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राज्य विशिष्ट विवेकाधीन आनुदानों अथवा विशेष पैकेज की माँग

Lokesh Pal July 08, 2024 05:00 100 0

संदर्भ:

18वीं लोकसभा चुनाव के पश्चात संघ स्तर पर गठबंधन की राजनीति वापस आ गई है। गठबंधन सरकार के गठन ने राज्य-विशिष्ट विवेकाधीन अनुदानों या ‘विशेष पैकेज’ की माँग पर सार्वजनिक चर्चा का मार्ग प्रशस्त किया है 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संवैधानिक प्रावधान, 16वाँ वित्त आयोग, 15वाँ वित्त आयोग, ऊर्ध्वाधर हस्तांतरण, क्षैतिज वितरण मापदण्ड आदि।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संघवाद, 15वाँ वित्त आयोग, विशेष पैकेज, संघीय संरचना, राजकोषीय संघवाद आदि के कारण आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ।

संघवाद:

  • के.सी. व्हेयर के अनुसार भारतीय संविधान का स्वरूप अर्ध-संघात्मक है। 
    • अर्ध-संघात्मक का अर्थ है सरकार का संघीय स्वरूप, जहाँ राज्य सरकार की तुलना में केंद्र सरकार को अधिक शक्ति प्राप्त होती है। 
    • भारत में सरकार की अर्ध-संघात्मक या अर्ध-संघीय शासन प्रणाली विद्यमान है
  • मॉरिस जोन्स ने इसे ‘सौदेबाजी संघवाद’ के रूप में परिभाषित किया है।
  • ग्रानविले ऑस्टिन ने भारतीय संघवाद को “सहकारी संघवाद” की संज्ञा दी है। 
    • सहकारी संघवाद का अर्थ है, देश के सुचारू शासन को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्यों के मध्य सहयोग और अन्योन्याश्रयता को बढ़ावा देना।
  • मुख्य न्यायाधीश बेग ने संविधान को ‘उभयचर’ कहा, इस अर्थ में कि यह किसी मामले की स्थिति और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुसार संघीय या एकात्मक स्तर पर आगे बढ़ सकता है। 

राजकोषीय संघवाद:

  • भारत में राजकोषीय संघवाद को केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य राजकोषीय जिम्मेदारियों और राजस्व स्रोतों के विभाजन को सुनिश्चित करने के लिए निर्मित किया गया है, जिससे दोनों (केंद्र और राज्य सरकारों) अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से निष्पादित कर सकें।

संघ स्तर पर गठबंधन की राजनीति:

  • भारतीय जनता पार्टी संसदीय बहुमत के लिए बिहार की जनता दल (यूनाइटेड) और आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी पर निर्भर है।
  • यह वर्ष 2014 और 2019 के विपरीत है, जब एक-दलीय सरकार सत्ता में आई थीं।
  • गठबंधन सरकार के गठन से राज्य-विशिष्ट विवेकाधीन अनुदान या ‘विशेष पैकेज’ की माँग पर सार्वजनिक चर्चा का मार्ग प्रशस्त हुआ।

गठबंधन सहयोगियों के सकारात्मक पक्ष 

  • नियंत्रण एवं संतुलन: गठबंधन सहयोगियों की उपस्थिति जो एकात्मक प्रवृत्तियों के बढ़ने पर नियंत्रण का कार्य कर सकती है
  • संघीय प्रवृत्तियाँ: जब संघ स्तर पर एक दल का प्रभुत्व समाप्त हो जाता है, तो संघीय प्रवृत्तियाँ पनपती हैं, और जब संघ स्तर पर एक मजबूत नेता के नेतृत्व में एक दल का बहुमत स्थापित हो जाता है, तो संघीय प्रवृत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं।

पारदर्शिता और स्थिरता की आवश्यकता:

  • यदि एक स्वस्थ संघीय ढाँचे को पोषित करना है, तो राजकोषीय सीमाएँ, कर निर्धारण के सिद्धांत तथा अनुदान का आधार पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ होना चाहिए।
  • असममित किन्तु पारदर्शी: किसी देश में भाषाई, सांस्कृतिक और आर्थिक विविधता के कारण संघीय व्यवस्था असममित हो सकती है।
    • लेकिन विषमता के मुद्दों को संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से प्रबंधित किया जाना चाहिए, जिनमें पारदर्शिता और स्थिरता दोनों शामिल हों।

संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो विशिष्ट राज्यों के मुद्दों को उजागर करते हैं:

  • अनुच्छेद 371A से H तक : ये प्रावधान अनुच्छेद 371A से H में शामिल हैं (पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए अनुच्छेद 370, निश्चित रूप से, निरस्त कर दिया गया है)।
  • अनुच्छेद 282 के अंतर्गत अतिरिक्त अनुदान: ये अनुदान आवश्यकता-आधारित हो सकते हैं, लेकिन आवश्यकता विशेष पैकेज प्रदान करने का निकटतम कारण नहीं है, जो अनुच्छेद 282 के अंतर्गत अतिरिक्त अनुदान है, यह ‘ विविध वित्तीय प्रावधानों’ के अंतर्गत आता है।
    • ऐसे विशेष पैकेज पूर्णतः विवेकाधीन हैं।
  • कुछ राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की सौदेबाजी शक्ति का परिणाम है, जो संसदीय बहुमत को एक तरफ झुका सकता है।
  • अनुच्छेद 280 और अनुच्छेद 275: संघ द्वारा एकत्रित करों के हिस्से को राज्यों में वितरित करने तथा अनुच्छेद 280 के अनुसार इसे राज्यों के मध्य कैसे वितरित किया जाए, इस संबंध में सिफारिशें करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पाँच वर्ष या उससे पहले वित्त आयोग का गठन किया जाता है।
    • सहायता की आवश्यकता वाले राज्यों को अनुदान का संवितरण, जिसका उल्लेख अनुच्छेद 275 में किया गया है। 

15वें वित्त आयोग की सिफारिशें (2021-26):

ऊर्ध्वाधर हस्तांतरण:

  • राज्यों के लिए केन्द्रीय करों में हिस्सा: राज्यों को केन्द्रीय करों के विभाज्य पूल का 41% प्राप्त करने की सिफारिश की गई है।
    • 14वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित 42% हिस्सेदारी से कम।
  • 1% का समायोजन: यह नवगठित केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख के लिए विशेष प्रावधान करता है। 
  • विभाज्य पूल से बहिष्करण: पूल में कर संग्रह व्यय, उपकर और अधिभार, केंद्र शासित प्रदेशों से राजस्व और राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क जैसी लागतें शामिल नहीं हैं।

 क्षैतिज वितरण मापदण्ड: 

मापदण्ड

वेटेज (%)

आय दूरी 45
जनसंख्या (2011 की जनगणना) 15
जनसांख्यिकीय प्रदर्शन 12.5
राज्य क्षेत्र 15
वन एवं पारिस्थितिकी 10
कर और राजकोषीय प्रयास 2.5

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चुनौतियाँ :

  • यह निर्धारित करता है कि हमारी राजनीति किस सीमा तक संघीय है।
    • संविधान को अर्ध-संघीय ढाँचे वाला बताया गया है।
  • राजस्थान राज्य और अन्य बनाम भारत संघ, 1977: सर्वोच्च न्यायालय ने यह सारगर्भित टिप्पणी की है कि हमारी राजनीति उभयचर है – यह एकात्मक और संघीय चरित्र ग्रहण कर सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि अनुच्छेद 352 और 356 के तहत आपातकाल लागू है अथवा नहीं।
  • यह संघीय चरित्र को निर्धारित करता है: प्रचलित राजनीतिक वातावरण निर्णायक रूप से यह निर्धारित करता है कि संघीय प्रवृत्तियाँ आगे बढती हैं अथवा समाप्त हो जाती हैं।
  • अनुच्छेद 282, अनुच्छेद 280 और अनुच्छेद 275 से लगभग चार गुना व्यापक है:
    • लेकिन अब तथ्य यह है कि अनुच्छेद 282 के माध्यम से राज्यों को दिए जाने वाले विवेकाधीन अनुदानों का प्रवाह वित्त आयोगों द्वारा अनुशंसित अनुदानों से कहीं अधिक (लगभग चार गुना अधिक) हो गया है।
  • राजकोषीय संघवाद की नींव कमजोर होगी: संसदीय बहुमत रखने वाले राज्य-स्तरीय दलों द्वारा उठाई गई विशेष पैकेजों की माँगों को स्वीकार करने से राजकोषीय संघवाद की नींव कमजोर होगी।
    • इसका परिणाम यह होगा कि राष्ट्रीय संसाधन अन्य राज्यों से दूर चले जाएंगे, जिनकी आवश्यकता हो सकती है। 
    • यदि ऐसा होने दिया गया तो हम एक विरोधाभास देखेंगे कि एक दलीय प्रभुत्व समाप्त होने पर संघीय प्रवृत्तियाँ पनपने के बजाय समाप्त हो जाएंगी।

मुख्य परीक्षा पर आधरित प्रश्न:

प्रश्न: भारत में राजकोषीय संघवाद को संरचनात्मक असंतुलन और हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों दोनों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों की उभरती प्रकृति का आलोचनात्मक परिक्षण कीजिए। संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करते हुए संघीय वित्त ढाँचे को मजबूत करने के उपाय सुझाएँ।

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