऊर्जा और प्रतिबद्धता को बढ़ावा दिया जाता है ।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 310 : सिविल सेवक संवैधानिक सुरक्षा उपायों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति की इच्छानुसार पद धारण कर सकते हैं।
  • अनुच्छेद 311 : विभागीय जाँच और सुनवाई का अधिकार अनिवार्य करके सिविल सेवकों को मनमाने ढंग से बर्खास्तगी से बचाता है
  • अनुच्छेद 312 : संसद को देश भर में एकरूपता और व्यावसायिक मानकों को सुनिश्चित करते हुए नई अखिल भारतीय सेवाएँ निर्मित करने का अधिकार देता है ।
  • जीवंत संविधान: यह संस्थागत ढाँचा संविधान को एक गतिशील दस्तावेज मानने वाले अंबेडकर के दृष्टिकोण से मेल खाता है : “संविधान महज वकीलों का दस्तावेज नहीं है, यह जीवन का वाहन है और इसकी आत्मा हमेशा युग की आत्मा होती है।

सिविल सेवाओं का विकास

  • सिविल सेवाओं की भूमिका: अखिल भारतीय सिविल सेवाएँ, जैसे- भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) – केंद्रीय सिविल सेवाओं के साथ (कराधान , रेलवे , आदि से संबंधित), विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं ।
  • लोक सेवा आयोग: दूरदर्शी राजनीतिक नेतृत्व ने पारदर्शी, निष्पक्ष और योग्यता आधारित भर्ती प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) और राज्य लोक सेवा आयोगों को संस्थागत रूप दिया है।
    • संबंधों की बजाय शैक्षिक योग्यता और क्षमता के आधार पर परीक्षा आयोजित करना तथा  अभ्यर्थियों का चयन करना – इस प्रकार पटेल और अंबेडकर द्वारा परिकल्पित निष्पक्षता और व्यावसायिकता को कायम रखना
  • समय-विशिष्ट दृष्टि: सरदार पटेल और डॉ. अंबेडकर द्वारा ‘स्टील फ्रेम’ की समय-विशिष्ट दृष्टि आज भी अत्यंत प्रासंगिक है ।
    • वे उभरती चुनौतियों के प्रति पूरी तरह सचेत थे और सिविल सेवाओं के लिए उनके विचार अनुकूल, सुदृढ़ और दूरदर्शी थे
  • संबंधित चुनौतियाँ: संवैधानिक सुरक्षा उपायों और संस्थागत तंत्रों की उपस्थिति के बावजूद, सिविल सेवा को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे- शक्तिशाली निजी हितों द्वारा हस्तक्षेप, हाशिए पर व्याप्त समुदायों के उत्थान संबंधी प्रयासों में कमी तथा प्रशासनिक निष्ठा का अभाव
    • ये मुद्दे पटेल और अंबेडकर द्वारा परिकल्पित सक्षम, नैतिक और जन-केंद्रित सिविल सेवा के मूल दृष्टिकोण को साकार करने में बाधा डालते हैं

निष्कर्ष

जैसे-जैसे भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र (विकसित भारत) बनने की ओर अग्रसर है, एक नैतिक, कुशल, समावेशी और प्रतिबद्ध सिविल सेवा के लिए वल्लभ भाई पटेल तथा अंबेडकर का दृष्टिकोण एक मार्गदर्शक के रूप में विद्यमान है ।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

“सरदार वल्लभभाई पटेल ने सिविल सेवाओं को भारत का ‘स्टील फ्रेम’ कहा।” समकालीन प्रशासन संबंधी  चुनौतियों के संदर्भ में, एक प्रभावी और जवाबदेह प्रशासनिक प्रणाली को आकार देने में इस रूपक की प्रासंगिकता की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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