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जलवायु अधिकार पर न्यायालय का विचार: भारत के समक्ष प्रवर्तन चुनौतियाँ

Lokesh Pal July 01, 2024 05:00 35 0

संदर्भ:

अपने हालिया फैसले के माध्यम से भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने, एम. के. रंजीत सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ तथा अन्य के मामले में, भारत के जलवायु परिवर्तन संबंधी न्यायशास्त्र के मुद्दे को उजागरकर करने का प्रयास किया है

 

  • प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एम.के. रंजीत सिंह एवं अन्य बनाम भारत संघ तथा अन्य, जीवन का अधिकार और समानता का अधिकार आदि।
  • मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संवैधानिक अधिकार के रूप में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने का अधिकार, भारत में जलवायु परिवर्तन के लिए एक व्यापक कानून की आवश्यकता एवं प्रवर्तन सम्बंधी चुनौतियाँ आदि।

जलवायु अधिकार पर न्यायालय:

  • इसने भारत के संविधान में ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने’ के अधिकार को आगे बढाया है, तथा जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार दोनों को इसके स्रोतों के रूप में पहचान दी है।
  • जबकि नई सरकार अपनी अनिवार्यताओं और एजेंडे पर विचार कर रही है, रंजीत सिंह जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचने और संभवतः अधिक व्यवस्थित शासन को लागू करने का एक अवसर प्रदान करते हैं।

जलवायु के इर्द-गिर्द एक नया अधिकार:

  • विद्वान और कानूनी व्यवसायी अभी भी इस निर्णय पर विचार कर रहे हैं।
  • न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि कैसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के आवास के माध्यम से विद्युत पारेषण लाइनें बिछाई जा सकती हैं।
  • सरकार ने दावा किया कि संकटग्रस्त पक्षी के आवास की सुरक्षा के संबंध में पिछले न्यायालय के आदेश से देश की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्रभावित हुई है।
  • इस आदेश को संशोधित करते हुए न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के त्वरित विकास को सक्षम करने के लिए पारेषण अवसंरचना को प्राथमिकता दी है
  • लेकिन इस निर्णय का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था नवनिर्मित ‘जलवायु अधिकार’, जो संवैधानिक रूप से गारंटीकृत जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) और समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) में निहित था।
  • इस अधिकार को संविधान में शामिल करने से जलवायु अधिकारों पर मुकदमेबाजी करने सम्बंधी द्वार खुल सकता है, जिससे नागरिकों को सरकार से यह माँग करने का अधिकार मिल जाएगा कि उनके इस अधिकार की रक्षा सुनिश्चित की जाए।
  • प्रश्न है कि क्या न्यायालय जलवायु संबंधी नुकसानों से बचने के मुख्य मार्ग के रूप में बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा एजेंडे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है और इसके परिणामस्वरूप जलवायु अनुकूलन और स्थानीय पर्यावरणीय लचीलेपन को कम करके आंक रहा है?
  • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध इस अधिकार की रक्षा कैसे की जाएगी?
  • नवगठित सरकार के मसौदे (एजेंडे) के लिए इसके क्या निहितार्थ हो सकते हैं?

आगे की राह 

  • आगे बढ़ने का एक तरीका यह है कि इस अधिकार के इर्द-गिर्द न्यायिक निर्णयों को धीरे-धीरे अपनाया जाए। 
  • आगे बढ़ने का दूसरा तरीका यह है कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ़ अधिकार को सक्रिय रूप से लागू करने के लिए नया कानून बनाया जाए।

पहला दृष्टिकोण: 

  • जलवायु संबंधी दावों के इर्द-गिर्द मुकदमेबाजी को बढ़ाकर न्यायालय आधारित कार्रवाई का प्रसार, धीरे-धीरे और समय के साथ, (न्यायपालिका के नेतृत्व वाली) सुरक्षाओं के अधूरे ढाँचे को जन्म देगा।
  • मौलिक अधिकारों के संरक्षण का निर्देश देने वाले कई अन्य अच्छे न्यायिक आदेशों की तरह, जलवायु अधिकारों को साकार करना कई अनुवर्ती नीतिगत कार्रवाइयों के पारित होने पर निर्भर हो सकता है।
  • इसके अलावा, पैचवर्क दृष्टिकोण से भविष्य की नीति को निर्देशित करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा तैयार करने की संभावना कम है।
  • द्वितीय दृष्टिकोण:

जलवायु कानून, जलवायु अधिकारों की रक्षा के लिए दूसरा दृष्टिकोण एक पसंदीदा दृष्टिकोण है या नहीं इसको समझने के लिए निर्णय में स्वयं कहा गया है कि भारत में जलवायु परिवर्तन से संबंधित कोई ‘अम्ब्रेला कानून’ नहीं है।

  • अतः एक  ‘अम्ब्रेला कानून’ तैयार करने हेतु, एक व्यापक, रूपरेखा कानून के गुणों को स्पष्ट रूप से मान्यता देने का प्रस्ताव किया गया है।
  • अन्य देशों के अनुभव से लाभ उठाते हुए, ‘अम्ब्रेला कानून’ अर्थात रूपरेखा कानून कई लाभ प्रदान कर सकता है।
  • यह विभिन्न क्षेत्रों और प्रदेशों में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण निर्धारित कर सकता है, आवश्यक संस्थाओं का निर्माण कर सकता है और उन्हें शक्तियाँ प्रदान कर सकता है, तथा जलवायु परिवर्तन की प्रत्याशा और प्रतिक्रिया के लिए संरचित और विचार-विमर्शपूर्ण शासन के लिए प्रक्रियाएं स्थापित कर सकता है।

भारतीय संदर्भ में व्यवहार्यता 

  • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ़ अधिकार महत्वपूर्ण लाभ प्रदान कर सकते हैं और भारत के लिए जलवायु कानून पर विचार करने के एक अवसर भी साबित हो सकते हैं।
  • लेकिन यह आवश्यक है कि भारतीय जलवायु कानून अन्य देशों की आँख मूंदकर नकल न करे, और भारतीय संदर्भ के अनुरूप हो।
  • निस्संदेह, भारत को कम कार्बन ऊर्जा वाले भविष्य की ओर बढ़ने की आवश्यकता है जिसे एक अनिवार्यता के रुप में, रंजीत सिंह निर्णय में उजागर किया गया है।
  • लेकिन यह अपने आप में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
  • जलवायु कानून को अधिक टिकाऊ शहरों, इमारतों और परिवहन नेटवर्क के लिए एक सहायक विनियामक वातावरण भी बनाना चाहिए।
  • इसे स्थानीय संदर्भ के प्रति संवेदनशील ताप कार्रवाई योजनाओं जैसे अनुकूलन उपायों को सक्षम करना चाहिए।
  • इसे जलवायु के प्रति अधिक लचीली फसलों की ओर बढ़ने के लिए तंत्र प्रदान करना चाहिए।
  • इसे मैंग्रोव जैसे प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा करनी चाहिए जो चरम मौसम की घटनाओं के खिलाफ बफर के रूप में कार्य करते हैं।
  • इसे मैंग्रोव जैसे प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा और चरम मौसम की घटनाओं से कैसे निपटा जाये आदि सामाजिक समानता के प्रश्नों पर सक्रिय रूप से विचार करना चाहिए।
  • संक्षेप में, इसे जलवायु परिवर्तन संबंधी विचारों को भारत के विकास में मुख्यधारा में लाने और आंतरिक बनाने का एक तरीका प्रदान करना चाहिए।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचने की दिशा में प्रगति करने के लिए यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है।

निष्कर्ष: 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार’ को संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता देने से, जलवायु अधिकारों की रक्षा और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सतत विकास, अनुकूलन और लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए भारत के संदर्भ के अनुरूप एक व्यापक जलवायु कानून महत्वपूर्ण है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न

प्रश्न : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार’ को संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है। इस घटनाक्रम के आलोक में, भारत में एक व्यापक जलवायु परिवर्तन कानून की आवश्यकता की आलोचनात्मक जांच करें। साथ ही, मूल्यांकन करें कि यह कानून विकास की अनिवार्यताओं को पर्यावरणीय स्थिरता के साथ कैसे संतुलित कर सकता है। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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