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विपक्ष तथा राज्यसभा के सभापति पर विस्तृत चर्चा

Lokesh Pal December 12, 2024 05:45 28 0

संदर्भ:

भारत के संसदीय इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम के तहत, राज्य सभा के 60 सदस्यों ने सभापति जगदीप धनखड़ के प्रति अविश्वास व्यक्त किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें हटाने के लिए नोटिस जारी कर दिया गया है।

अविश्वास प्रस्ताव: 

  • संविधान के अनुच्छेद 67 के तहत उपराष्ट्रपति, जो राज्य सभा के सभापति के रूप में भी कार्य करता है। 
  • उन्हें राज्य सभा के सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव तथा उसके बाद लोक सभा की सहमति से हटाया जा सकता है । 
  • इस प्रक्रिया में प्रस्ताव पर चर्चा करने से पहले कम से कम 14 दिन का नोटिस देना आवश्यक है।

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 में प्रावधान है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।  
  • अनुच्छेद 64 और 89 (1) में प्रावधान है कि भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा और कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।

अविश्वास प्रस्ताव के पीछे कारण:

विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें उनके कार्यों में कथित पक्षपात की चिंता जताई गई है। इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

  • असंगत निर्णय: 9 दिसंबर, 2024 को, धनखड़ के भाजपा सांसदों को स्थगन प्रस्ताव पर बोलने की अनुमति देने के निर्णय, जिसे उन्होंने पहले खारिज कर दिया था, की आलोचना की गई है ।
  • विपक्षी नेताओं को बाहर रखा जाना: विपक्ष ने एक बार फिर दोहराई जाने वाली प्रवृत्ति की ओर ध्यान दिलाया है, जाहाँ विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को कथित तौर पर राज्यसभा में बोलने से रोक दिया गया, जिससे उनका दावा है कि संसदीय चर्चाओं में विपक्ष की भूमिका कम हो रही है।
  • सार्वजनिक वक्तव्य: धनखड़ के सार्वजनिक वक्तव्यों को कुछ लोगों ने सरकार के विचारों से निकटता से जुड़ा हुआ माना है, जबकि वे विपक्ष की आलोचना कर रहे हैं, जिससे पक्षपात के आरोपों को और बल मिला है।

संसद में अध्यक्ष की भूमिका:

  • प्रमुख पदों पर अपेक्षित तटस्थता: एक कार्यशील लोकतंत्र में, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष जैसे पदों से गैर-राजनीतिक होने की अपेक्षा की जाती है, भले ही इन्हें पक्षपातपूर्ण चुनावों के माध्यम से भरा जाता हो।
    • इन अधिकारियों को पद पर आने के बाद पार्टी लाइन से ऊपर उठकर उस संस्था की अखंडता को बनाए रखना चाहिए जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • विवादों में मध्यस्थता में अध्यक्ष की भूमिका: सरकार और विपक्ष के बीच बढ़ते तनाव को ध्यान में रखते हुए, अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। 
    • अध्यक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वे मध्यस्थता करें, तथा यह सुनिश्चित करें कि संसदीय कार्यवाही में शिष्टाचार और तटस्थता बनाए रखते हुए दोनों पक्षों को अपने विचार रखने के लिए एक मंच मिले।

तटस्थता की आवश्यकता

  • विश्वास बहाल करना: सरकार और विपक्ष के बीच प्रभावी मध्यस्थता के लिए, अध्यक्ष को तटस्थ माना जाना चाहिए। 
    • विपक्ष द्वारा उठाई गई शिकायतों की वैधता के बावजूद, अध्यक्ष के लिए निष्पक्षता प्रदर्शित करना आवश्यक है। 
    • यह दर्शाने के लिए सक्रिय कदम उठाकर कि वे राजनीतिक मतभेदों से ऊपर हैं, अध्यक्ष दलीय निष्ठा के बजाय संस्थागत अखंडता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि कर सकते हैं।
  • आश्वासन का आह्वान: यदि अध्यक्ष को निष्पक्ष माना जाए तो इससे संसदीय प्रक्रिया की विश्वसनीयता और अखंडता को बनाए रखने में मदद मिलेगी। 
    • यह तटस्थता रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देती है और लोकतांत्रिक प्रणाली के कामकाज को बढ़ावा देती है।

सरकारी रक्षा 

  • बचाव में जाति का प्रयोग: श्री धनखड़ के बचाव में सरकार ने उनकी जाति का सहारा लिया है तथा दावा किया है कि उन्हें उनकी जाति के कारण निशाना बनाया जा रहा है।
  • रक्षा में राष्ट्रवाद का प्रयोग: सरकार ने यह भी दावा किया है कि यह प्रस्ताव विपक्ष को उनकी भारत विरोधी टिप्पणियों के लिए सभापति द्वारा फटकार लगाये जाने का परिणाम है।

निष्कर्ष: 

संसद में मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने की संभावना नहीं है। हालाँकि, मुख्य मुद्दा वोट का परिणाम नहीं है, बल्कि अध्यक्ष की निष्पक्षता में विश्वास का क्षरण है। यह प्रस्ताव भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली की अखंडता और विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए प्रमुख संस्थागत भूमिकाओं में निष्पक्षता की महत्वपूर्ण आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह सुनिश्चित करना कि ऐसे पद राजनीतिक विवादों से ऊपर रहें, लोकतंत्र के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: हाल ही में राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस के संदर्भ में संसदीय कार्यवाही की तटस्थता को बनाए रखने में संसद के पीठासीन अधिकारियों की भूमिका का विश्लेषण कीजिए। यदि सभापति को पक्षपातपूर्ण माना जाता है तो लोकतंत्र के लिए संभावित निहितार्थ क्या हैं? टिप्पणी कीजिए |

(15 अंक, 250 शब्द)

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