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रक्षा निर्यात: एक रणनीतिक अनिवार्यता

Lokesh Pal February 20, 2024 05:00 132 0

संदर्भ:

वैश्विक स्तर पर बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के कारण, वैश्विक रूप से रक्षा और एयरोस्पेस उद्योग के विस्तार को बढ़ावा मिला है, जिससे भारत को वैश्विक रक्षा निर्यात बाजार के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त हुआ है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत का रक्षा निर्यात- अवसर, चिंताएँ और आगे की राह।

रक्षा निर्यात की स्थिति:

  • वैश्विक रक्षा उद्योग का विस्तार: विश्लेषकों का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर रक्षा उद्द्योग वर्ष 2022 में 750 बिलियन डॉलर से, वर्ष 2030 तक 1.38 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा।
  •  प्रमुख हथियार निर्यातक: SIPRI (स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीटयूट) की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी विश्व के प्रमुख हथियार निर्यातक देश हैं।
  • भारत के रक्षा निर्यात में वृद्धि: भारत का रक्षा निर्यात वित्तीय वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2022-23 में लगभग रु 16,000 करोड़ हो गया है। इस वृद्धि के कारण भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष 25 रक्षा निर्यातकों में शामिल हो गया है।
  • निजी क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत के लगभग 80% निर्यात वृद्धि का कारण निजी उद्योग हैं।
  • निर्यात की वस्तुएँ: इसके अंतर्गत मिसाइलें, रॉकेट, टॉरपीडो, तोपखाने-बंदूकें और ड्रोन आदि शामिल हैं।
  • प्रमुख निर्यात गंतव्य: भारत की निजी कंपनियों और सार्वजनिक रक्षा उपक्रमों द्वारा  वर्तमान में इटली, मालदीव, श्रीलंका, रूस आदि जैसे 75 से अधिक देशों को रक्षा उपकरण निर्यात किए जाते हैं।

रक्षा निर्यात के लाभ:

  • आर्थिक: रक्षा निर्यात से देश को विदेशी मुद्रा अर्जित होती है, जो रक्षा उत्पादों के  आयात पर होने वाले व्यय का विकल्प भी उपलब्ध कराती है।
  • वैश्विक रक्षा आपूर्ति शृंखला के साथ एकीकरण: इससे संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस आदि देशों की रक्षा आपूर्ति शृंखला के साथ देश का एकीकरण संभव हो पाता है।
  • रणनीतिक अंतरनिर्भरता: इससे रखरखाव, मरम्मत और भविष्य के उन्नयन के संबंध में  परस्पर निर्भरता बढ़ेगी, जिससे भारत तकनीकी रूप से भागीदार देशों के साथ जुड़ने में सक्षम हो सकेगा।
  • उन्नत सैन्य सहयोग: रक्षा उपकरणों के विक्रय से रक्षा क्षेत्र में अनुकूलता को बढ़ावा मिलता है साथ ही अन्य देशों के साथ संयुक्त कार्यवाहियों के संचालन की सुविधा मिलती है। इससे अंतरसंचालनीयता एवं सैन्य सहयोग के अवसरों का भी विस्तार होता है।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव और राजनयिक लाभ: किसी भी देश के अन्य देशों के साथ रक्षा संबंध, साझेदार देशों के भू-राजनीतिक रुख को प्रभावित करते हैं, अतः रक्षा निर्यात में मजबूती से भारत की रणनीतिक स्थिति और राजनयिक संबंधों में सुदृढ़ता आएगी।
  • आत्मनिर्भरता: स्वदेशीकरण पर ध्यान केंद्रित करने से भारत का रक्षा क्षेत्र सुदृढ़ होगा , विदेशी आयात से जुड़ी विभिन्न अक्षमताओं में कमी आएगी और एक प्रमुख हिंद-प्रशांत शक्ति के रूप में भारत की भूमिका मजबूत होगी।

भारत के एक रक्षा निर्यातक के रूप में उद्भव हेतु उत्तरदायी कारक:

  • भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ: वर्तमान भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के दौर में विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता उन कमजोरियों को उजागर करती है, जिन पर विश्वास करना भारत के हित के प्रतिकूल होगाI
  • बाह्य अवसर: चीन द्वारा होने वाले हथियारों के निर्यात में गिरावट के कारण वैश्विक स्तर पर भारत के लिए कई अवसर उभर कर सामने आए हैं।
  • घरेलू सामर्थ्य और पहल: रूसी सैन्य प्लेटफार्मों हेतु सेवा प्रदान करने के संबंध में भारत की क्षमता शुरू से ही वैश्विक स्तर पर प्रमाणित है।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का बढ़ता रणनीतिक महत्त्व, अमेरिकी और यूरोपीय नौसैनिक बलों को सेवा प्रदान करने के संदर्भ में भारतीय शिपयार्ड की भूमिका में वृद्धि करता है।
    • रक्षा क्षेत्र के सॉफ्टवेयर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के क्षेत्र में भारत की उभरती शक्तियाँ और क्षमताएँ, वर्तमान परिदृश्य में तकनीक-संचालित क्षमताओं की ओर बढ़ते आधुनिक युद्ध की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं, जो वैश्विक रक्षा क्षेत्र के मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs – Original Equipment Manufacturers) को आकर्षित करता है।

सरकारी सहायता और नीति:

  • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (IDEX) द्वारा नवीन रक्षा प्रौद्योगिकियों को प्रस्तुत करने वाले स्टार्टअपों को बढ़ावा मिला है।
  • रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्धन नीति (DPEPP) के तहत एक ऐसे वातावरण की परिकल्पना की गई है, जिससे भारत के रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन प्राप्त होगा और रक्षा उद्योग को आत्मनिर्भर बनने में भी सहायता मिलेगी।
  • सरकार द्वारा प्रस्तुत सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची में 411 प्रमुख हथियार तंत्र  शामिल किए गए हैं, जिनके आयात पर निर्धारित समयसीमा से प्रतिबंध है।
  • रक्षा निर्यात संचालन समिति द्वारा भारत से रक्षा उत्पादों के निर्यात संबंधी समन्वय और उसके प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जा रहा है।
  • बुनियादी ढाँचा और नवाचार: इसमें भारत द्वारा अन्य देशों को ऋण सहायता प्रदान करना, स्टार्टअप और निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करना, विभिन्न निर्यात सुविधा उपाय और वित्तीयन तथा संवर्धन सहायता शामिल हैं।

रक्षा निर्यात वृद्धि से संबंधित चुनौतियाँ:

  • नौकरशाही से उत्पन्न बाधाएँ और पुरानी पद्धतियों के कारण रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में निजी क्षेत्र का एकीकरण अवरुद्ध होता है, जिससे अंततः नवाचार बाधित होता है।
  • महत्त्वपूर्ण रक्षा परियोजनाओं में होने वाली कथित देरी के कारण, लागत में होने वाली वृद्धि से देश के विकास में रुकावट आती है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, DRDO की 55 ‘मिशन मोड’ परियोजनाओं में से 23 परियोजनाएँ अपने नियत समय से पीछे चल रही हैं।
  • भारत में रक्षा क्षेत्र के अंतर्गत अनुसंधान एवं विकास हेतु पर्याप्त धन और आकर्षक निवेश की कमी पाई जाती है। अनुसंधान एवं विकास पर भारत का सकल व्यय (GERD) केवल 0.65% है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत के रसद (लॉजिस्टिक्स) लागत में वृद्धि होती है, जिससे रक्षा क्षेत्र में लागत प्रतिस्पर्धात्मकता और दक्षता में कमी आती है।

आगे की राह:

  • रक्षा संबंधी खरीद को आसान बनाने के लिए एक-दूसरे देश की सरकारों को रक्षा क्षेत्र में बिक्री संबंधित नियमों को सरल बनाए जाने की आवश्यकता है।
  • सरल अंतरराष्ट्रीय लेन-देन की सुविधा के लिए अंतरराष्ट्रीय बिक्री की रूपरेखा तैयार करना जरुरी है।
  • प्रस्तावों में रक्षा क्रेडिट लाइन की अनुमति और ब्याज दरों को कम करने की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रीय हितों की रक्षा और स्टार्टअप के समर्थन के लिए, नवाचार और प्रौद्योगिकी लाइसेंसिंग की सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • रक्षा नवाचार को बढ़ावा देने के लिए रक्षा एवं शिक्षा क्षेत्र का एकीकरण जरुरी है।
  • राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक ‘थिंक टैंक’ की स्थापना की आवश्यकता है।

News Source: Business Standard

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