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भारत की जागृति और आर्थिक विकास में दादाभाई नौरोजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका

Lokesh Pal November 03, 2025 05:15 20 0

सन्दर्भ:

दादाभाई नौरोजी ने भारत पर ब्रिटेन के औपनिवेशिक शोषण को उजागर करके भारतीय राष्ट्रवाद की बौद्धिक और आर्थिक नींव रखी, तथा स्वतंत्रता संग्राम को एक डेटा-संचालित राजनीतिक आंदोलन में परिवर्तित कर दिया

दादाभाई नौरोजी के बारे में

  • प्रारंभिक जीवन: उनका जन्म 1825 ई. में बम्बई में एक साधारण पारसी परिवार में हुआ था, जहाँ उन्होंने कार्य और पढ़ाई दोनों साथ-साथ की, जो उनके दृढ़ संकल्प तथा आत्म-अनुशासन को दर्शाता है।
  • प्रथम भारतीय प्रोफेसर: वे एल्फिन्स्टन कॉलेज में प्रथम भारतीय प्रोफेसर बने, जिससे शैक्षणिक पदों पर यूरोपीय लोगों का नस्लीय एकाधिकार टूट गया।
  • समाज सुधारक: उन्होंने सभी धार्मिक समुदायों में महिला शिक्षा और प्रगतिशील सामाजिक सुधारों का समर्थन करने के लिए 1851 ई. में समाचार पत्र – रास्त गोफ्तार (सत्यवक्ता) की शुरुआत की।

आर्थिक राष्ट्रवाद – धन निष्कासन का सिद्धांत

  • आँकड़ों पर आधारित तर्क: वह पहले भारतीय थे, जिन्होंने अनुभवजन्य आँकड़ों और आर्थिक सांख्यिकी का उपयोग करके यह सिद्ध किया, कि ब्रिटेन भारत के संसाधनों के माध्यम से स्वयं को समृद्ध कर रहा है।
  • मुख्य विचार: उन्होंने तर्क दिया, कि ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप एक व्यवस्थित “धन की निकासी” हुई, जिसने भारत को उत्तरोत्तर गरीब, जबकि इंग्लैंड को अमीर बना दिया।
  • निकासी तंत्र: उन्होंने उजागर किया, कि कैसे भारत की संपत्ति को होम चार्ज (लंदन में भुगतान की जाने वाली पेंशन, वेतन और प्रशासनिक लागत), विदेशों में ब्रिटिश युद्धों के वित्तपोषण तथा एक पक्षपातपूर्ण व्यापार प्रणाली – सस्ते कच्चे माल के निर्यात और महंगे आयात – के माध्यम से लगातार उपयोग कर भारत में आर्थिक असंतुलन पैदा किया गया
    • प्रभाव: उनके आर्थिक विश्लेषण ने राष्ट्रवाद को एक तर्कसंगत और बौद्धिक आधार प्रदान किया, जिसके कारण उन्हें “भारतीय आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक” की उपाधि मिली।

उनकी राजनीतिक उपलब्धियाँ और विरासत

  • स्वराज की प्रथम माँग: 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने पहली बार औपचारिक रूप से स्वराज (स्व-शासन) की माँग की, जिससे स्वशासन को स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य बनाया गया।
  • ब्रिटिश संसद में प्रथम भारतीय सांसद: वे 1892 में सेंट्रल फिन्सबरी (लंदन) से संसद सदस्य चुने गए, जहाँ उन्होंने संसदीय चर्चाओं का उपयोग ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा भारत के शोषण को चुनौती देने के लिए किया।
  • मार्गदर्शक और वैचारिक प्रभाव: उन्होंने भविष्य के नेताओं को गहराई से प्रभावित किया तिलक ने स्वराज के उनके विचार को एक जन आंदोलन में बदल दिया, जबकि महात्मा गांधी ने राजनीति में सत्य और न्याय के उनके नैतिक दृष्टिकोण को आत्मसात किया।
  • आधुनिक प्रासंगिकता: उनके धन-निष्कासन सिद्धांत का संदर्भ औपनिवेशिक क्षतिपूर्ति और ऐतिहासिक जवाबदेही पर वर्तमान चर्चाओं में दिया जाता है

निष्कर्ष

स्पष्टतः दादाभाई नौरोजी के विचारों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी और औपनिवेशिक जवाबदेही पर चर्चाओं को एक नवीन आकार दिया।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: दादाभाई नौरोजी को ‘भारतीय आर्थिक राष्ट्रवाद के जनक’ के रूप में सम्मानित किया जाता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में चर्चा कीजिए, कि कैसे उनके राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विचारों ने भारतीय राष्ट्रवाद के उदय की बौद्धिक नींव रखी।

(15 अंक, 250 शब्द)

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