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पेसा अधिनियम का भारतीय वन संरक्षण को प्रोत्साहित करने में योगदान

Lokesh Pal June 27, 2024 05:30 127 0

संदर्भ: 

भारत में संरक्षण के प्रति नीतिगत दृष्टिकोण लंबे समय से दो प्रकार के संघर्षों से जूझ रहा है: संरक्षण बनाम स्थानीय समुदायों द्वारा संसाधन निष्कर्षण, और संरक्षण बनाम ‘आर्थिक विकास’

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पेसा अधिनियम (1996), त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था, भूरिया समिति (1995 ) आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: पंचायत अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार अधिनियम, 1996 की प्रासंगिकता, चुनौतियाँ एवं समाधान, ग्राम सभाओं को दी गई शक्तियां और कार्य, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास आदि।

पेसा अधिनियम (1996) के बारे में:

  •       पृष्ठभूमि: ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिए 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन किया गया था।
    • इस संशोधन के माध्यम से त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था को कानून बनाया गया।
    • हालाँकि, अनुच्छेद 243() के तहत अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों में इसका अनुप्रयोग प्रतिबंधित था।
    • पेसा (PESA) अधिनियम (1996) की आधारशिला : 1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद, भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए आदिवासी स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए पेसा (PESA) अधिनियम 1996 अस्तित्व में आया।
  •     राज्य सरकार की भूमिका:
    • केंद्र द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ग्राम सभाओं के माध्यम से        स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए पेसा कानून लागू किया गया था।  
    • राज्य सरकारों को अपने-अपने पंचायत राज अधिनियमों में संशोधन करना आवश्यक था, तथा ऐसा कोई कानून नहीं बनाना था जो पेसा (PESA) के अधिदेश के साथ असंगत हो।
  • उद्देश्य: यह अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों, जनजातीय समुदायों को अपनी स्वयं की शासन प्रणाली के माध्यम से स्वयं पर शासन करने के अधिकार को कानूनी रूप से मान्यता देता है।
    • यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।
  • केन्द्र सरकार अधिनियम: भारतीय संविधान 1949 में अनुच्छेद 243ड । यह भाग कुछ क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा।
    • इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी।

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (1996):

  • आजादी का अमृत महोत्सव के तहत पेसा कानून के लागू होने की 25वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।
  • संविधान का अनुच्छेद 243 ड पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों को संविधान के भाग IX से छूट देता है, लेकिन संसद को संविधान में संशोधन के रूप में विचार किए बिना कानून द्वारा इसके प्रावधानों को अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों तक विस्तारित करने का अधिकार देता है।
  • दिलीप सिंह भूरिया समिति की सिफारिशों के आधार पर, जनजातीय सशक्तीकरण और उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए 1996 में पेसा अधिनियम बनाया गया था।
  • पेसा अधिनियम को संविधान के भीतर संविधान कहा जाता है क्योंकि यह संविधान के पंचायती राज (भाग IX) के प्रावधान को अनुच्छेद 244 के खंड (1) के तहत कुछ संशोधनों और अपवादों के साथ 10 राज्यों के पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों तक विस्तारित करता है।
  • पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों के अंतर्गत 10 राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान और तेलंगाना
  • यह विधेयक इन क्षेत्रों में ग्राम सभा और समुदाय की भूमिका को मान्यता देता है तथा राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह सीधे ग्राम सभा और पंचायतों को शक्ति और अधिकार प्रदान करे।
  • पंचायती राज मंत्राल, पेसा अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिए नोडल मंत्रालय है।

पेसा (PESA) अधिनियम के प्रावधान:

  • स्थानीय स्वशासन और सहभागी लोकतंत्र की संस्थाओं को बढ़ावा देने के लिए, पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों के लिए सभी राज्य पंचायती राज अधिनियमों में निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ हैं:
  • पंचायतों पर सभी राज्य कानून प्रथागत कानून, सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं और सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन प्रथाओं के अनुरूप होंगे;
  • प्रत्येक गांव में एक अलग ग्राम सभा होगी जिसमें ऐसे व्यक्ति शामिल होंगे जिनके नाम ग्राम स्तर पर पंचायत की मतदाता सूची में शामिल हैं;
  • प्रत्येक ग्राम सभा लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों और विवाद समाधान के प्रथागत तरीकों की सुरक्षा और संरक्षण करेगी;
  • प्रत्येक पंचायत में समुदाय की जनसंख्या के अनुपात में सीटों का आरक्षण (न्यूनतम 50%) होगा तथा सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित होंगे;
  • ग्राम सभा की भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ: गाँव में सभी विकास कार्यों को मंजूरी देना, लाभार्थियों की पहचान करना, धन के उपयोग के प्रमाण पत्र जारी करना।

ग्राम सभाओं को प्रदान की गई शक्तियाँ और कार्य:

  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास में अनिवार्य परामर्श का अधिकार।
  • आदिवासी समुदायों की पारंपरिक आस्था और संस्कृति का संरक्षण।
  • लघु वन उत्पादों का स्वामित्व।
  • स्थानीय विवादों का समाधान।
  • भूमि हस्तांतरण की रोकथाम।
  • ग्रामीण बाजारों का प्रबंधन।
  • शराब के उत्पादन, आसवन और निषेध को नियंत्रित करने का अधिकार।
  • धन-उधार पर नियंत्रण।
  • अनुसूचित जनजातियों से जुड़े अन्य अधिकार।

पेसा अधिनियम का महत्त्व :

  • सशक्त ग्राम सभाएँ: वे विकास योजनाओं को मंजूरी देने और सामाजिक क्षेत्रों में सभी प्रमुख विकासों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • जनजातीय एकीकरण: विकेन्द्रीकृत शासन जनजातीय लोगों की शिकायतों को कम करने, मुख्यधारा के साथ एकीकरण के प्रति विश्वास का निर्माण करने में मदद करता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा: पेसा (PESA) ग्राम सभाओं के माध्यम से जनजातियों को पारिस्थितिकी तंत्र के साथ अपने संबंध को संरक्षित करने का अधिकार देता है। 
  • उदाहरण के लिए, 2013 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ओडिशा सरकार को ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ जिले में बॉक्साइट खनन के लिए ग्राम सभा की अनुमति लेने का आदेश दिया, जिसके कारण नियमगिरि पहाड़ियों पर खनन रद्द कर दिया गया।
  • जनजातीय हितों और अधिकारों की रक्षा: संस्थाओं और पदाधिकारियों पर नियंत्रण से उनकी पारंपरिक संस्कृति, धर्म और पहचान के साथ-साथ संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने में मदद मिलती है।

पेसा अधिनियम की सीमाएँ:

  • पेसा अधिनियम के अधिनियमन ने आदिवासी समुदाय की आजीविका में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं और कुछ राज्य सरकारों की ओर से इस पर उदासीन प्रतिक्रिया इसे और बढ़ा देती है, जैसे-
    • पेसा नियम क्रियान्वयन में उदासीन राज्य : चार प्रमुख जनजातीय राज्यों अर्थात् झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा ने अभी तक पेसा नियम नहीं बनाए हैं।
    • कानून को दरकिनार करने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग: भूमि का अधिग्रहण अन्य अधिनियमों के तहत होता है, जो PESA के पीछे की भावना का उल्लंघन करता है, अर्थात आदिवासी भूमि की सुरक्षा और ग्राम सभाओं की सहमति। 
    • उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में, अधिकारियों ने 1957 के कोल बियरिंग एक्ट का उपयोग करके भूमि अधिग्रहण करने का फैसला किया।
    • कानून का खराब कार्यान्वयन: भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (IIPA) द्वारा आंध्र प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा में “पंचायत विस्तार अनुसूचित क्षेत्र अधिनियम (पेसा) की स्थिति” पर 2010 में किए गए अध्ययन में अधिनियम के खराब कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला गया।
    • उदाहरण के लिए, झारखंड के खूंटी जिले में जिन 65% लोगों की भूमि अधिग्रहित की गई, उनसे इस सम्बन्ध में अनुमति तक नहीं ली गई।
  • झारखंड के गुमला जिले में इसकी हिस्सेदारी लगभग 26% थी।
  • पेसा (PESA) क्रियान्वयन की असफलता के कारण : कई विशेषज्ञों का मानना है कि स्पष्टता की कमी, कानूनी दुर्बलता, नौकरशाही की उदासीनता, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, सत्ता के पदानुक्रम में परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध आदि के कारण PESA सफल नहीं हो सका।
  • राज्य भर में किए गए सामाजिक ऑडिट से यह भी पता चला है कि वास्तव में विभिन्न विकासात्मक योजनाओं को ग्राम सभा द्वारा कागजों पर ही मंजूरी दी जा रही थी, जबकि चर्चा और निर्णय लेने के लिए कोई बैठक ही नहीं होती है इसलिए यह धरातल पर साकार नहीं हो पाती हैं।

आगे की राह :

  • पेसा कानून के माध्यम से जनजातियों की जल, जंगल और जमीन बचाने की भावना को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित तरीकों से सुधार हेतु पहल की जा सकती है-
  • अनुसूचित क्षेत्रों में नगरपालिका विस्तार (MESA) लागू करना: भूरिया समिति ने 73वें और 74वें संशोधन के प्रावधानों को V (पांचवीं) अनुसूची क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिए PESA और MESA की सिफारिश की। लेकिन शहरी आदिवासी क्षेत्रों में अभी तक MESA लागू नहीं हुआ है।
  • पेसा नियमों को लागू करना : शेष राज्यों को शीघ्रता से पेसा नियमों को लागू करना चाहिए तथा पंचायती राज मंत्रालय के 2009 के मॉडल नियमों के आधार पर उनका कार्यान्वयन करना चाहिए।
  • अन्य विनियमों के साथ पेसा का अभिसरण: जनजातीय अधिकारों/संस्कृति की रक्षा के लिए पेसा के प्रावधानों को वन अधिकार अधिनियम (2006), भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम (2013) आदि के साथ अभिसरण किया जाना चाहिए।
  • नया जनजातीय समुदाय विकास मॉडल: पंचायती राज मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय को ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) तैयार करते समय जनजातीय समुदाय की परंपराओं और प्रयासों के अभिसरण को ध्यान में रखते हुए जनजातीय समुदाय के लिए एक नया विकास मॉडल तैयार करना चाहिए।
  • अन्य कदम: जनजातियों के बीच भूमि हस्तांतरण को कम करना तथा जनजातीय समुदायों के क्षमता निर्माण के लिए अधिक सामाजिक विकास (स्वास्थ्य और शिक्षा) पर ध्यान केंद्रित करना।

निष्कर्ष:

पेसा अधिनियम आदिवासी स्वशासन को सशक्त बनाता है और अधिकारों की रक्षा करता है, लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन में अनेक चुनौतियां हैं। इसकी सफलता के लिए प्रभावी सुधार और अन्य कानूनों के साथ एकीकरण आवश्यक है ताकि जनजातियों की जल, जंगल और जमीन बचाने की भावना को संरक्षित व प्रोत्साहित किया जा सके। 

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न :

प्रश्न: भारत में जनजातीय शासन पर पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा अधिनियम) के प्रभाव का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। इसके कार्यान्वयन में प्रमुख प्रावधानों और चुनौतियों पर चर्चा करें। जनजातीय क्षेत्रों में स्वशासन को बढ़ावा देने में इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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