प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5, लू, बाढ़ और सूखा I
मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव I
संदर्भ :
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदा में पुरुषों की तुलना में महिलाओं और बच्चों के मरने की संभावना 14 गुना अधिक जताई गयी है।
महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
खाद्य असुरक्षा: ग्रामीण भारत में महिलाओं के लिए कृषि एक महत्त्वपूर्ण आजीविका के रूप में कार्य करती है।
जलवायु-प्रेरित फसल उपज में कमी के कारण खाद्य असुरक्षा में वृद्धि होती है, विशेषकर उन गरीब परिवारों में जो पहले से ही पोषण संबंधी कमियों से जूझ रहे हैं।
असंगत प्रभाव: जलवायु संकट व्यक्तियों को असमान रूप से प्रभावित करता है, क्योंकि पाया गया है कि महिलाओं और लड़कियों को उनकी वर्तमान भूमिकाओं, गरीबी, जिम्मेदारी और सांस्कृतिक मानदंडों के कारण वर्धित स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
NFHS 4 और 5 के डेटा के अनुसार सूखाग्रस्त जिलों में निवास करने वाली आधी से अधिक महिलाएँ और बच्चे कम वजन वाले थे और साथ ही वहाँ की कई महिलाएँ अपने जीवन साथी द्वारा घरेलु हिंसा की भी शिकार थी ।
चरम मौसमी घटनाएँ: ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार 75% भारतीय जिले हाइड्रोमेट आपदाओं के संबंध में अतिसुभेद्य माने गए हैं, जो इन क्षेत्रों में रहने वाली आधी से अधिक महिलाओं और बच्चों के लिए जोखिम उत्पन्न करता है।
स्वास्थ्य जोखिम: लंबे समय तक गर्म मौसम के बने रहने के कारण, विशेषकर गर्भवती महिलाओं के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न होता है, जिससे समय से पहले शिशु के जन्म और एक्लम्पसिया की संभावना बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त, यह मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्वास्थ्य दोनों पर प्रभाव डालता है।
प्रदूषण जोखिम: घर के अंदर और बाहर दोनों जगह वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिससे श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इससे अजन्मे बच्चे भी असुरक्षित हो जाते हैं एवं प्रदूषण के संपर्क में आने से उनके शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष:
निष्कर्षस्वरुप जलवायु अनुकूलन के लिए पूर्ण और न्यायसंगत दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए सभी लिंगों की सुभेद्यता की पहचान करना और लिंग संबंधी सुधारात्मक तकनीकों को नियोजित करना आवश्यक है। पीड़िता के रूप में परिभाषित होने के बजाय महिलाएँ यदि जलवायु कार्रवाई संबंधी पहल में योगदान करें, तो यह एक स्वागतयोग्य कदम माना जाएगा।
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