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POCSO अधिनियम और सहमति की न्यूनतम आयु संबंधी विवाद

Lokesh Pal July 28, 2025 05:15 14 0

सन्दर्भ:

लैंगिक अपराधों से बालको का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 मुख्य रूप से बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए निर्मित किया गया है। हालाँकि, यह प्रवृत्ति देखते हुए कि 15 वर्ष से अधिक लेकिन 18 वर्ष से कम आयु के किशोरों को, स्वैच्छिक संबंधों में तथा सहमति से यौन संबंध बनाने पर अक्सर प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है, न्यायालय से इस कानून के समीक्षा की माँग की गई।

वर्तमान विधिक स्थिति और इसके निहितार्थ

  • भारत में सहमति की विधिक आयु: मौजूदा भारतीय कानून के तहत, शारीरिक संबंधों के लिए सहमति की आयु 18 वर्ष है।
  • 18 वर्ष से कम आयु में सहमति की अमान्यता: इसका अर्थ यह है, कि यदि कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम आयु का है, तो कोई भी शारीरिक संबंध, भले ही वह उसकी स्पष्ट सहमति पर आधारित हो, कानून की दृष्टि में वैध सहमति नहीं माना जाएगा।
    • कई कानूनों के तहत कठोर दंडों का प्रावधान है।
  • नाबालिगों के संरक्षण को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कानून: इनमें POCSO अधिनियम की धारा 6; बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 और नव-प्रवर्तित भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के प्रावधान शामिल हैं।
  • बच्चे की एक समान परिभाषा: कानून स्पष्ट रूप से 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालक/बच्चा मानता है, चाहे उसकी परिपक्वता या व्यक्त सहमति कुछ भी हो।
    • उदाहरण के लिए, 16 वर्षीय लड़की को POCSO अधिनियम की धारा 2(d) के तहत “बच्चा” माना जाता है, जिससे उसकी सहमति महत्त्वहीन हो जाती है।

विवाद: किशोर और कानून

  • इंटरनेट और डिजिटलीकरण के वर्तमान युग में, बच्चे तेजी से परिपक्व हो रहे हैं और महत्त्वपूर्ण अनुभव प्राप्त कर रहे हैं।
  • इससे ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है, जिनमें किशोर, विशेषकर 16 या 17 वर्ष की आयु के किशोर, सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं।
  • आपसी सहमति के बावजूद, ये मामले आयु सीमा के कारण POCSO अधिनियम के दायरे में आते हैं, जिससे इसमें शामिल लोगों के लिए गंभीर कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
  • न्यायालयों ने अपने निर्णयों में प्रायः इस विसंगति को देखा है तथा परिवर्तित सामाजिक मानदंडों के साथ तालमेल बिठाने के लिए सहमति की आयु को कम करने की आवश्यकता पर भी टिप्पणी की है।

पुनर्मूल्यांकन और विविध दृष्टिकोणों का आह्वान

  • सहमति की आयु कम करना: सहमति की आयु 18 से घटाकर 16 वर्ष करने का समर्थन करते हुए न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है।
  • गैर-दंडनीय अपराध के लिए न्यायिक सिफारिश: संबंधित मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त इंदिरा जयसिंह ने सुझाव दिया है, कि यदि 16 से 18 वर्ष की आयु के व्यक्तियों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बनते हैं, तो इसे दंडनीय अपराध नहीं माना जाना चाहिए।
    • उनका तर्क है, कि इस तरह के अपवाद से कानून के सुरक्षात्मक उद्देश्य को संरक्षित किया जा सकेगा, साथ ही शोषणकारी न होने वाले किशोर संबंधों के विरुद्ध इसके दुरुपयोग को रोका जा सकेगा।
  • विधि आयोग का दृष्टिकोण: 2023 की एक रिपोर्ट में, विधि आयोग ने कहा था कि वह सहमति की उम्र में परिवर्तन के विरुद्ध है। आयोग ने इसके बजाय, 16 से 18 वर्ष के बच्चों के स्वैच्छिक, सहमति से बने संबंधों के मामलों में सज़ा सुनाते समय निर्देशित न्यायिक विवेकअपनाने की सलाह दी थी।
    • तर्क: 16 से 18 वर्ष की आयु के व्यक्तियों द्वारा दी गई सहमति में प्रायः हेरफेर किया जा सकता है, क्योंकि इस आयु वर्ग के कई किशोरों में अभी सही और गलत में अंतर करने की पूरी क्षमता नहीं होती है।
  • मद्रास उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: विजयलक्ष्मी बनाम राज्य प्रतिनिधि मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने 2021 में प्रस्तावित किया, कि यदि कोई बच्चा 16 से 18 वर्ष के बीच का है और सहमति से यौन संबंध बनाता है, तो इसे दंडनीय अपराध नहीं माना जाना चाहिए, यदि दूसरे व्यक्ति के साथ उम्र का अंतर 5 वर्ष से कम है।
    • हालाँकि, यदि आयु का अंतर 5 वर्ष से अधिक है, तो इसे दंडनीय अपराध माना जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी स्थिति में यौन शोषण का जोखिम बढ़ जाता है।

निष्कर्ष

किशोरों को यौन अपराधों से संबंधित कानून और उसके परिणामों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। सामान्य किशोर व्यवहार को अपराध घोषित करना, बिना सहमति के, शोषणकारी यौन अपराधों से बचाव का तरीका नहीं है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

सहमति की आयु को लेकर चल रहे विवाद प्रायः नाबालिगों की सुरक्षा को व्यक्तिगत स्वायत्तता और परिवर्तित सामाजिक मानदंडों के विरुद्ध खड़ा करते हैं। इसकी सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता और बाल संरक्षण तथा किशोर अधिकारों के मध्य संतुलन बनाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत में सहमति की उचित आयु निर्धारित करने में आने वाली जटिलताओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(250 शब्द, 15 अंक)

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