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Lokesh Pal
July 12, 2025 05:00
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जबकि काफी समय से वैश्विक ध्यान अक्सर यूक्रेन और गाजा जैसे संघर्षों पर केंद्रित हो गया है परंतु जलवायु-प्रेरित विस्थापन एक अधिक महत्वपूर्ण, फिर भी अक्सर नजरअंदाज किया जाने वाला संकट बनकर उभर रहा है।
जलवायु परिवर्तन का बोझ मुख्यतः वैश्विक दक्षिण पर गंभीर रूप में पड़ता है। जलवायु-संवेदनशील कृषि पर अपनी अत्यधिक निर्भरता और अनुकूलन की सीमित क्षमता के कारण ये देश अधिक असुरक्षित हैं।
एक मजबूत परंतु कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय ढांचे के अभाव के कारण कुछ लचीले कानून और क्षेत्रीय पहल को प्राथमिकता दी गई है, लेकिन उनमें प्रवर्तन शक्ति का अभाव है।
जलवायु परिवर्तन से खतरे में पड़े लाखों लोगों के जीवन की प्रभावी सुरक्षा के लिए, वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन की तरह, एक वैश्विक सहमति और कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता विकसित करना अनिवार्य है। यह न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि हमारे जनसांख्यिकीय और आर्थिक भविष्य के लिए भी एक अनिवार्य आवश्यकता है।
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