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भारत में खारे पानी के मगरमच्छों का संरक्षण : एक पारिस्थितिकी मुद्दा

Lokesh Pal September 16, 2025 05:15 89 0

संदर्भ:

सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व में खारे पानी के मगरमच्छों के हालिया सर्वेक्षण से बढ़ती     जनसंख्या तथा जनसांख्यिकीय विविधता का पता चलता है, जो पारिस्थितिकीय सफलता और   बाघ तथा हाथियों जैसी वन्यजीव प्रजातियों से परिवर्तन का संकेत है।

सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व:

  • यह क्षेत्र विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है, एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है तथा रॉयल बंगाल टाइगर का घर है, जो भारत और बांग्लादेश दोनों राष्ट्रों में फैला हुआ है।

खारे पानी के मगरमच्छों (साल्टीज़) के बारे में:

  • आवास और वितरण: खारे पानी का मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पोरोसस) भारत के पूर्वी तट से दक्षिण पूर्व एशिया और सुंडालैंड से उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तथा माइक्रोनेशिया तक खारे पानी के आवासलवणीय आर्द्रभूमि तथा स्वच्छ जल की नदियों का मूल निवासी है।
  • आकार एवं महत्त्व: ये विश्व के सबसे बड़े जीवित सरीसृप हैं।

कानून से कार्यवाही तक: भारत में मगरमच्छ संरक्षण

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • अनुसूची I और II: बाघों, हाथियों और खारे पानी के मगरमच्छों जैसे वन्यजीवों को पूर्ण संरक्षण प्रदान करते हैं तथा उनके शिकार पर सबसे अधिक दंड का प्रावधान करते हैं।
    • अनुसूची III और IV: सुरक्षा प्रदान करते हैं लेकिन कम दंड के साथ।
    • अनुसूची V: इसमें उन ‘पीड़क’ जंतुओं (जैसे- कौवे, फ्रूट चमगादड़) की सूची दी गई है, जिनका शिकार किया जा सकता है।
    • अनुसूची VI: इसमें उन पौधों की सूची दी गई है, जिनकी खेती निषिद्ध है।
      • इस अधिनियम के तहत मगरमच्छों को व्यापक कानूनी संरक्षण प्रदान करना एक महत्त्वपूर्ण कारक था।
  • भगवतपुर मगरमच्छ परियोजना: यह भारत का एकमात्र मगरमच्छ-विशिष्ट बंदी प्रजनन केंद्र (captive breeding centre) है
    • कार्यप्रणाली: वन विभाग जंगल से मगरमच्छ के अण्डे एकत्र करता है, उन्हें केन्द्र में सुरक्षित वातावरण में सेता है, नवजातों को तब तक पालता है जब तक वे मजबूत नहीं हो जाते, और फिर उन्हें वापस सुंदरबन में छोड़ देता है।
    • आवश्यकता: यह परियोजना शिकारियों, प्राकृतिक आपदाओं और आंतरिक संघर्षों के कारण वनों में मगरमच्छ के बच्चों के जीवित रहने की दर बहुत कम है।
      • इस सफलता का श्रेय कानूनी संरक्षण और लक्षित प्रजनन कार्यवाही के संयोजन को दिया जाता है।

संरक्षण मानसिकता में परिवर्तन:

  • ‘करिश्माई प्रजातियों’ (Charismatic Species) पर ध्यान केंद्रित करना: ऐतिहासिक रूप से संरक्षण प्रयासों में बाघों, हाथियों, हिम तेंदुओं और पांडा जैसी “करिश्माई प्रजातियों” पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो धन, जनमत और सरकारी परियोजनाओं (जैसे- प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट एलीफेंट) को आकर्षित करते हैं।
  • ‘गैर-करिश्माई प्रजातियों’ की उपेक्षा: मगरमच्छ, सांप, मेंढक और कीड़े जैसी कई महत्त्वपूर्ण प्रजातियों को गैर-करिश्माई माना जाता है, जिससे उन्हें कम सार्वजनिक स्नेह मिलता है और धन प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  • विज्ञान-आधारित संरक्षण: मगरमच्छ जैसी प्रजातियों की पारिस्थितिक भूमिका को पहचानना और उसका मूल्यांकन करना एक महत्त्वपूर्ण मानसिकता परिवर्तन था, जिसने संरक्षण को करिश्मा से आगे बढ़कर साक्ष्य-आधारित संरक्षण की ओर अग्रसर किया।

मगरमच्छों की पारिस्थितिक भूमिकाएँ:

  • शीर्ष शिकारी: मगरमच्छ अपनी खाद्य शृंखला में सबसे ऊपर हैं, इनका कोई प्राकृतिक शिकारी नहीं है।
  • कीस्टोन प्रजातियाँ: ये सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिए इन्हें हटाए जाने से पारिस्थितिकी तंत्र संकट में पड़ जाएगा।
  • पारिस्थितिक कार्य:
    • जनसंख्या नियंत्रण: ये मछलियों, केकड़ों और अन्य जीवों जानवरों की जनसंख्या को नियंत्रित करते हैंजिससे अति जनसंख्या को रोका जा सके।
    • स्कैवेंजर्स: ये मृत जंतुओं को खाकर पानी को स्वच्छ करते हैंजिससे बीमारियों के प्रसार को रोका जा सकता है
    • पारिस्थितिक संकेतक: स्वस्थ मगरमच्छ आबादी एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत देती है, जिसमें भोजन की बेहतर उपलब्धता, पानी की गुणवत्ता और प्रजनन आवास शामिल हैं।
      • मगरमच्छों के संरक्षण का अर्थ है, संपूर्ण मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना।

मगरमच्छ संरक्षण में चुनौतियाँ:

  • जलवायु परिवर्तन: समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और नदियों में लवणीय जल के प्रवेश के कारण पानी अधिक खारा हो जाता है, जिसमें खारे पानी के मगरमच्छ निवास कर सकते हैं, लेकिन उनके शिकार (जैसे- मेंढक और स्वच्छ जल के कछुए) निवास नहीं कर सकते। 
    • इससे मगरमच्छ के भोजन स्रोत पर प्रभाव पड़ता है।
  • आवास विखंडन: समुद्र का बढ़ता स्तर और कटाव मैंग्रोव आवासों को विखंडित तथा पशु आवासों को नष्ट कर रहे हैं।
  • प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण: वर्तमान संरक्षण प्रयास अक्सर प्रतिक्रियात्मक होते हैं, जो समस्याओं के उत्पन्न होने के बाद ही उनका समाधान करते हैं।

आगे की राह:

  • सहायक प्रजनन को सक्षम बनाना: सहायक प्रजनन को सक्षम बनाने से जलवायु-प्रेरित आवास क्षति के विरुद्ध संवेदनशील आबादी को सुरक्षित किया जा सकता है।
    • दीर्घकालिक अनुकूलन सुनिश्चित करने के लिए इसे आवास पुनर्स्थापन के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
  • जनसंचार: मगरमच्छ जैसी प्रजातियों के महत्त्व के बारे में जनता को शिक्षित तथा जागरूक किए जाने की आवश्यकता है ।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: लक्षित संरक्षण के लिए जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करना।

निष्कर्ष:

मगरमच्छों की पुनर्प्राप्ति से यह स्पष्ट होता है, कि गैर-करिश्माई प्रजातियों (non-charismatic species) पर ध्यान दिए जाने पर उन्हें कानून और सरकारी नीतियों से लाभ मिलता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व में खारे पानी के मगरमच्छों की हालिया वापसी पारिस्थितिक और नीतिगत सफलताओं को दर्शाती है। प्रजातियों के संरक्षण में वैधानिक ढाँचों और लक्षित संरक्षण हस्तक्षेपों की भूमिका पर चर्चा कीजिए। प्रजातियों के संरक्षण के लिए उभरते खतरे क्या हैं और उनकी सुरक्षा के लिए कौन-से उपाय अपनाए जाने की आवश्यकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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