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जलवायु परिवर्तन और UNFCCC प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता

Lokesh Pal July 14, 2025 05:00 27 0

संदर्भ:

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ता हाल के वर्षों में विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रही है।

UNFCCC के बारे में

  • UNFCCC को 1992 में रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में अपनाया गया था। यह 1994 में लागू हुआ।
  • यह एक गैर-बाध्यकारी फ्रेमवर्क समझौता है, जो सामान्य दायित्वों को निर्धारित करता है।
  • इसमें किसी प्रकार के जुर्माना या उत्सर्जन में कमी के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया है।
  • UNFCCC अनुच्छेद 3 के अंतर्गत सामान्य किन्तु विभेदित उत्तरदायित्वों (CBDR) के सिद्धांत पर आधारित है।
    • CBDR यह मानता है, कि जलवायु कार्रवाई के लिए सभी देशों की जिम्मेदारी है, लेकिन विकसित देशों को अपने ऐतिहासिक उत्सर्जन और अधिक क्षमताओं के कारण इसमें अग्रणी भूमिका निभानी होगी।

UNFCCC के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

  • विकसित देशों का उत्तरदायित्व: औद्योगिक क्रांति के कारण ऐतिहासिक पर्यावरणीय क्षति के लिए बड़े पैमाने पर उत्तरदायी विकसित देश अपनी जिम्मेदारियों को पर्याप्त रूप से नहीं निभा रहे हैं।
    • वे विकासशील देशों से की गई वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में लगातार विफल रहते हैं।
    • वर्ष 2035 से आगे प्रतिवर्ष $300 बिलियन की वर्तमान प्रतिबद्धता, विकासशील देशों की जलवायु संबंधी कार्रवाइयों के लिए प्रतिवर्ष कम-से-कम $1.3 ट्रिलियन की अनुमानित आवश्यकता से अत्यंत कम है।
  • विकासशील एवं कमजोर राष्ट्र: विकासशील देश, विशेष रूप से छोटे द्वीपीय राष्ट्र और कमजोर आबादी, आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद जलवायु-जनित आपदाओं से प्राथमिक रूप से पीड़ित हैं।
  • प्रमुख आर्थिक शक्तियों की गैर-भागीदारी: उदाहरणस्वरूप इस वर्ष डोनाल्ड ट्रम्प के व्हाइट हाउस में वापस आने के बाद, इन वार्ताओं से संयुक्त राज्य अमेरिका के हटने से, पूरी प्रक्रिया के अप्रासंगिक हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • अप्रभावी निर्णय प्रणाली: UNFCCC सर्वसम्मति से कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि कोई भी निर्णय तब तक स्वीकार नहीं किया जाता जब तक कि सभी देश उसे स्वीकार न कर लें।
    • इससे प्रभावी रूप से प्रत्येक देश को वीटो शक्ति प्राप्त हो जाती है, जिससे महत्त्वाकांक्षी या आमूलचूल परिवर्तन प्राप्त करना लगभग असंभव हो जाता है।
  • मुद्दों की जटिलता: जलवायु परिवर्तन के मुद्दे लगातार जटिल होते जा रहे हैं, जिनमें तापमान वृद्धि के अलावा कई अन्य बहुआयामी कारक भी शामिल हैं, जैसे कि प्राकृतिक आपदाओं पर वनों की कटाई जैसी विकास गतिविधियों के परिणाम।
  • प्रक्रियागत अक्षमताएँ: अधिकांश चर्चाएँ अतिव्यापी और अनावश्यक एजेंडा मदों से प्रभावित हैं, तथा बोलने के समय और वार्ता दल के आकार पर प्रतिबंध हैं, जिससे सार्थक वार्ता में बाधा आती है।
  • निहित स्वार्थों का प्रभाव: COP के मेजबान देशों का चयन, जिनकी अर्थव्यवस्थाएँ मुख्यतः जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं, जैसे- दुबई और बाकू, तथा जीवाश्म ईंधन कंपनियों की महत्त्वपूर्ण भागीदारी, निर्णय लेने पर उनके प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करती है, जो संभावित रूप से कट्टरपंथी जलवायु कार्रवाई में बाधा उत्पन्न करती है।
  • कार्यान्वयन और निगरानी में अंतराल: निर्णय तो लिए जाते हैं, लेकिन उनके उचित कार्यान्वयन और निगरानी में अक्सर कमी रहती है, जिससे निष्पादन सुनिश्चित करने के लिए एक समर्पित निकाय की आवश्यकता का संकेत मिलता है।

UNFCCC प्रक्रिया को मजबूत करने हेतु प्रस्तावित सुधार

  • बहुमत आधारित निर्णय: सर्वसम्मति आधारित निर्णय से बहुमत आधारित प्रणाली की ओर कदम बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
    • इससे निर्णय अधिक प्रभावी ढंग से लिए जा सकेंगे तथा किसी एक देश को महत्त्वपूर्ण जलवायु कार्रवाई में बाधा डालने से रोका जा सकेगा।
  • गैर-अनुपालन करने वाले पक्षों को हाशिए पर रखना: जलवायु कार्रवाई के खराब रिकॉर्ड वाले देशों और जीवाश्म ईंधन उद्योगों की कंपनियों, जो प्रायः परिणामों को प्रभावित करती हैं, उनकी भागीदारी या प्रभाव को सीमित किया जाना चाहिए या वार्ता प्रक्रिया से हटा दिया जाना चाहिए।
  • एजेंडा और चर्चाओं को सुव्यवस्थित करना: वार्ताओं को मुख्य और प्रभावशाली मुद्दों पर केंद्रित करने के लिए अतिव्यापी और अनावश्यक एजेंडा मदों को हटाया जाना चाहिए। प्रत्येक देश को अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त समय देना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुनिश्चित करना: विकसित देशों पर दबाव डाला जाना चाहिए, कि वे अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को बेहतर ढंग से पूर्ण करें, जिसमें $100 बिलियन का वार्षिक लक्ष्य भी शामिल है तथा अनुकूलन वित्त में योगदान में उल्लेखनीय वृद्धि करें।
    • इसके अतिरिक्त, विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समान प्रगति के लिए आवश्यक है।
  • मुख्यधारा की जलवायु वार्ताएँ: जलवायु संबंधी मुद्दों को सभी संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में केंद्रीय विषय बनाया जाना चाहिए।
  • नेतृत्व और सहभागिता को बढ़ावा देना: COP30 के मेजबान के रूप में, ब्राजील को इसकी सफलता सुनिश्चित करने में नेतृत्व करना होगा।
    • हाल ही में सभी पक्षों को लिखे पत्र में, ब्राजील ने सुधारों की आवश्यकता को स्वीकार किया तथा उनसे UNFCCC प्रक्रिया के भविष्य परविचारकरने को कहा।
    • ब्राजील ने 30 मदों की एक सूची भी तैयार की है, जिन पर वह जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने के लिए अन्य देशों के साथ मिलकर कार्य करेगा।
    • ब्रिक्स समूह ने विकसित देशों से UNFCCC और पेरिस समझौते के तहत अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह पूरा करने तथा अनुकूलन वित्त में अपना योगदान बढ़ाने को भी कहा है।

निष्कर्ष

UNFCCC प्रक्रिया एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है। इन सुधारों को लागू करना इसकी विश्वसनीयता बहाल करने, वैश्विक जलवायु कार्रवाई में तेज़ी लाने और सभी देशों के लिए जलवायु न्याय सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“हाल के वर्षों में, UNFCCC को विश्वसनीयता के संकट का सामना करना पड़ा है, क्योंकि इसकी जलवायु वार्ताओं के परिणाम सीमित रहे हैं।” उन चुनौतियों का परीक्षण कीजिए, जिनके कारण UNFCCC प्रक्रिया की प्रभावशीलता में गिरावट आई है। अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं को सुदृढ़ बनाने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि COP30 वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में सार्थक प्रगति करे, कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

(10 अंक, 150 शब्द)

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