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उत्तरकाशी में बादल फटना: भविष्य में जलवायु संबंधित आपदाओं से बचने के लिए भारत को क्या करना चाहिए?

Lokesh Pal August 07, 2025 05:15 14 0

संदर्भ:

उत्तरकाशी में बादल फटने की दुखद घटना, जिसने धराली गांव और उसके आसपास के क्षेत्रों को पूरी तरह से तबाह कर दिया, इस बात की स्पष्ट याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन किस प्रकार भारत में प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा दे रही है।

जलवायु परिवर्तन और पर्वतीय क्षेत्रों की बढ़ती भेद्यता:

  • अपर्याप्त तैयारी: हाल ही में हुए भूस्खलन और बाढ़ ने मौजूदा बुनियादी ढांचे और आपदा प्रबंधन प्रणालियों की कमज़ोरी को उजागर किया है, जो जलवायु-जनित चरम स्थितियों से निपटने में सक्षम नहीं हैं।
  • आपदाओं की आवर्ती प्रकृति: बादल फटना, अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी चरम मौसम की घटनाएं हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र में तेजी से आम होती जा रही हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वैज्ञानिक साक्ष्य इन आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता को जलवायु परिवर्तन के त्वरित प्रभावों से जोड़ते हैं।

बादल फटना की घटना के बारे में:

बादल फटना एक छोटे से क्षेत्र में छोटी अवधि की तीव्र वर्षा की घटना है। यह लगभग 20-30 वर्ग किमी. के भौगोलिक क्षेत्र में 100 मिमी./घंटा से अधिक अप्रत्याशित वर्षा के साथ एक मौसमी घटना है।

  • इन घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन के त्वरित प्रभावों से जुड़ी हुई है।
  • IMD के आंकड़े: IMD के आंकड़ों के अनुसार भारत में बादल फटने की घटनाएं 1980 और 2022 के बीच दोगुनी हो गई हैं।

बादल फटने की प्रक्रिया:

  • गर्म होता वातावरण: ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ने से सतह के ऊपर की वायु गर्म हो जाती है।
  • नमी धारण करने की क्षमता: गर्म वायु अधिक नमी धारण करती है – प्रत्येक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के लिए लगभग 7% अधिक।
  • वायुराशियों का टकराव: जब यह गर्म, आर्द्रता से युक्त वायु ठंडी वायु से टकराती है, तो इसके परिणामस्वरूप अचानक, तीव्र वर्षा होती है।
  • हिमालय: एक जलवायु-संवेदनशील क्षेत्र: हिमालय, जिसे अक्सर “एशिया का जल मीनार” कहा जाता है, अपने विशाल ग्लेशियरों और नदियों के कारण भारत, नेपाल और भूटान सहित आठ देशों के 1.9 अरब लोगों को पोषण प्रदान करता है, जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है।
  • ग्लेशियर का पिघलना: पिघलते ग्लेशियरों से वायुमंडलीय आर्द्रता में बढ़ोत्तरी होती है, जिससे अधिक तीव्र और अनियमित वर्षा होती है और मानसून पैटर्न बाधित होता है।
  • भू-भाग और भूगोल आपदाओं को बढ़ावा देते हैं: क्षेत्र की खड़ी ढलानें और ढीली मिट्टी इन प्रभावों को बढ़ाती हैं, जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है, जबकि संकरी घाटियाँ बाढ़ के पानी को रोककर गंभीर क्षति पहुंचाती हैं।
  • मानवीय गतिविधियाँ: प्राकृतिक कारकों के अलावा, अनियोजित निर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास सहित मानवीय गतिविधियाँ भी ऐसी घटनाओं के दौरान विनाश को बढ़ावा देती हैं।

भारत में वर्तमान आपदा प्रबंधन से संबंधित मुद्दे

  • अपर्याप्त बुनियादी ढांचा: ऐतिहासिक मौसम पैटर्न के लिए डिज़ाइन किए गए बांध, नालियां और तटबंध जैसे पारंपरिक बुनियादी ढांचे, वर्तमान घटनाओं की तीव्रता से अभिभूत हैं।
  • वास्तविक समय निगरानी का अभाव: हिमालय और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में वास्तविक समय निगरानी के बुनियादी ढांचे में भारी कमी विद्यमान है।
  • अपर्याप्त स्वचालित मौसम स्टेशन (AWS): भारत में स्वचालित मौसम स्टेशन का अभाव हैं।
    • ये स्टेशन तापमान, वर्षा और वायुमंडलीय दबाव पर वास्तविक समय डेटा एकत्र करने के लिए आवश्यक हैं, जो प्रारंभिक चेतावनियों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • खंडित प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: जीवन बचाने और क्षति को कम करने के लिए प्रभावी पूर्व चेतावनी प्रणालियां महत्वपूर्ण हैं।
    • ऐसी प्रणालियों के लिए पूर्वानुमानित एल्गोरिदम, AWS से वास्तविक समय डेटा और उपग्रह डेटा की आवश्यकता होती है।
    • वर्तमान में, इस संबंध में भारत के प्रयास और क्षमता दोनों अपर्याप्त हैं।
    • इसके विपरीत, नेपाल ने पर्वतीय आपदाओं के लिए समुदाय-आधारित पूर्व चेतावनी प्रणाली को सफलतापूर्वक स्थापित किया है।

आगे की राह:

  • मौसम निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाना:
    • मौसम निगरानी अवसंरचना का विस्तार और आधुनिकीकरण, विशेष रूप से हिमालय और अन्य संवेदनशील पर्वतीय क्षेत्रों में।
    • प्रारंभिक चेतावनियों के लिए महत्वपूर्ण वास्तविक समय डेटा उपलब्ध कराने हेतु अधिक संख्या में स्वचालित मौसम केंद्र (AWS) स्थापित करना तथा उपग्रह आधारित अवलोकन प्रणालियों का लाभ उठाना।
  • प्रकृति-आधारित समाधान और पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन को बढ़ावा देना:
    • केवल “ग्रे इन्फ्रास्ट्रक्चर” (बांध और तटबंध) पर निर्भर रहने के बजाए, योजना में पारिस्थितिक समाधानों को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जैसे कि आर्द्रभूमि, मैंग्रोव और प्राकृतिक स्पंज क्षेत्रों की स्थापना करना जो बाढ़ के पानी को अवशोषित करते हैं और अपवाह को कम करते हैं।
      • ये प्रकृति-आधारित समाधान लागत प्रभावी, टिकाऊ और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं।
  • सामरिक/युक्तिपूर्ण भूमि उपयोग और बुनियादी ढांचे की योजना को लागू करना:
    • सख्त/आवश्यक भूमि उपयोग योजना लागू करना।
      • जल निकासी क्षेत्रों के पास तथा संवेदनशील पहाड़ी ढलानों पर निर्माण कार्य प्रतिबंधित होना चाहिए।
    • पुनर्वनरोपण और वनरोपण कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिए, विशेष रूप से कटाव की आशंका वाले क्षेत्रों में।
    • बुनियादी ढांचे के विकास और आपदा प्रतिक्रिया रणनीतियों में जलवायु अनुकूलन को भी शामिल करना चाहिए।
  • समुदायों को सशक्त बनाना और पारंपरिक ज्ञान को एकीकृत करना:
    • समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन प्रथाओं को प्राथमिकता देना चाहिए, विशेष रूप से संवेदनशील ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में।
    • संभावित आपदाओं के लिए तथा समुदायों को तैयार करने के लिए नियमित रूप से स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण, आपदा संबंधी ड्रिल और कृत्रिम निकासी अभ्यास आयोजित किया जाए।
    • स्थानीय समुदायों को आवश्यक ज्ञान और संसाधनों से सशक्त बनाना तथा यह सुनिश्चित करना कि पुनर्वास प्रयासों के दौरान हाशिए पर पड़े समूहों पर विशेष ध्यान दिया जाए।
  • अनुसंधान, नवाचार और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना:
    • जलवायु संबंधित प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने में भारी निवेश की आवश्यकता है।
    • चुनौती की सीमापारीय प्रकृति को पहचानते हुए, हिमालय और उसके पार अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ साझेदारी करना।

निष्कर्ष:

भारत को प्रतिक्रियात्मक उपायों से आगे बढ़कर जलवायु परिवर्तन के प्रति एक सक्रिय, समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह व्यवस्थित प्रयास न केवल जीवन और आजीविका की सुरक्षा के लिए, बल्कि बढ़ते जलवायु खतरों के मद्देनजर दीर्घकालिक सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. उत्तरकाशी में हाल ही में हुई बादल फटने की घटना इस बात की भयावह याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन भारत में, खासकर पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में, प्राकृतिक आपदाओं को कैसे बढ़ा रहा है। इस संदर्भ में, भारत की वर्तमान आपदा प्रबंधन रणनीतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और जलवायु-सहिष्णु भविष्य के लिए एक व्यापक रोडमैप सुझाइए।

(250 शब्द, 15 अंक)

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