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शिक्षा प्रणाली में संकट

Lokesh Pal December 03, 2025 05:30 8 0

संदर्भ:

हाल ही में दिल्ली में एक छात्र के आत्महत्या के मामले और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के डेटा से यह पता चलता है कि हर साल हजारों छात्र शैक्षणिकऔर सामाजिक दबाव के कारण आत्महत्या करते हैं, जो भारतीय स्कूलों के संदर्भ में एक गंभीर संरचनात्मक और नैतिक संकट को उजागर करता है।

शिक्षा प्रणाली में विद्यमान संकट की प्रकृति

  • स्कूलों के अलावा: जब स्कूल की गलती हो तो जवाबदेही तय की जानी चाहिए, लेकिन केवल स्कूल को दोषी ठहराने से प्रणालीगत चुनौतियों की अनदेखी होती है।
  • मूल्य संकट: मूल मुद्दा मूल्य संकट का है जिसे समाजशास्त्रीय रूप से एनोमी (मानदंडहीनता) कहा जाता है, यह एमिल दुर्खीम द्वारा प्रस्तुत एक अवधारणा है, जो एक ऐसी स्थिति का वर्णन करती है जहाँ पुराने मूल्यों का विघटन हो रहा है:
    • पुराने मूल्य लुप्त हो रहे हैं: सम्मान, अनुशासन, पदानुक्रम।
    • नये मूल्यों का उदय: व्यक्तिवाद, व्यक्तिगत स्वतंत्रता।
    • टकराव: पारंपरिक स्कूली शिक्षा प्रणाली (जो सख्त अनुशासन जैसे पुराने मूल्यों को कायम रखती है) और व्यस्त कामकाजी माता-पिता (जो अक्सर आज़ादी और आत्म-केंद्रितता जैसे नए मूल्यों पर ज़ोर देते हैं) के आधुनिक घरेलू माहौल के बीच एक टकराव विद्यमान है। यह उलझन बच्चे के व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

वस्तुकरण और नैतिक मुद्दे

  • वस्तुनिष्ठता और भावना के बीच टकराव: आज की शिक्षा प्रणाली में एक प्रमुख नैतिक संघर्ष वस्तुनिष्ठता और भावना के बीच टकराव से उत्पन्न होता है।
    • माता-पिता अक्सर शिक्षक के दृष्टिकोण पर विचार किए बिना, अपने बच्चे द्वारा कही गई घटनाओं को भावनात्मक रूप से स्वीकार कर लेते हैं।
  • PTMs एक युद्धक्षेत्र के रूप में: अभिभावक-शिक्षक बैठकें (PTMs) अक्सर युद्धक्षेत्र में परिवर्तित हो जाती हैं।
    • आधुनिक माता-पिता उस समय रक्षात्मक हो जाते हैं जब शिक्षक किसी अनुचित व्यवहार की रिपोर्ट करते हैं, जिससे अनजाने में वे शिक्षक की स्थिति को कमजोर कर देते हैं और बच्चे के गलत व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।
  • वस्तुकरण: कई संभ्रांत शहरी स्कूलों में शिक्षा का स्वरूप तेजी से बाजार तर्क से प्रभावित हो रहा है, जहाँ स्कूल सेवा प्रदाता के रूप में और अभिभावक ग्राहक के रूप में कार्य करते हैं।
  • शिक्षक का दर्जा: शिक्षकों को ग्राहक संतुष्टि सुनिश्चित करने के लिए कार्य करने वाले कर्मचारियों तक सीमित कर दिया गया है।
    • यह शिक्षा के गहन उद्देश्य चरित्र निर्माण को कमजोर कर देता है।
  • दार्शनिक चिंता: यह सेवा मॉडल माइकल सैंडेल के इस तर्क का खंडन करता है कि शिक्षा जैसे कुछ क्षेत्रों को बाजार मानदंडों से मुक्त रहना चाहिए

सामाजिक प्रभाव और डिजिटल अनुशासन

  • शिक्षण स्थल के रूप में स्कूल: स्कूलों को समाज का एक लघु स्वरूप माना जाता है।
    • अल्बर्ट बांडुरा के सामाजिक अधिगम सिद्धांत के अनुसार, बच्चे जो कुछ देखते हैं, उसकी नकल करते हैं, जिसमें अक्सर हिंसा और सोशल मीडिया की नकारात्मक सामग्री शामिल होती है।
  • विकृति मुद्दे: आत्म-क्षति, क्रोध, अहंकार, आक्रामकता और हताशा जैसे व्यवहार संबंधी मुद्दे, जो पहले केवल किशोरों में ही प्रचलित थे, अब छोटे बच्चों में भी आम हो रहे हैं।
  • अधिकार बनाम अनुशासन: हालाँकि अधिकारों के बारे में छात्रों की जागरूकता सकारात्मक है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में इसका दुरुपयोग कक्षा में व्यवधान डालने या शिक्षकों का अनादर करने के लिए किया जा सकता है।
  • अहंकार: जो बच्चे घर पर स्क्रीन पर अत्यधिक समय बिताते हैं (डिजिटल अनुशासन का अभाव) वे अक्सर निरंतर मान्यता, लाइक और टिप्पणियां चाहते हैं, जिससे अहंकार और आत्मकेंद्रित प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।

आगे की राह

  • सामूहिक ज़िम्मेदारी: बच्चे खुद को बड़ा नहीं कर सकते। असली बदलाव के लिए सामूहिक ज़िम्मेदारी की ज़रूरत होती है, जो अफ़्रीकी कहावत “एक बच्चे को पालने के लिए पूरे गाँव की ज़रूरत होती है” की याद दिलाती है।
  • अभिभावक-शिक्षक सहयोग: स्कूलों और अभिभावकों के बीच दोषारोपण के खेल को समाप्त करना तथा अभिभावकों और शिक्षकों के बीच विश्वास को स्थापित करना चाहिए।
  • शिक्षक सशक्तिकरण: शिक्षकों को सेवा प्रदाता के बजाय गुरु का दर्जा देना चाहिए।
  • सक्रिय पालन-पोषण: माता-पिता को घर पर मूल्य-निर्माण को प्राथमिकता देना चाहिए तथा यह समझना चाहिए कि केवल शुल्क का भुगतान करना ही उनकी जिम्मेदारी नहीं हैं।

निष्कर्ष

शिक्षा संकट, जिसमें चरित्र निर्माण की अपेक्षा माता-पिता की संतुष्टि को प्राथमिकता दी जाती है, जड़ों की अनदेखी करते हुए पत्तियों को पानी देने जैसा है; स्कूलों को एक स्थिर आधार सुनिश्चित करने के लिए बच्चों के दीर्घकालिक कल्याण और चरित्र पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत में छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति केवल एक संस्थागत विफलता नहीं है, बल्कि हमारे समाज में गहरी जड़ें जमाए बैठी ‘अराजकता’ का लक्षण है। शिक्षा के वस्तुकरण और बदलते पारिवारिक मूल्यों के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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