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Lokesh Pal
October 27, 2025 05:00
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नैतिकता और विधि के मध्य संबंधों ने दार्शनिकों तथा न्यायविदों को लंबे समय से आकर्षित किया है। यह चर्चा भारत के संवैधानिक विमर्श में “संवैधानिक नैतिकता” की अवधारणा के माध्यम से पुनः विकसित हुई है, जो नैतिक शासन को संवैधानिक सिद्धांतों के साथ संतुलित करती है।
संवैधानिक नैतिकता संवैधानिक सीमाओं के भीतर नैतिक शासन को स्थापित करती है तथा जवाबदेह, न्यायसंगत और समावेशी लोकतंत्र सुनिश्चित करती है। यह राजनीतिक हितों पर संवैधानिक सर्वोच्चता की रक्षा करती है, जो डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा परिकल्पित संविधान की आत्मा को प्रतिबिंबित करती है।
मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:प्रश्न: डॉ. बी.आर. अंबेडकर के अनुसार, “संवैधानिक नैतिकता कोई स्वाभाविक भावना नहीं है, इसे विकसित करना होगा।” इस कथन के संदर्भ में, ‘संवैधानिक नैतिकता’ में क्या निहित है, इसका आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए और समकालीन भारत में इसके विकास में विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) |
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