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सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को समझना

Lokesh Pal January 18, 2025 05:15 7 0

संदर्भ:

हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने सिंधु घाटी सभ्यता (आईवीसी) की लिपि को समझने के लिए $1 मिलियन की पुरस्कार योजना की घोषणा की। यह घोषणा आईवीसी की खोज की शताब्दी के अवसर पर की गई है, जिसे पहली बार जॉन मार्शल ने सितंबर 1924 में प्रकाशित किया था।

सिंधु घाटी सभ्यता : मुख्य विशेषताएँ 

  • कांस्ययुगीन सभ्यता : सिंधु घाटी सभ्यता को कांस्ययुगीन सभ्यता कहा जाता है, क्योंकि सिंधु घाटी के लोग औजार, हथियार, आभूषण और घरेलू वस्तुओं के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर कांस्य, तांबे और टिन की मिश्रधातु का प्रयोग करते थे। 
    • कांस्य कलाकृतियों की उपस्थिति उनके उन्नत धातुकर्म कौशल को उजागर करती है। 
    • कांस्य का उत्पादन करने के लिए तांबे और टिन जैसी धातुओं को गलाने तथा मिश्रधातु निर्माण की क्षमता कांस्य युग के समाजों की विशेषताएँ तथा तकनीकी विकास के एक महत्त्वपूर्ण स्तर को रेखांकित करती है।
  • विस्तार और अवधि : आईवीसी, जिसे हड़प्पा सभ्यता के रूप में भी जाना जाता है, कांस्य युग (3000-1500 ईसा पूर्व) के दौरान विकसित हुई, जो वर्तमान भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में लगभग 1.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी।
  • नगरीय प्रभाव : इसे अपनी समकालीन सभ्यताओं, यथा- मेसोपोटामिया, मिस्र और चीन जितना ही जटिल माना जाता है।
    • यह सभ्यता मुख्यतः शहरी प्रकृति की थी तथा इसके विकास का समर्थन करने वाली महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक अन्वेषण मौजूद हैं।
  • मुहरों का उद्देश्य : मुहरों का उपयोग वस्तुओं को चिह्नित करने, प्रामाणिकता सुनिश्चित करने और व्यापार में सहायता करने के लिए टिकटों के रूप में किया जाता था। मुहरें संभवतः स्वामित्व का संकेत देती थी, किसी उत्पाद या संपत्ति के मालिक की पहचान करने में मदद करती थी।
    • कई मुहरों पर धार्मिक प्रतीक, पशु या देवता दर्शाए गए हैं, जो आध्यात्मिक या अनुष्ठानिक संदर्भों में उनके उपयोग को प्रदर्शित करते हैं।
    • मुहरों ने पहचान चिह्न या समाज में स्थिति के प्रतीक के रूप में कार्य किया, जो व्यक्ति, परिवार या समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

लिपि से संबंधित चुनौतियाँ 

  • अनसुलझी लिपि : कई पुरातात्त्विक खोजों के बावजूद, आईवीसी की मुहरें और पट्टियाँ अभी भी पढ़ी नहीं जा सकी हैं। इसने सभ्यता की साक्षरता और लेखन प्रथाओं के बारे में विद्वानों के बीच चर्चाओं को जन्म दिया है।
  • विद्वानों की असहमति : लगभग 20 वर्ष पूर्व कुछ पश्चिमी विद्वानों ने कहा था, कि हड़प्पावासियों सहित प्राचीन नगरीय बस्तियों को लेखन की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने तर्क दिया, कि पाए गए सीमित प्रतीक निर्णायक रूप से लेखन प्रणाली के अस्तित्व को सिद्ध नहीं कर सकते।
  • विद्यमान चर्चाएँ : इस सिद्धांत को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें आईवीसी के साक्षर समाज होने की धारणा का समर्थन करने वाले प्रतिवाद शामिल हैं। इस विषय पर विद्वानों के बीच वाद-विवाद आज भी जारी है।
  • सीमित आँकड़ों तक पहुँच : शोधकर्ताओं को सिंधु घाटी की लिपि संबंधी पहेली को सुलझाने में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक अन्य मुद्दा यह है, कि मुहरों के संबंध में सम्पूर्ण आँकड़ें अभी तक सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।

तमिलनाडु की पहल

  • प्रारंभिक द्रविड़ सिद्धांत : एक मुख्य विचारधारा यह है, कि सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि “प्रारंभिक द्रविड़”, “गैर-आर्यन” या “पूर्व-आर्यन” हो सकती है, जो इसे तमिलनाडु की सांस्कृतिक और भाषाई विरासत से जोड़ती है।
  • राज्य की पहल : तमिलनाडु राज्य सिंधु घाटी लिपि चिह्नों और भित्ति-चित्रों पर शोध का समर्थन करने में सक्रिय रहा है। इस प्रयास के भाग के रूप में, राज्य भित्ति-चित्रों और “तमिली”  (तमिल-ब्राह्मी)- भाषा लिखित बर्तनों के टुकड़ों का दस्तावेजीकरण तथा डिजिटलीकरण कर रहा है।

आगे की राह 

  • सूचनाओं तक नि:शुल्क पहुँच : केंद्रीय और राज्य प्राधिकरणों को सिंधु लिपि से संबंधित संसाधनों तक अप्रतिबंधित पहुँच की अनुमति देनी चाहिए, साथ ही शोधकर्ताओं की सहायता के लिए प्रासंगिक सूचनाओं तक पहुँच का प्रावधान सुनिश्चित करना चाहिए।
  • शैक्षणिक अखंडता बनाए रखना : शोध प्रयासों को हस्तक्षेप से मुक्त रहना चाहिए, निष्कर्षों का मूल्यांकन योग्यता के आधार पर किया जाना चाहिए, भले ही वे स्थापित आख्यानों को चुनौती देते हों। बौद्धिक अन्वेषण को पूर्वाग्रह या राजनीतिक एजेंडों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
  • क्षेत्रीय सहयोग : इस प्रयास में योगदान देने के लिए श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देशों के बीच समन्वित प्रयासों की भी संभावना है।
  • राजनीतिक बाधाओं से बचना : राजनीतिक मतभेदों को शोध में बाधा बनने देने से भारत और विश्व के लिए इस प्राचीन सभ्यता के संबंध में गहन जानकारी प्राप्त करने का अवसर चूक जाएगा।

निष्कर्ष 

सिंधु घाटी लिपि को समझने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों, संसाधनों तक आवश्यक पहुँच और निष्पक्ष शोध की आवश्यकता है। तमिलनाडु की पहल एक सराहनीय कदम है, लेकिन क्षेत्रीय सहयोग महत्त्वपूर्ण है। इस रहस्य को सुलझाने से हमारी साझा विरासत का सम्मान होगा और ऐतिहासिक समझ विकसित होगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक खोजों के बावजूद अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। लिपि को पढ़ने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए तथा इस क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने के उपाय सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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