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भारत में हाथियों का संरक्षण तथा अखिल भारतीय समकालिक हाथी अनुमान (SAIEE), 2025

Lokesh Pal October 21, 2025 05:00 106 0

सन्दर्भ:

देश की पहली डीएनए आधारित गणना के अनुसार, भारत में जंगली हाथियों की अनुमानित जनसंख्या 22,446 है, जो 2017 के 27,312 के आँकड़े से कम है।

घटती संख्या पर सरकार का दृष्टिकोण

  • पद्धतिगत पुनर्निर्धारण: सरकार ने स्पष्ट किया, कि स्पष्ट गिरावट को संख्या में वास्तविक कमी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
    • गणना प्रक्रिया में पद्धतिगत पुनर्निर्धारण के कारण 22,446 के वर्तमान आँकड़े को “मुख्य आधार रेखा” (fresh baseline) माना जाता है।

पुरानी गणना विधियों की चुनौतियाँ

  • अवलोकन टावरों पर वन अधिकारी: वन अधिकारी पहले हाथियों की गिनती ऊँचे टावरों से मैन्युअल रूप से करते थे, जिससे झुंड के आवागमन के कारण अक्सर गिनती दुगुनी हो जाती थी।
  • जल-कुंड अवलोकन (Water Hole Observation:): अधिकारियों ने जल निकायों में आने वाले हाथियों की गणना की, लेकिन बार-बार दिखाई देने के कारण संख्या में वृद्धि हुई।
  • गोबर क्षय दर अनुमान (Dung Decay Rate Estimate): गोबर क्षय (मल) दर पर आधारित अनुमान गलत थे और सटीक आँकड़ें प्रदान करने में विफल रहे।

नई वैज्ञानिक पद्धति का परिचय

  • ग्रिड-आधारित मानचित्रण: वनों को अब छोटे ग्रिडों में विभाजित किया गया है, जिससे व्यापक कवरेज सुनिश्चित होता है।
  • डीएनए प्रोफाइलिंग: डीएनए विश्लेषण के लिए इन ग्रिडों से हाथी के मल के नमूने एकत्र किए जाते हैं।
    • चूँकि प्रत्येक हाथी का डीएनए भिन्न होता है, इसलिए इस विधि से दुहरी गणना की आवश्यकता समाप्त हो जाती है तथा व्यक्तिगत पहचान संभव हो जाती है।
    • इससे सटीक संख्या निगरानी और बेहतर आवास ट्रैकिंग संभव हो जाती है।

अखिल भारतीय समकालिक हाथी अनुमान (SAIEE), 2025: मुख्य बिंदु

  • स्थिर जनसंख्या वाले क्षेत्र:
    • पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत के कुछ भाग: इन क्षेत्रों में संख्या स्थिर बनी हुई है।
    • कर्नाटक: यहाँ हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, उसके बाद असम का स्थान है।
    • केरल: इसने हाथियों की सुरक्षित आवाजाही के लिए गलियारा संरक्षण को प्राथमिकता दी है।
  • प्रमुख गिरावट दर्शाने वाले क्षेत्र:
    • झारखंड: हाथियों की संख्या में 68% की गिरावट देखी गई।
    • ओडिशा: 54% की गिरावट दर्ज की गई, जो देश भर में सबसे तीव्र गिरावट है।
    • मध्य भारत (मध्य प्रदेश) और पूर्वी घाट (आंध्र प्रदेश, ओडिशा) में भी चिंताजनक रुझान दिख रहे हैं।
  • अंतर्निहित कारण: उच्च स्तर पर खनन, वनों की कटाई और औद्योगिक विस्तार के कारण इन क्षेत्रों में व्यापक आवास हानि हुई है।

हाथी की पारिस्थितिक भूमिका

  • हाथी ‘वन के इंजीनियर’ (Engineers of the Forest) के रूप में: हाथी प्रमुख प्रजाति हैं जो पारितंत्र को आकार देते हैं।
    • वनस्पतियों को खाकर और रौंदकर वे वनों में मार्ग निर्माण करते हैं तथा उनका गोबर (मल) बीजों को फैलाता है, जिससे पुनर्जनन को बढ़ावा मिलता है।
    • यदि हाथियों की संख्या में कमी आएगी, तो सम्पूर्ण वन पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ जाएगा।

मुख्य चुनौतियाँ

  • मानव-हाथी संघर्ष (HEC):
    • हाथी व्यापक रूप से फैले हुए और प्रवासी जीव होते हैं, जिन्हें बड़े सन्निहित वन क्षेत्रों की आवश्यकता होती है।
    • कृषि, राजमार्गों और रेलवे के विस्तार ने उनके मार्गों को खंडित कर दिया है, जिससे संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं।
  • स्मरण शक्ति और पारंपरिक मार्ग:
    • हाथियों की स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती है, वे 15 वर्ष तक के प्रवास पथों को याद रख सकते हैं।
    • वे रेल लाइन या सड़क जैसी नई बाधाओं के बावजूद इन रास्तों पर चलते रहते हैं, जिसके कारण अक्सर दुर्घटनाएँ तथा मौतें होती हैं, खासकर ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में।
  • अतिक्रमण और फसल नुकसान:
    • खेतों या इमारतों द्वारा हाथी गलियारों पर अतिक्रमण के कारण हाथी ग्रामीण क्षेत्रों में घुस आते हैं।
    • इससे फसलें नष्ट हो जाती हैं, संपत्ति का नुकसान होता है और कभी-कभी प्रतिशोध में हाथियों को बिजली के झटके या जहर देकर मार भी दिया जाता है।

आगे की राह

  • प्रत्येक नई परियोजना – चाहे वह राजमार्ग, बांध या औद्योगिक स्थल हो – में हाथियों की आवाजाही के प्रभावों का आकलन किया जाना चाहिए।
    • विकास और संरक्षण साथ-साथ होने चाहिए, जिससे पारिस्थितिकी संपर्क सुनिश्चित हो सके।
  • गलियारा प्रबंधन: हाथी गलियारों (जैसे- काजीरंगा-कार्बी आंगलोंग गलियारा) को कानूनी रूप से संरक्षित और अतिक्रमण से मुक्त रखा जाना चाहिए।
    • राजमार्गों पर इको-पुलों, अंडरपासों और पुलियों का निर्माण पशुओं के सुरक्षित आवागमन को सुगम बनाता है।
  • नवीन प्राकृतिक निवारक
    • मधुमक्खी बाड़ लगाना: हाथी मधुमक्खियों से डरते हैं, खेतों के चारों ओर मधुमक्खी के बक्से लगाना एक प्राकृतिक निवारक के रूप में कार्य करता है, जैसा कि केरल और तमिलनाडु में देखा गया है।
    • मिर्च बाड़: हाथियों को मिर्च की तीखी गंध नापसंद होती है। मिर्च से लिपटी रस्सियाँ या जलती हुई मिर्च का धुआँ, विशेष रूप से कर्नाटक और असम में, हाथियों के प्रवेश को प्रभावी रूप से हतोत्साहित करता है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS): जीपीएस या सेंसर का उपयोग करके हाथियों के झुंड की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग लागू करना।
    • किसानों को पहले से ही सचेत कर दिया जाना चाहिए, ताकि वे निवारक उपाय कर सकें या घर के अंदर रह सकें, जिससे जान-माल और फसलों की हानि कम हो सके।

निष्कर्ष

भारत विश्व के 60% एशियाई हाथियों का घर है, जिससे उनका संरक्षण वैश्विक अनिवार्यता बन गया है। 2025 की गणना को केवल आकलन के रूप में नहीं बल्कि मजबूत संरक्षण कार्रवाई के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। पद्धतिगत परिवर्तनों के बावजूद ध्यान आवास अखंडता, गलियारा संपर्कता और सह-अस्तित्व पर केन्द्रित होना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: 2025 के अखिल भारतीय समकालिक हाथी अनुमान से जंगली हाथियों की संख्या में 18% की गिरावट का पता चलता है। हाथियों की संख्या में कमी के अंतर्निहित कारणों पर प्रकाश डालिए और संरक्षण लक्ष्यों को विकास की आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने के उपाय सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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