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भारत की प्रजनन दर में गिरावट

Lokesh Pal April 05, 2024 05:00 209 0

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कुल प्रजनन दर, महिला श्रम बल भागीदारी दर, जनसांख्यिकीय संक्रमण (Demographic Transition) I

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: घटती प्रजनन दर के निहितार्थ, घटती प्रजनन दर से जुड़ी चुनौतियाँ और लाभ I

संदर्भ:

हाल ही में, लैंसेट द्वारा प्रकाशित एक पेपर के अनुसार यह अनुमान लगाया गया है कि भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) 2051 तक घटकर 1.29 रह जाएगी।

जनसांख्यिकीय अनुमान और रुझान

  • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग का अनुमान है कि भारत की जनसंख्या में गिरावट आने से पहले, 2065 तक यह 1.7 बिलियन से अधिक हो जाएगी।
  • लैंसेट का अनुमान: लैंसेट के अनुसार, 2051 तक कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट हो कर  यह 1.29 रह जाएगी।
  • जनसंख्या गतिशीलता(Population Dynamics) में परिवर्तन : ये जनसांख्यिकीय अनुमान भारत की जनसांख्यिकीय गतिशीलता में बदलाव को इंगित करते हैं।
  • NFHS अनुमान: NFHS 5 के सरकारी पूर्वानुमान और आंकड़े निम्न TFR प्रक्षेपवक्र (Trajectory) दर्शाते हैं, जिसका अर्थ है कि जनसंख्या स्थिरीकरण अनुमानित समय से पहले प्राप्त हो सकता है।

भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण:

  • तीव्र आर्थिक विकास: पिछले दो दशकों के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय रूप से प्रगति हुई है।
  • शिशु मृत्यु दर में कमी: भारत में शिशु और बाल मृत्यु दर में कमी आई है। इससे बुजुर्गों की मदद हेतु बड़े परिवार की आवश्यकता में कमी आई है।
  • शिक्षा के स्तर में वृद्धि: महिलाओं के शैक्षिक स्तर में सुधार होने के कारण देश के कार्यबल में उनकी भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है।
  • वृद्धावस्था सुरक्षा में सुधार: वृद्धावस्था सुरक्षा योजना और बेहतर आवास स्थितियों ने भी भारत के जनसांख्यिकीय परिवर्तन में मदद की है।

कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट के निहितार्थ:

  • निर्भरता दर (Dependency Rate) के संबंध में अनुमान: निम्न निर्भरता अनुपात इंगित करता है कि कामकाजी उम्र वाली आबादी द्वारा आश्रितों के सहयोग संबंधी भार की वहनीयता में कमी आई है, जिससे आर्थिक उत्पादन में वृद्धि और विकासात्मक परियोजनाओं के लिए संसाधन संबंधी आवंटन में वृद्धि की उम्मीद है।
    • निर्भरता अनुपात को, युवा और वृद्धों की कामकाजी उम्र वाली आबादी के प्रतिशत के एक अंश के रूप में मानते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि भारत के संदर्भ में इस अनुपात के 2011 में 13.8 से बढ़कर 2036 में 23 हो जाने की संभावना है।
  • श्रम आपूर्ति में वृद्धि : माना जा रहा है कि आश्रितों की तुलना में कामकाजी उम्र वाली आबादी के ज्यादा होने से श्रम आपूर्ति में बढ़ोतरी हो सकती है, जिसके कारण कुछ उद्योगों में मजदूरी में कमी आ सकती है।
  • उच्च वेतन: श्रमिकों की कमी वाले उद्योगों को श्रमिकों को आकर्षित करने के लिए वेतन बढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है।
  • सामाजिक कल्याण और स्वास्थ्य सेवाएँ: जैसे-जैसे जन्म दर में कमी और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होने के कारण जनसंख्या में उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे  बुजुर्ग-विशिष्ट सामाजिक कल्याण और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की माँग में वृद्धि होती है।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की माँग में कमी: जब केवल कुछ ही बच्चे स्कूल जाने वाली आबादी में प्रवेश करते हैं, तो प्राथमिक और माध्यमिक शैक्षिक सुविधाओं एवं संबंधित संसाधनों की आवश्यकता में कमी आ जाती है।

उदाहरण के लिए: यह स्थिति केरल में पहले से ही विद्यमान है I

  • हाशिए पर रहने वाले वर्गों के मध्य कौशल विकास: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और धार्मिक अल्पसंख्यकों के मध्य कौशल विकास द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि ग्रोथ करने वाले आधुनिक क्षेत्रों में श्रम की कोई कमी नहीं है।
  • संसाधनों का पुनर्आबंटन: TFR में कमी, बड़े परिवारों के लिए बच्चों की देखभाल और स्कूली शिक्षा की लागत में कमी और बच्चों के एक छोटे समूह के लिए शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य देखभाल में निवेश संबंधी बदलाव को दर्शाता है।
  • मानव पूँजी विकास में निवेश: संसाधन आवंटन में इस परिवर्तन के कारण सार्वजनिक धन और निजी निवेश का अधिक कुशल उपयोग संभव हो पाता है, जिसके परिणामस्वरूप मानव पूंजी विकास और उत्पादकता लाभ में दीर्घकालिक सुधार होता है।
  • पूँजी संचय और निवेश: प्रजनन दर में गिरावट आने से बच्चों की संख्या में कमी आती है, जिससे परिवार उन पर शिक्षा और कल्याण हेतु संसाधन संबंधी निवेश ज्यादा कर पाते हैं।
    • उच्च घरेलू बचत: इससे घरेलू बचत और निवेश में भी वृद्धि होती है, क्योंकि परिवार तत्काल उपभोग की तुलना में दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा और संपत्ति संचय को प्राथमिकता देते हैं।
  • त्वरित आर्थिक विकास: जैसे-जैसे प्रजनन दर गिरती है वैसे-वैसे  निर्भरता दर में गिरावट आती है और जनसंख्या में कामकाजी लोगों का अनुपात बढ़ता है। इससे अधिशेष आय सृजित  होगी, जिससे आर्थिक विकास में तेजी आ सकती है और सकारात्मक अंतर-पीढ़ीगत हस्तांतरण (Positive Intergenerational Transfers) संभव हो पायेगा।
  • श्रम उत्पादकता में वृद्धि: जैसे-जैसे जनसंख्या वृद्धि धीमी होती है, प्रति व्यक्ति पहुँच योग्य पूँजी संसाधनों और बुनियादी ढाँचे की मात्रा में वृद्धि होती है।
  • शिक्षा संबंधी निवेश में वृद्धि: जैसे-जैसे प्रजनन दर में गिरावट आती है, बच्चों की संख्या में कमी आती जाती है, जिससे कम बच्चों की शिक्षा और कल्याण हेतु परिवार अधिक संसाधन निवेश की ओर सक्षम हो पाते हैं।
  • शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार: जैसे-जैसे प्रजनन दर में गिरावट आएगी, स्कूल में नामांकित बच्चों की संख्या में कमी आती जाएगी I इसके परिणामस्वरूप शैक्षिक उपलब्धियों में वृद्धि होगी, क्योंकि इससे प्रति व्यक्ति संसाधन और बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता में बढ़ोतरी होगी ।
  • कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि : गौरतलब है कि महिलाएँ अपने जीवन के उत्पादक अवधि  (Productive period) के दौरान बच्चों की देखभाल में संलग्न रहती हैं। प्रजनन दर में कमी के परिणामस्वरूप बच्चों की देखभाल हेतु कम समय देने के कारण श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी की संभावना व्यक्त की जा रही है ।
    • उदाहरणस्वरुप दक्षिणी राज्यों में मनरेगा नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी में सुधार हुआ है।
  • श्रम का पुनर्वितरण: गुजरात और महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक रूप से विकसित दक्षिणी राज्यों, जिनकी प्रजनन दर कम है, द्वारा उत्तरी राज्यों से सस्ता श्रम प्राप्त किया जा सकता है।
    • इससे काम करने की स्थिति बेहतर हो सकेगी, प्रवासी श्रमिकों के लिए वेतन संबंधी भेदभाव खत्म हो सकेगा और संस्थागत सुरक्षा उपायों के माध्यम से प्राप्तकर्ता देशों में सुरक्षा संबंधी चिंताओं में कमी आ सकती है।
  • क्षेत्रीय वितरण का संतुलन: कृषि से उद्योगों और सेवाओं में कार्यबल का स्थानांतरण क्षेत्रीय वितरण में संतुलित स्थापित करेगा।

निष्कर्ष:

भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन इसके सामाजिक-आर्थिक प्रक्षेप पथ (Trajectory) में एक महत्वपूर्ण पल का प्रतीक है। देखा जाए तो वर्तमान समय में देश में कई समस्याएँ व्याप्त हैं लेकिन कौशल विकास, महिला सशक्तिकरण, श्रम पुनर्वितरण और स्वास्थ्य देखभाल संबंधी तैयारी पर केंद्रित स्मार्ट नीतियों के द्वारा देश को दीर्घकालिक वृद्धि और विकास हासिल करने में सहायक हो सकती है।

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