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COP-29 सम्मेलन : मीथेन कूटनीति पर ध्यान केंद्रित करना

Lokesh Pal November 02, 2024 05:15 111 0

संदर्भ : 

11 से 22 नवंबर 2024 तक विश्व के नेता जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के 29वें सम्मेलन (सीओपी29) के लिए बाकू, अजरबैजान में एकत्रित होंगे। इस सम्मेलन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) के वायुमंडलीय सांद्रण को स्थिर करने और जैविक कचरे से मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर विचार किया जाना प्रस्तावित है। 

पार्टियों का सम्मेलन (सीओपी)

  • यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। 
  • इस अभिसमय के सभी पक्षकार राज्यों का COP अर्थात पार्टियों का सम्मेलन में प्रतिनिधित्व होता है, जहां वे अभिसमय के कार्यान्वयन की समीक्षा करते हैं।
  • यह अभिसमय ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) के वायुमंडलीय सांद्रण को स्थिर करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सहयोग के लिए बुनियादी व कानूनी रूपरेखा और सिद्धांत निर्धारित करता है।

COP29 का मुख्य विषय 

  •  वित्त पर जोर : इसमें वित्त पर जोर दिया गया है , क्योंकि विकसित देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद के लिए विकासशील देशों को वित्तीय सहायता और तकनीकी सहायता प्रदान करें।
  • नवीन सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी): इसे नवीन सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) नाम दिया गया है। 
    • दूसरे शब्दों में, आगामी COP29 बैठक में एक महत्वपूर्ण मसौदे के रूप में एक नया वार्षिक जलवायु वित्त जुटाने का लक्ष्य निर्धारित करना है, जिसे न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) के रूप में जाना जाता है। 
    • यह लक्ष्य विकासशील देशों को आवंटित जलवायु वित्त की राशि निर्धारित करेगा।
  • अज़रबैजान का एजेंडा : आगामी कॉप -29 हेतु मेजबान देश, अज़रबैजान ने एक कार्य योजना प्रस्तावित की है जिसमें बैटरी भंडारण क्षमता को छह गुना बढ़ाने, बिजली नेटवर्क का महत्वपूर्ण विस्तार करने और जैविक कचरे से मीथेन उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता शामिल है।

मीथेन उत्सर्जन संबंधी मसौदा 

  • मीथेन गैस जलवायु को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रही है, तथा पूर्व-औद्योगिक काल से वर्तमान तक के आँकड़ों के मुताबिक यह वैश्विक तापमान में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान देता रहा है, तथा वायुमंडल में इसका स्तर तेजी से बढ़ रहा है। 
  • उल्लेखनीय बात यह है कि 100 वर्ष की अवधि में मीथेन की ग्लोबल वार्मिंग क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 28 गुना अधिक है, तथा 20 वर्ष की अवधि में यह 84 गुना अधिक प्रभावी है।
  • इससे यह संकेत मिलता है कि मीथेन उत्सर्जन को कम करना, निकट भविष्य में तापमान वृद्धि को धीमा करने के लिए सबसे प्रभावी रणनीतियों में से एक है। जिससे जलवायु परिवर्तन को स्थिर करने के लिए आवश्यक दीर्घकालिक CO2 कटौती के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बहुमूल्य समय मिल जाता है।

मीथेन गैस : 

मीथेन एक ऐसी गैस है जो जलवायु परिवर्तन में अत्यधिक योगदान देती है। इसका एक अणु CO2 के एक अणु की तुलना में अधिक ऊष्मा अवशोषित कारता है, लेकिन मीथेन का वायुमंडल में जीवनकाल अपेक्षाकृत कम, अर्थात 7 से 12 वर्ष का होता है, जबकि CO2 सैकड़ों वर्ष या उससे अधिक समय तक बना रह सकता है।

अमेरिका और चीन का साझा दृष्टिकोण 

  • अपने तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिए एकजुट हुए हैं। 
  • सीओपी 28 : दुबई में आयोजित सीओपी 28 (नवंबर-दिसंबर 2023) में, उन्होंने मीथेन और अन्य गैर-CO2 उत्सर्जन पर केंद्रित शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात के साथ साझेदारी की है।
  • मीथेन उत्सर्जन के लिए चीन की राष्ट्रीय योजना : नवंबर 2023 में, चीन ने मीथेन उत्सर्जन के प्रबंधन के लिए अपनी पहली राष्ट्रीय योजना का भी अनावरण किया।
    • यद्यपि चीन की इस योजना में विशिष्ट कटौती लक्ष्य निर्धारित नहीं किए गए थे। इसमें क्षमता निर्माण को प्राथमिकता नहीं दी गई, फिर भी इसने मीथेन की समस्या से निपटने तथा इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ सहयोग करने की चीन की इच्छा को प्रदर्शित किया।

मीथेन उत्सर्जन पर भारत का दृष्टिकोण 

  • चीन और अमेरिका के बाद भारत मानवजनित मीथेन का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
  • भारत के पास क्षेत्र-विशिष्ट वित्तपोषण, बुनियादी ढांचे के लिए सहायता और क्षमता निर्माण सहायता प्राप्त करके अमेरिका-चीन मीथेन साझेदारी से लाभ उठाने का अवसर है।

“मानवजनित” शब्द का अर्थ : 

वैज्ञानिक “मानवजनित” शब्द का प्रयोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोगों द्वारा उत्पन्न या प्रभावित पर्यावरणीय परिवर्तन के लिए करते हैं।

  • क्षेत्रवार मीथेन उत्सर्जन संबंधी आँकड़े : मीथेन उत्सर्जन से संबंधित प्रमुख क्षेत्रों के आँकड़े निम्नलिखित हैं : 
    • कृषि का योगदान 74 प्रतिशत। 
    • अपशिष्ट का योगदान 14 प्रतिशत। 
    • ऊर्जा का योगदान 11 प्रतिशत।
    • औद्योगिक प्रक्रियाएं 1 प्रतिशत।

नोट : जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन पर भारत की तीसरी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट के अनुसार, देश ने 2016 में 409 मिलियन टन CO2-समतुल्य मीथेन उत्सर्जित किया (भूमि उपयोग और वानिकी को छोड़कर)।

  • मीथेन उत्सर्जन का पार्टिकुलेट मैटर के स्तर  पर प्रभाव : 
    • मीथेन के हानिकारक प्रभाव जलवायु परिवर्तन के महत्त्वपूर्ण करकों में से एक है। 
    • उदाहरण के लिए, कचरे के ढेरों में आग लगने से वायु प्रदूषण में काफी वृद्धि हो सकती है। 
    • 2022 में, दिल्ली के भलस्वा डंपसाइट पर दो सप्ताह तक लगी आग के कारण निकटवर्ती वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों पर पार्टिकुलेट मैटर का स्तर सामान्य से 30 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक बढ़ गया।
  • भारत वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने में क्यों हिचकिचा रहा है?
    • भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की आबादी का अधिकांश हिस्सा विशेषकर पशुधन और चावल की खेती पर निर्भर है। यह उसे अर्थव्यवस्था-व्यापी मीथेन कटौती लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता या वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (जीएमपी) पर हस्ताक्षर करने के प्रति सतर्क करती है।
    •  वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (जीएमपी) का लक्ष्य 2020 के स्तर से 2030 तक उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कमी लाना है।

फिर भी, मीथेन पर अमेरिका-चीन का जोर भारत के लिए अपशिष्ट प्रबंधन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्षित समर्थन प्राप्त करने का अवसर प्रस्तुत करता है।

भारत के अपशिष्ट प्रबंधन कार्यक्रम

भारत सरकार ने अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक मजबूत नियामक ढांचा स्थापित किया है, लेकिन सीमित स्थानीय क्षमता प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है।

  • केस स्टडी (इंदौर): मध्य प्रदेश के इंदौर में शहरव्यापी जैविक अपशिष्ट छंटाई के साथ एक बड़ा बायोमीथेन संयंत्र भी स्थापित किया गया है, जो बसों के लिए ईंधन उत्पन्न करता है।
  • गोबरधन योजना : सरकार गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन (गोबरधन) योजना को बढ़ावा दे रही है। यह योजना महत्त्वपूर्ण रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मवेशियों के अपशिष्ट के उपयोग और स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन को प्रोत्साहित करती है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन पर आधारित यह प्रयास स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 कार्यक्रम का हिस्सा हैं जिसका उद्देश्य ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ाना है।
  • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन: राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के माध्यम से, सरकार सतत कृषि हेतु जलवायु-लचीली प्रथाओं को बढ़ावा दे रही है, जिसमें चावल की खेती में मीथेन को प्रभावी रूप से कम करने की तकनीकें शामिल हैं, जिससे उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी आ सकती है।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम):  यह मिशन पशुधन से मीथेन उत्सर्जन को कम करने में मदद करने के लिए हरा चारा उत्पादन, सिलेज बनाना, भूसा काटना और कुल मिश्रित राशन खिलाने जैसी प्रथाओं को भी प्रोत्साहित करता है।

 

प्रमुख चुनौतियाँ : डेटा गुणवत्ता

  • उत्सर्जन कारकों और अपशिष्ट प्रवाह मात्रा सहित अंतर्निहित डेटा की गुणवत्ता में कमी देखी जा सकती है। 
  • उदाहरण के लिए, दिल्ली और मुंबई की सैटेलाइट निगरानी प्रणाली से पता चलता है कि वास्तविक उत्सर्जन स्तर आम तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले अनुमानों से 50 प्रतिशत से 100 प्रतिशत अधिक है। इसके अलावा, डंपसाइट मुंबई के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के एक चौथाई से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं।

निष्कर्ष:

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के 29वें सम्मेलन के लिए वैश्विक नेताओं को एक दृष्टिकोण पर प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है।  हालांकि भारत ने अपशिष्ट प्रबंधन में अपनी योजनाओं और पहलों के साथ पहले ही आधार तैयार कर लिया है। परंतु वर्तमान परिस्थितियों के तहत समय रहते भारत को मीथेन कूटनीति में आगे बढ़ना चाहिए और अपने मीथेन शमन प्रयासों के लिए अमेरिका-चीन मीथेन साझेदारी से आवश्यक सहायता लेनी चाहिए ।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: निकट भविष्य में वैश्विक तापमान में वृद्धि को धीमा करने के लिए मीथेन में कमी लाना महत्वपूर्ण है। भारत के मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों और प्रत्येक क्षेत्र में कमी के संभावित उपायों के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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