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राज्य को अनुशासित करने के एक उपकरण के रूप में विनियमन-मुक्ति

Lokesh Pal November 19, 2025 05:30 14 0

संदर्भ

जन विश्वास अधिनियम जैसे कानूनों के माध्यम से भारत के विनियमन-मुक्ति प्रयासों का उद्देश्य अनुपालन को सरल बनाना तथा विश्वास-आधारित शासन मॉडल की ओर बढ़ना है।

पृष्ठभूमि

  • नियामक मानसिकता: भारत की नियामक मानसिकता 1991 से पूर्व के समाजवादी लोकाचार (लाइसेंस राज) से विकसित हुई, जहाँ राज्य स्वयं को “स्वामी” और नागरिकों/व्यवसायों को “प्रजा” के रूप में देखता था।
  • नियंत्रण की संस्कृति: सरकार की ऐतिहासिक प्राथमिकता नियंत्रण और सख्त अनुशासन बनाए रखना था, जिसके कारण ऐसे कानून बनाए गए जो इस धारणा पर आधारित थे कि व्यवसायी “स्वाभाविक रूप से चोर” होते हैं।
  • वर्तमान मुद्दा: नए कानून स्वायत्तता के बिना अनुपालन पर जोर देकर इस पुरानी मानसिकता को जारी रखते हैं । 

जन विश्वास अधिनियम के बारे में

  • उद्देश्य: प्रक्रियाओं को सरल बनाकर तथा मामूली अपराधों के लिए जेल की सजा के स्थान पर जुर्माना लगाकर व्यापार करने में आसानी में सुधार लाना , भय को कम करना तथा विश्वास बढ़ाना ।
  • आलोचना: इसे प्रशासनिक हाउसकीपिंग के रूप में देखा जाता है ; यह संरचनात्मक विनियामक मुद्दों को संबोधित नहीं करता है ।

वास्तविक विनियमन और संरचनात्मक स्वतंत्रता

  • नियंत्रण से स्वतंत्रता की ओर बदलाव: वास्तविक विनियमन-मुक्ति के लिए नियंत्रण की मानसिकता को तोड़ना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि विनियमन से सरकार की शक्ति में वृद्धि न हो।
  • संरचनात्मक स्वतंत्रता का सृजन: विनियमन की स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करके संरचनात्मक स्वतंत्रता प्रदान करनी चाहिए, जिसके अंतर्गत व्यवसाय स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।

बिखरे हुए ज्ञान की अवधारणा (फ्रेडरिक हायेक)

  • केंद्रीय योजना की सीमाएं: फ्रेडरिक हायेक का तर्क है कि ज्ञान बिखरा हुआ है और कोई भी केंद्रीय प्राधिकारी सब कुछ नहीं जान सकता।
  • कमांड सिस्टम की विफलता: केंद्र से संचालित कमांड-एण्ड-कंट्रोल प्रणाली विफल हो जाती है, क्योंकि यह जटिल और बदलती स्थानीय बाजार स्थितियों पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाती।

आगे की राह

  • विनियामक प्रभाव आकलन (RIA) को लागू करना: प्रत्येक नए नियम के लिए लागत और विकल्पों का अनिवार्य आकलन; RIA के बिना कानून को अमान्य माना जाएगा।
  • सूर्यास्त नियम को लागू करना: कानून में स्वतः समाप्ति अवधि होनी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कानून अनिवार्य समीक्षा और स्पष्ट नवीनीकरण के बाद ही जारी रहेंगे।
  • बिखरी हुई सूचनाओं को संहिताबद्ध करना: खंडित सूचनाओं को विषयगत विनियामक कोडों में समेकित करना , दक्षता के लिए AI/ML का उपयोग करना।
  • नियामक रिपोर्ट कार्ड बनाना: जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अनुपालन समयसीमा , निरीक्षण आवृत्ति और त्रुटि दर दिखाने वाले सार्वजनिक डैशबोर्ड का निर्माण करना।
  • नागरिक-केन्द्रित कानून: ऐसे कानून बनाएं जो जोखिम और स्वतंत्रता को संतुलित करें , यह मानें कि नागरिक सद्भावना से कार्य करते हैं , अग्रिम अनुमतियों को पारदर्शिता-आधारित दंडों से प्रतिस्थापित करना, और अनुकूलनशील बने रहना, जिससे परिचालन नियमों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जा सके ।

निष्कर्ष

विनियमन-मुक्ति का उद्देश्य राज्य को अनुशासित करना है, नागरिकों को नहीं। वैधता, कानून की स्पष्टता पर निर्भर करती है, न कि उसके प्रवर्तन की शक्ति पर।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: वास्तविक विनियमन-मुक्ति केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि ‘संदेह की संस्कृति’ से ‘विश्वास की संस्कृति’ की ओर एक नैतिक परिवर्तन है। इस संदर्भ में, चर्चा कीजिए कि ‘नियामक विनम्रता’ की अवधारणा भारतीय नौकरशाही की नैतिक कार्य संस्कृति को कैसे बदल सकती है।

(10 अंक, 150 शब्द)

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