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पारंपरिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में विलंब : आधुनिक शिक्षा प्रणाली

Lokesh Pal December 09, 2024 05:15 40 0

संदर्भ: 

आधुनिक शिक्षा प्रणाली की आलोचना जीवन के महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने में इसकी स्थिति के लिए की जाती है, क्योंकि इसमें लंबे समय तक अकादमिक तैयारी करने से सामान्यतया व्यक्ति वास्तविक दुनिया की चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं । इस संदर्भ में शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत व्यावहारिक कौशल और त्वरित ज्ञान व निर्णयन क्षमता आधारित दृष्टिकोण अधिक प्रभावी हो सकते हैं।

पूर्व और वर्तमान के मध्य एक तुलनात्मक विश्लेषण :

  • अतीत में, लोगों के लिए घर बसाना और पारंपरिक जीवन की उपलब्धियाँ जल्दी हासिल करना आम बात थी। लोग खेती और खाना पकाने जैसे बुनियादी जीवन कौशल सीखते थे, कम उम्र में शादी करते थे, परिवार शुरू करते थे और जीवन अपेक्षाकृत पूर्वानुमानित प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करता था। 
    • हालाँकि, वर्तमान विश्व के लिए यह वास्तविकता काफी हद तक बदल चुकी है।
  • पूर्व की स्थिति :
    • भगत सिंह: महान स्वतंत्रतासेवी भगत सिंह ने, मात्र 23 वर्ष की आयु में, भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
    • सिकंदर महान: पश्चिम एशिया पर विजय प्राप्त की तथा फारसी साम्राज्य को उस उम्र में पराजित किया जब आज भी बहुत से लोग अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहे हैं।
    • अल्बर्ट आइंस्टीन: आइंस्टीन ने भौतिकी के क्षेत्र में, महत्वपूर्ण खोज की तथा 26 वर्ष की आयु से पहले ही परिवार बसा लिया।
  • वर्तमान स्थिति : 
    • 30 या 40 वर्ष के आयु वर्ग के अनेक लोग “सामान्य स्थितियों तथा तथ्यों इत्यादि को समझने” में ही व्यस्त रहते हैं, ये करियर या परिवार बसाने, या कोई अन्य उपलब्धि प्राप्त करने जैसे महत्वपूर्ण कार्यों की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

पारंपरिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में विलंब के प्रमुख कारण:

  • आधुनिक शिक्षा प्रणाली (10+2+4+2 मॉडल): को अपनाने में अभी एक लंबा रास्ता तय किया जाना बाकी है; आधुनिक शिक्षा के लिए सामान्यतया एक विस्तारित प्रतिबद्धता की आवश्यकता है:
    1. 10 वर्षों की स्कूली शिक्षा।
    2. दो वर्ष तक की वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा।
    3. 4 वर्षों की स्नातक की पढ़ाई।
    4. 2 वर्षों की स्नातकोत्तर की पढ़ाई।

औपचारिक शिक्षा में 18 वर्ष से ज़्यादा का समय बिताने के बावजूद, कई लोग अभी भी वास्तविक दुनिया की चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। यह विलंबित शिक्षा प्रणाली की दक्षता और प्रभावशीलता के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।

1. प्रासंगिकता

  • शिक्षा और नौकरी संबंधी कौशल के मध्य अंतर: उन्नत रसायन विज्ञान (जैसे- एल्डोल संघनन, कैनिज़ारो प्रतिक्रिया) जैसे विषयों का अधिकांश व्यवसायों में सीमित व्यावहारिक अनुप्रयोग हो सकता है।
  • कार्यबल में कौशल अंतराल: कुछ विद्वानों का तर्क है कि छह माह के लक्षित कौशल प्रशिक्षण को प्राप्त व्यक्ति 12वीं कक्षा, स्नातक यहाँ तक कि एमबीए स्नातकों के समान प्रभावी ढंग से कार्य कर सकता है।
  • वास्तविक-विश्व के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ : जटिल विषयों का अध्ययन करने के बाद भी, स्नातकों को सामान्यतया कार्यस्थल की बैठकों में सार्थक रूप से भाग लेने या बिक्री लक्ष्य हासिल करने जैसे कार्यों में संघर्ष करना पड़ता है।

 2. वैश्विक स्तर पर दबाव

  • पहले की पीढ़ियाँ: लोग अपनी उपलब्धियों की तुलना छोटे, स्थानीय समूहों, जैसे परिवार या करीबी समुदाय के सदस्यों के साथ करते थे। परंतु जब वे अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट हो जाते थे, तो अपनी स्थिति में सुधार करते हुए आगे बढ़ जाते थे।
  • आधुनिक युग: इंटरनेट और लिंक्डइन जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने वैश्विक सहकर्मी समूह बनाए हैं।
    • आज, लोग अपनी तुलना समाचारों में दिखाए जाने वाले या ऑनलाइन मनाए जाने वाले शीर्ष प्रदर्शन करने वालों से करते हैं, जिसकी वजह से उनके मध्य दबाव और असंतोष बढ़ जाता है। 

 3. अनुशासन और कठोरता का तर्क

  • समर्थकों का दृष्टिकोण: आधुनिक शिक्षा प्रणाली के समर्थकों का तर्क है कि यह अनुशासन, कठोरता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देती है, जो सार्वभौमिक रूप से मूल्यवान कौशल हैं।
  • वास्तविकता की जाँच: जबकि ये अमूर्त लाभ वास्तविक हैं, परंतु वे अकादमिक सफलता और वास्तविक दुनिया की तत्परता के बीच की खाई को पाटने में विफल रहते हैं।
  • शैक्षिक मूल्यों पर प्रश्नचिन्ह : शिक्षा के लिए छात्र ऋण लेने के बाद, कई व्यक्ति निजी तौर पर अपनी शिक्षा के मूल्य पर सवाल उठाते हैं। 
    • वे अपनी शैक्षणिक उपलब्धियों के बावजूद भी निराश या अधूरा महसूस करते हैं।

4. अति-शिक्षा और बेरोजगारी की ओर बदलाव

  • शिक्षा और रोजगार की असंगतता : औपचारिक शिक्षा के विस्तार ने मैनुअल नौकरियों के लिए कुशल व्यक्तियों को तैयार करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफेदपोश भूमिकाओं के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं किया जा सका ।
    • जबकि एक चुनिंदा अभिजात वर्ग व्यवसाय के विशेष क्षेत्रों या विदेश में कामयाब रहा। हालांकि अधिकांश को बेरोजगारी, अल्प-रोजगार और स्थिर करियर या परिवार बसाने जैसे जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में देरी का सामना करना पड़ा।

इस देरी का एक संभावित कारण आधुनिक चिकित्सा में प्रगति के कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि है। हालाँकि अब जीवन प्रत्याशा में सुधार हो रहा हैं, लेकिन विद्वानों का तर्क है कि हमारे जीवन के उत्पादक वर्ष जरूरी नहीं कि आनुपातिक रूप से बढ़े हों। 

आगे की राह 

  • वर्तमान समय में, पारंपरिक शिक्षा के मॉडल पर पुनर्विचार करने की माँग बढ़ रही है, जिसके लिए उचित तैयारी की आवश्यकता है, लेकिन ऐसी स्थितियों में लोगों के वयस्क होने तक समाज के प्रति उनके स्वयं के कर्तव्यों का महत्त्व के विषय में ही उन्हें नहीं पता चल पा रहा है।
  • एक संतुलित दृष्टिकोण, व्यावहारिक ज्ञान को अकादमिक शिक्षा के साथ एकीकृत करने के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है। 
    • व्यक्तियों को जीवन के महत्त्व को समझना चाहिए, ताकि आवश्यक रूप से विलंबित किए बिना, अपने लक्ष्यों को अधिक कुशलता से प्राप्त किया जा सके ।

निष्कर्ष :

अतः पारंपरिक शिक्षा पथ पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, क्योंकि सैद्धांतिक शिक्षा के अत्यधिक वर्षों के कारण अक्सर व्यक्तिगत और व्यावसायिक क्षेत्र में उन्नति करने में देरी हो रही है। शिक्षा को सफलता और आधुनिक चुनौतियों के लिए तत्परता के साथ बेहतर ढंग से जोड़ने के लिए एक व्यावहारिक, वास्तविक दुनिया का दृष्टिकोण आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न : 

प्रश्न: विभिन्न शैक्षिक सुधारों और नीतियों के बावजूद, भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली बहुआयामी चुनौतियों का सामना कर रही है। शिक्षा के परिणामों को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों पर विचार करते हुए, पारंपरिक सुधारों से परे अभिनव समाधान सुझाते हुए, प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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