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कोयला गैसीकरण योजना (coal gasification scheme)

Samsul Ansari January 30, 2024 10:55 170 0

संदर्भ

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए कोयला गैसीकरण परियोजनाओं हेतु ₹8,500 करोड़ की व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (Viability Gap-Funding-VGF) योजना को मंजूरी दी गई।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कोयला गैसीकरण।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कोयला गैसीकरण- आवश्यकता, महत्त्व, चुनौतियाँ और आगे की राह।

कोयला गैसीकरण के बारे में 

  • प्रक्रिया : कोयला गैसीकरण एक थर्मो-रासायनिक प्रक्रिया है, जो कोयले को सरल अणुओं, मुख्य रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन में परिवर्तित करती है, जिसे संश्लेषित गैस या सिनगैस कहा जाता है।
  • तंत्र: गैसीकरण प्रक्रिया में, एक नियंत्रित वातावरण के तहत हवा,ऑक्सीजन, वाष्प  या कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा कोयले का आंशिक रूप से ऑक्सीकरण किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप एक तरल ईंधन का उत्पादन होता है जिसे सिनगैस कहा जाता है।
  • महत्त्व: इस दहन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त गैस कोयला दहन की तुलना में अधिक स्वच्छ और कुशल माना जाती है क्योंकि गैसीकरण चरण के दौरान उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बन कैप्चर पद्धति द्वारा संगृहीत कर लिया जाता है।

कोयला गैसीकरण की विधियाँ

  • इन-सीटू विधि: इसमें ऑक्सीजन को जल के साथ कोल सीम (Coal seam- कोयले की मोटी सतह जो भू-गर्भिक प्रक्रिया के दौरान खनिजों और प्राकृतिक रसायनों के गठन से निर्मित होता है )में डाला जाता है और उसे उच्च तापमान पर प्रज्वलित किया जाता है, जिससे कोयला आंशिक रूप से हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) में ऑक्सीकृत हो जाता है। 
  • एक्स-सीटू रिएक्टर: इस रिएक्टर को जमीन की सतह के ऊपर गैसीकरण प्रक्रिया की तरह ही कार्य  करने के लिए डिजाइन किया गया है, जहाँ कोयले का सल्फर, H2S में परिवर्तित हो जाता है, जिससे कार्बोनिल सल्फाइड (COS) की मात्रा का पता चलता है।

कोयला गैसीकरण की आवश्यकता

  • थर्मल कोयले का एक प्रमाणित भंडार: चीन के बाद भारत के पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार है और भारत वैश्विक कोयला उत्पादन में 10% से अधिक का योगदान देता है।
  • कोयला गैसीकरण लक्ष्य: सरकार द्वारा वर्ष 2030 तक 100 मीट्रिक टन कोयले के द्रवीकरण और कोल गैसीकरण लक्ष्य प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय कोयला गैसीकरण मिशन शुरू किया गया है।
  • आयात निर्भरता को कम करना: भारत की कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस आधारित उत्पादों के आयात पर भारी निर्भरता है, जिन्हें सिनगैस से प्राप्त उप-उत्पादों द्वारा आसानी से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
  • सतत् ऊर्जा में परिवर्तन: भारत के पास कोयले का विशाल भंडार है और अगर भारत जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर स्वच्छ ईंधन की दिशा में कोई स्थायी रास्ता खोज लेता है तो इससे भारत को असीम लाभ प्राप्त होगा।

 कोयला गैसीकरण योजना के लिए व्यवहार्यता अंतर निधि (Viability Gap Funding-VGF) :

  • उद्देश्य: इस निधि द्वारा उन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का समर्थन किया जाना है, जो आर्थिक रूप से तो तर्कसम्मत हैं लेकिन वित्तीय व्यवहार्यता के लिहाज थोड़ा कम पाए गए हैं
  • परियोजनाओं की तीन श्रेणियाँ:
  • पहली श्रेणी: तीन परियोजनाओं का समर्थन करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों  (PSUs) के लिए 4,050 करोड़ रुपये का समर्थन प्रदान करना । इस निधि को  1,350 करोड़ रुपये या पूँजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, के एकमुश्त अनुदान के माध्यम से बढ़ाया जाएगा।
  • दूसरी श्रेणी: सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों की परियोजनाओं के लिए 3,850 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं और प्रत्येक परियोजना को 1,000 करोड़ रुपये या पूँजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का एकमुश्त अनुदान मिलेगा।
  • तीसरी श्रेणी: परीक्षण  परियोजनाओं (स्वदेशी प्रौद्योगिकी) या छोटे पैमाने के उत्पाद आधारित गैसीकरण संयंत्रों के लिए 600 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है और 100 करोड़ रुपये या पूँजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का एकमुश्त अनुदान दिया जाएगा।
  • संस्थाओं का चयन: परियोजना की श्रेणी II और III के लिए संस्थाओं का चयन प्रतिस्पर्द्धी और पारदर्शी बोली प्रक्रिया द्वारा किया जाएगा।
  •  चयनित इकाई को अनुदान का भुगतान दो समान किश्तों में किया जाएगा।

  • कोयले का सतत् उपयोग: कोयले की माँग वर्ष 2029-30 तक लगभग एक अरब टन की वर्तमान आवश्यकता से बढ़कर 1.5 अरब टन तक होने का अनुमान लगाया गया है।
  • फार्मास्युटिकल उद्योग: सिनगैस हेतु एक्टिव फार्मास्युटिकल सामग्री (API) और मेथेनॉल को विलायक के रूप में फार्मास्युटिकल उद्योग द्वारा बनाए जाने की उच्च संभावना व्यक्त की जा रही है, क्योंकि भारत घरेलू स्तर पर API के उत्पादन की योजना बना रहा है।
  • स्वच्छ और पर्यावरण के अनुकूल: कोयला गैसीकरण संयंत्र द्वारा किसी स्क्रबर अवशिष्ट का निर्माण नही होता है।

भारत में कोयला गैसीकरण से संबंधित चुनौतियाँ

  • कोयले की निम्न गुणवत्ता: भारतीय कोयले में राख सामग्री का उच्च मात्रा, लगभग 30-35% की मात्रा, में पाया जाना कोयला गैसीकरण की दिशा में एक तकनीकी बाधा है।
  • निकट चट्टानों द्वारा धँसाव: तापन, शमन, जल प्रवाह और संभावित छत तथा दीवार के ढहने के कारण धँसाव भी हो सकता है।
  • व्यावसायिक खतरा: इसे धरातलीय गैसीफायर (Surface gasifier) के समान ही नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, जो उच्च तापमान और दबाव का खतरा उत्पन्न करता है, जिससे श्रमिकों का जोखिम और बढ़ जाता है।
  • पर्यावरणीय कारक: यह पारंपरिक कोयला बिजली स्टेशन की तुलना में अधिक CO2 उत्पन्न करता है।
  • भू-जल संदूषण: यह एक अधिक जल खपत वाली ऊर्जा उत्पादन विधि है।
  • परियोजना की आर्थिकी : उत्पादित गैस की मात्रा और गुणवत्ता में हुए परिवर्तन का परियोजना की आर्थिकी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
  • तकनीकी चिंता: फिलहाल प्रमाणित गैसीकरण तकनीक की उपलब्धता का अभाव है।

आगे की राह

  • कोयले में राख की मात्रा संबंधी विनियमन: कोयले की आपूर्ति में राख की मात्रा को दर्शाए जाने की आवश्यकता है। हालाँकि कोयला मिश्रण आवश्यक है और जिसका प्रबंधन भी आसान है I इसे लागू करने से यह मूल्यवर्द्धक भी हो सकता है।
  • बंद कोयला खदानें: बेहतर कोयला गुणवत्ता स्थिरता, निरंतर आपूर्ति और निकट खनन तथा परिवहन लागत नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है।
  • व्यवहार्यता गैप फंडिंग: ‘ऊर्जा सुरक्षा’ (स्वच्छ) परियोजनाओं की व्यवहार्यता में सुधार के लिए बहुत उच्च CAP वाली गैसीकरण परियोजनाओं के समर्थन के लिए सरकार की ओर से वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना आवश्यक है ।
  • समान अवसर: स्वच्छ प्रौद्योगिकी अनुकूलन के कारण पर्यावरण-अनुकूल परियोजनाओं के लिए कोयला फीडस्टॉक की कीमतों में, वर्तमान में लागू उपकर/शुल्क से छूट प्रदान की जानी चाहिए।
  • कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण पर राष्ट्रीय नीति: कोयला गैसीकरण परियोजनाओं के तीव्र और सुचारू रूप से कार्यान्वयन के लिए इसे तत्काल तैयार और प्रवर्तित किया जाना चाहिए।
  • सम्मिश्रण संबंधी योजनाएँ और नीतिगत  ढाँचा: सभी संबंधित उप-उत्पादों के लिए एक नीतिगत  ढाँचे के साथ-साथ ‘गैसोलीन और एलपीजी के साथ मेथेनॉल, DME के सम्मिश्रण’ की योजनाएँ लागू की जानी चाहिए।
  • वैश्विक गैसीकरण प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना: भारत को रासायनिक उद्योग के लिए स्थानीय कोयले के फास्ट-ट्रैक विकास हेतु विश्व स्तर पर उपलब्ध गैसीकरण तकनीक का लाभ उठाना चाहिए।

                                                                                                                                 News Source: Business Standard

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