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CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने चार मुद्दों पर प्रकाश डाला

Lokesh Pal February 05, 2024 05:00 169 0

संदर्भ

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के 75वें स्थापना दिवस के अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा दिए गए भाषण के दौरान न्यायपालिका के अंतर्गत चार मुद्दों पर प्रकाश डाला गया, जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है ।

प्रारंभिक परीक्षा की प्रासंगिकता: सर्वोच्च न्यायालय और उसकी चुनौतियाँ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सुप्रीम कोर्ट, संबंधित मुद्दे और आगे की राह।

विधि वक्ताओं के मध्य स्थगन की संस्कृति

  • स्थगन (Adjournment): यह कोर्ट की निर्धारित सुनवाई (Scheduled hearing) को आगे की तारीखों तक बढ़ाते हुए सुनवाई में देरी करने से संबंधित न्यायालयी अभ्यास को संदर्भित करता है।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश XVII:  इस आदेश के तहत बताया गया है कि अदालत किन-किन परिस्थितियों में स्थगन आदेश दे सकती है I इसके अनुसार अदालतें किसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान किसी पक्ष को तीन बार से अधिक स्थगन का आदेश नहीं दे सकती और इसके लिए पर्याप्त कारण प्रस्तुत करना आवश्यक होगा
  • चिंता: देखा जाए तो ये स्थगन प्रक्रियाएँ जरूरी होती हैं लेकिन इसके कारण होने वाली देरी से लंबित मामलों की संख्या में हुई वृद्धि का व्यापक प्रभाव पड़ता है।
  •  239वीं विधि आयोग रिपोर्ट (2012): विधि आयोग की इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि अदालतों में काम के बोझ का लाभ वकीलों द्वारा स्थगन आदेश का दबाव बनाने हेतु उठाया जाता है।
    • इससे एक दुष्चक्र की स्थिति उत्पन्न होती है क्योंकि स्थगन से काम का बोझ पुनः बढ़ जाता है, जिससे और भी अधिक स्थगन आदेशों का सहारा लेना पड़ता है।

लंबी मौखिक दलीलों के संबंध में 

  • दक्षता सुनिश्चित करने हेतु : अदालत द्वारा पक्षों को निर्देश दिया जाएगा कि वे मौखिक दलीलों के लिए एक समय-सारिणी बनाकर दे ताकि केस की दक्षता सुनिश्चित हो सके और वकीलों द्वारा दलीलों का दोहराव न हो सके।
  • CJI द्वारा कार्रवाई: जनवरी 2019 में, तत्कालीन CJI रंजन गोगोई द्वारा पक्षकारों और वकीलों की एक बड़ी संख्या को देखते हुए सुनवाई के लिए एक समय-सारिणी बनाने का निर्देश दिया गया था।
    • ईडब्ल्यूएस (EWS) आरक्षण के खिलाफ चुनौती के मामले में सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक पीठ ने वकीलों को एक समय सारिणी बनाने का निर्देश दिया था, जिससे सुनवाई 8 दिनों में पूरी हो गई थी।
  • अभ्यास: संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वकीलों को निर्देश दिया गया था कि प्रत्येक पक्ष को दलील हेतु 30 मिनट तक की समय सीमा संबंधित निर्देशों का सख्ती से पालन अनिवार्य है। 99वें विधि आयोग की रिपोर्ट (1984) में भी इस पर विचार किया गया था।
  • 230वीं विधि आयोग रिपोर्ट, 2009: इसमें मौखिक बहस को डेढ़ घंटे तक सीमित करने का सुझाव दिया गया था, जब तक कि मामला संवैधानिक व्याख्या या कानून के  जटिल प्रश्न से संबंधित न हो।

लंबी अदालती छुट्टियाँ 

  • एक असुविधाजनक औपनिवेशिक विरासत: कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की 133वीं रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि लंबित मामलों में हो रही वृद्धि से निपटने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अपनी छुट्टियों को कम करने की आवश्यकता है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एक औपनिवेशिक विरासत है जिसके कारण वादकारियों को काफी असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • वकीलों और न्यायाधीशों के लिए फ्लेक्सी-टाइम: यह एक ऐसी प्रथा है जहाँ कर्मचारियों को अपने दैनिक कामकाजी घंटे चुनने की अनुमति होती है क्योंकि उनके कार्य के घंटे एक निश्चित अवधि के लिए निर्धारित होते हैं।
  • फिलीपींस में मेट्रोपॉलिटन और क्षेत्रीय ट्रायल कोर्ट में काम करने वाले कर्मचारियों और न्यायाधीशों के लिए वर्ष 2022 में एक समान व्यवस्था शुरू की गई थी।
  • वर्ष 2011 में कानून और न्याय मंत्रालय के आलोक में यह बात आई कि उच्च न्यायालयों द्वारा एक वर्ष में 210 दिन कार्य किया जाता है, जिसके पश्चात सभी उच्च न्यायालयों से अनुरोध किया गया कि उनके द्वारा कार्य दिवसों की संख्या बढ़ाकर 222 कर दी जाए।
  • मलिमथ समिति रिपोर्ट, 2003: इस रिपोर्ट में  SC के कार्य दिवसों में तीन सप्ताह की वृद्धि की सिफारिश की गई थी।  वर्ष 2014 में, इस सिफारिश पर विचार करते हुए SC द्वारा नए नियमों को अधिसूचित करते हुए कहा गया कि अब से सुप्रीम कोर्ट में गर्मी की छुट्टियाँ सात सप्ताह (10 सप्ताह से कम) से अधिक नहीं होंगी।

पहली पीढ़ी के वकीलों के लिए समान अवसर

  • समावेशिता की ओर एक कदम: पहली पीढ़ी के वकीलों और हाशिए पर रहने वाले उन  लोगों , जिनमें  “काम करने की इच्छा” और “सफलता प्राप्त करने की क्षमता” है, के लिए समान अवसर का उपलब्ध होना समावेशिता की ओर उठाए गए एक कदम के समान है।
    • एक बेहतर उदाहरण: जिला अदालतों में 36.3% न्यायाधीश एवं जूनियर सिविल जजों की भर्ती परीक्षा में चयनित 50% से अधिक उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के 41% विधि क्लर्क उम्मीदवार महिलाएँ थीं।
  • विभिन्न  कार्रवाइयाँ: कानूनी पेशे में अधिक विविधता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) द्वारा किए गए प्रयासों में महिला वकीलों के लिए बेहतर सुविधाएँ प्रदान करना, वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नामित करते समय प्रथम पीढ़ी के वकीलों को अधिक “महत्त्व” देना और वकीलों को सभी कार्य दिवसों पर वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति देना शामिल है। 

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के 75वें स्थापना दिवस ने विभिन्न चुनौतियों का सामना करने और भारत की प्रगति के संबंध में एक ईमानदार मूल्यांकन के साथ भविष्य में कदम रखने का अवसर प्रदान किया। न्यायपालिका द्वारा अदालत के कक्षों के भीतर और बाहर संविधान को कायम रखने की प्रतिज्ञा को नवीनीकृत करने की आवश्यकता है।

News Source: The Indian Express

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