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संचार साथी जनादेश

Lokesh Pal December 03, 2025 05:00 5 0

संदर्भ:

हाल ही में, दूरसंचार विभाग (DoT) ने भारत में बेचे जाने वाले सभी स्मार्टफोन पर संचार साथी ऐप को पहले से इंस्टॉल करना अनिवार्य कर दिया है।

संचार साथी ऐप के बारे में

  • लोकार्पण तथा उद्देश्य: इस ऐप को 2023 में नागरिकों के लिए संदिग्ध फोन कॉल और साइबर धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने हेतु एक पोर्टल के रूप में शुरू किया गया था।
    • वर्तमान में इसके 1.4 करोड़ उपयोगकर्ता हैं जो सामूहिक रूप से प्रतिदिन लगभग 2,000 धोखाधड़ी की घटनाओं का रिपोर्ट करते हैं।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • CEIR एकीकरण (केन्द्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर): IMEI निष्क्रियण के माध्यम से चोरी हुए फोन को ब्लॉक करने में सक्षम बनाता है।
    • SIM ट्रैकिंग: उपयोगकर्ताओं को यह जांचने में सहायता करता है कि उनके नाम पर कितने सिम कार्ड पंजीकृत हैं (ऐप या वेबसाइट के माध्यम से)।
    • धोखाधड़ी की रोकथाम और पुन:प्राप्ति: कथित तौर पर 6 लाख चोरी हुए फोन को बरामद करने और 29 लाख धोखाधड़ी वाले SIM को निष्क्रिय करने में मदद की है।

आदेश में विद्यमान अनिवार्य शर्तें

  • प्रीलोडेड: संचार साथी एप्लीकेशन भारत में बेचे जाने वाले सभी स्मार्टफोन में पहले से इंस्टॉल होना चाहिए।
  • न हटाने योग्य/न अक्षम करने योग्य: उपयोगकर्ताओं को ऐप की कार्यक्षमता को हटाने, अक्षम करने या प्रतिबंधित करने की सुविधा उपलब्ध नहीं होना चाहिए।
  • सार्वभौमिक अधिदेश: यह आवश्यकता एप्पल और एंड्रॉइड सहित सभी ऑपरेटिंग सिस्टम पर लागू होती है।
  • समय सीमा: स्मार्टफोन निर्माताओं को अनुपालन के लिए 90 दिन (तीन महीने) की समय सीमा प्रदान की गई है।

नीतिगत अस्पष्टता

  • विरोधाभासी निर्देश: दूरसंचार मंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से यह कहने के बावजूद कि यह आदेश अनिवार्य नहीं है, कम्पनियों को भेजे गए लिखित निर्देश में इसे स्पष्ट रूप से अनिवार्य बताया गया है।
  • पारदर्शिता का अभाव: सार्वजनिक संचार और आधिकारिक अनुदेश के बीच यह अंतर पारदर्शिता की गंभीर कमी और नीतिगत अस्पष्टता को उजागर करता है।

निर्देश से संबंधित चिंताएँ

  • गोपनीयता बनाम सुरक्षा चिंताएँ: हालाँकि गूगल और एप्पल के माध्यम से ये सेवाएं विद्यमान हैं – तथा यह एन्क्रिप्टेड डेटा प्रोटोकॉल द्वारा संरक्षित हैं – संचार साथी ऐप सभी डेटा को सीधे सरकारी नियंत्रण में रखता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और धोखाधड़ी की रोकथाम के तहत उचित है।
  • पारदर्शिता का अभाव: सरकार ने आदेश को सार्वजनिक रूप से जारी नहीं किया तथा चुपचाप स्मार्टफोन कंपनियों को इसकी जानकारी दी है।
  • क्लोज़्ड सोर्स कोड: चूंकि स्रोत कोड खुला नहीं है, इसलिए इसमें संभावित छिपी हुई प्रकार्य जैसे स्थान ट्रैकिंग या कॉल मॉनिटरिंग के बारे में संदेह उत्पन्न होता है—जो व्यापक निगरानी के डर को बढ़ावा देते है।
  • कानूनी छूट: सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) अधिनियम (2023) में अपने लिए छूट प्रदान की, जिसका अर्थ है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्क के आधार पर संचार साथी जैसी राज्य संचालित एप्लिकेशनों पर कड़े गोपनीयता नियम लागू नहीं होते।
  • संभावित संवैधानिक उल्लंघन: न्यायिक निगरानी के बिना व्यापक निगरानी तंत्र बनाने से सर्वोच्च न्यायालय के 2017 के पुट्टस्वामी निर्णय से प्राप्त निजता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन हो सकता है।

बाजार और प्रभावशीलता से संबंधित मुद्दे

  • एप्पल के साथ टकराव: एप्पल का सख्त “वाल्ड गार्डन ” पारिस्थितिकी तंत्र अनिवार्य रूप से पूर्व-स्थापित तृतीय-पक्ष ऐप्स पर प्रतिबंध लगाता है, जिससे संभावित कानूनी टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • उच्च लागत: निर्माताओं का तर्क है कि ऐप को एकीकृत करने और परीक्षण करने से उत्पादन लागत बढ़ जाएगी, जिससे अंततः उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ेगा।
  • सीमित निवारण: पेशेवर साइबर अपराधी निम्नलिखित माध्यमों से ऐप को बायपास कर सकते हैं:
    • सॉफ़्टवेयर हटाने के लिए डिवाइस को रूट करना
    • IMEI नंबरों की स्पूफिंग (IP मास्किंग की तरह)।
    • ऐप के बिना पुराने/सेकंड-हैंड उपकरणों का उपयोग करना

आगे की राह

  • मौजूदा कानूनों के प्रवर्तन को मजबूत करना: IT अधिनियम (धारा 43, 66), भारतीय न्याय संहिता (धारा 111 (3), 316, 318, 336) और SIM KYC मानदंड जैसे मौजूदा कानूनी ढाँचे के कार्यान्वयन में सुधार करना होगा, क्योंकि मुख्य चुनौती कानून की अनुपस्थिति के बजाय कमजोर प्रवर्तन में निहित होता है।
  • अंतर-राज्यीय समन्वय को बढ़ाना: राज्य की सीमाओं के पार साइबर अपराधों की निर्बाध जाँच के लिए अंतर-राज्यीय साइबर इकाइयों (FBI की तर्ज पर) की स्थापना करके राज्य पुलिस बलों की वर्तमान एकाकी कार्यप्रणाली को संबोधित करना।
  • संस्थागत क्षमता का निर्माण: प्रत्येक राज्य में साइबर फोरेंसिक लैब स्थापित करना तथा उन्हें डिजिटल साक्ष्य को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए सुसज्जित करना, साथ ही साइबर अपराध जाँच पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है।
  • प्रशिक्षण और कौशल विकास में निवेश: सरकार को पुलिस कर्मियों और अभियोजकों को डिजिटल साक्ष्य और साइबर अपराधियों से निपटने के लिए प्रशिक्षण देकर क्षमता निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे पेशेवर, प्रौद्योगिकी-संचालित प्रवर्तन सुनिश्चित हो सके।

निष्कर्ष

अनिवार्य संचार साथी ऐप सीमित सुरक्षा लाभ प्रदान करता है, लेकिन गोपनीयता, कानूनी और परिचालन संबंधी जोखिम भी उत्पन्न करता है। मौजूदा साइबर कानूनों, अंतर-राज्यीय समन्वय और संस्थागत क्षमता को मज़बूत करना, जबरन पूर्व-इंस्टॉलेशन की तुलना में अधिक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: हाल ही में घोषित संचार साथी ऐप, धोखाधड़ी वाले सिम कार्डों का पता लगाकर डिजिटल जवाबदेही को बढ़ाता है, लेकिन यह डेटा सुरक्षा और सहमति के बारे में भी सवाल उठाता है। मूल्यांकन कीजिए कि भारत डिजिटल सुरक्षा आवश्यकताओं को मज़बूत गोपनीयता सुरक्षा उपायों के साथ कैसे संतुलित कर सकता है।

(10 अंक, 150 शब्द)

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