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विकसित भारत 2047: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि व विद्यमान चुनौतियाँ

Lokesh Pal February 11, 2025 05:00 16 0

संदर्भ: 

वर्ष 2047 में भारत अपनी स्वतंत्रता की 100 वीं वर्षगांठ मनायेगा। हाल ही में विकसित भारत @2047 के तहत ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हालांकि, ऐतिहासिक रूप से, अधिकांश राष्ट्र पिछले 80 वर्षों में केवल एक आय वर्ग को ही उनकी मूल स्थिति से ऊपर उठाने में कामयाब रहे हैं। अतः सवाल यह है कि क्या भारत ऐतिहासिक रुझानों को चुनौती दे सकता है।

विश्व बैंक द्वारा अर्थव्यवस्थाओं का वर्गीकरण:

  • विश्व बैंक प्रत्येक वर्ष अर्थव्यवस्थाओं को चार आय समूहों में वर्गीकृत करता है: निम्न, निम्न-मध्यम, उच्च-मध्यम और उच्च आय। विश्व बैंक द्वारा इस वर्गीकरण को प्रत्येक वर्ष 1 जुलाई को अपडेट किया जाता है, पिछले कैलेंडर वर्ष की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) पर निर्भर करता है।
  • वित्तीय वर्ष 2024 के लिए आय वर्गीकरण निम्नानुसार हैं;
    • निम्न आय: प्रति व्यक्ति आय $1,135 के बराबर या उससे कम।
      • उदाहरण: कांगो, अफ़गानिस्तान।
    • निम्न-मध्यम आय: प्रति व्यक्ति आय $1,136 से $4,465 के  बीच।
      • उदाहरण: भारत, पाकिस्तान।
    • उच्च-मध्यम आय: प्रति व्यक्ति आय $4,466 से $13,845 के बीच।
      • उदाहरण: चीन, मैक्सिको।
    • उच्च आय : प्रति व्यक्ति आय $13,846 के  बराबर या उससे अधिक।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी।
      • वर्तमान समय में, विश्व के 58 देश उच्च आय वाले देश हैं और वे ज्यादातर उत्तरी अमेरिकी (अमेरिका, कनाडा), यूरोपीय और कुछ पूर्वी एशियाई (जैसे जापान, दक्षिण कोरिया) देश हैं।

भारत की वर्तमान स्थिति:

  • भारत की स्थिति : भारत को वर्तमान में “निम्न-मध्यम आय” वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हालाँकि इसकी वृद्धि लगातार हो रही है, फिर भी यह उच्च आय वाले देशों की स्थिति तक पहुँचने के लिए अपर्याप्त है।
  • ऐतिहासिक आँकड़ों से सीख : ऐतिहासिक रूप से, अधिकांश राष्ट्र पिछले 80 वर्षों में केवल एक आय वर्ग को ऊपर ले जाने में सफल रहे हैं। 
  • उदाहरण के लिए, हालाँकि भारत का लक्ष्य उच्च आय वाला देश बनना है, लेकिन विभिन्न आँकड़ों से ज्ञात होता है कि अधिकांश देश सिर्फ़ एक स्तर ही आगे बढ़ पाए हैं। इससे पता चलता है कि भारत के उच्च आय वाले देश बनने की बजाय उच्च-मध्यम आय वाला देश बनने की संभावना ज़्यादा है।

भारत के लिए सबक:

  • वैश्विक उदाहरण : हालाँकि, वर्तमान में विश्व के केवल चार देश ही दो श्रेणियों में अपनी स्थिति सफलतापूर्वक बदलाव कर पाए हैं या उच्च आय की स्थिति तक पहुँच पाए हैं। भारत 2047 तक “विकसित भारत” बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन देशों से सबक ले सकता है।
    • जापान: हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद परमाणु हमलों के कारण जापान बर्बाद हो गया था। हालाँकि, प्रौद्योगिकी में प्रगति और निर्यात पर ध्यान केंद्रित करके, यह एक उच्च आय वाला देश बनने में कामयाब रहा।
    • दक्षिण कोरिया: 1950 के दशक में, दक्षिण कोरिया एक कम आय वाला देश था और अपनी स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही उसे तानाशाही शासन का सामना करना पड़ा। इन चुनौतियों के बावजूद, दक्षिण कोरिया ने तेजी से औद्योगिकीकरण की नीति के तहत विकास सुनिश्चित किया।
      • यद्यपि लोकतान्त्रिक देशों के विपरीत, जहां भूमि अधिग्रहण और विकास लंबी प्रक्रियाओं के अधीन होते हैं, सत्तावादी शासन कभी-कभी इन प्रक्रियाओं को तेज कर सकते हैं।
    • ताइवान: संसाधनों व क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का छोटा सा देश, ताइवान अपनी नीतियों में बदलाव करके सफलतापूर्वक एक उच्च आय वाले राष्ट्र में परिवर्तित हो गया। ताइवान ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए, अपने घरेलू उद्योगों का विकास किया, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर और चिप निर्माण में, जिससे यह प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेतृत्व तक पहुँच बनाने में सफल हो गया।
    • सिंगापुर: तानाशाही शासन के तहत शुरू हुआ सिंगापुर एक वैश्विक वित्तीय केंद्र में तब्दील हो गया। इसकी सरकार द्वारा प्रदान की गई दक्षता और स्थिरता ने इसकी आर्थिक सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मध्यम आय जाल की चुनौती:

  • मध्यम आय जाल: कई देश “मध्यम आय जाल” का सामना करते हैं, जहां उन्होंने आर्थिक विकास का एक निश्चित स्तर हासिल कर लिया है, लेकिन उच्च आय की स्थिति में संक्रमण किए बिना ऊपरी-मध्यम आय वर्ग में अटके हुए हैं।
  • चीन का उदाहरण: चीन, मैक्सिको, टर्की वर्तमान में उच्च-मध्यम आय वाले देश हैं और उन्हें इस चरण से आगे बढ़ने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
  • महत्त्वपूर्ण कारक : इस घटना के लिए अनेक कारक उत्तरदायी हैं:
    • बढ़ती श्रम लागत: जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएँ विकसित होती हैं, मज़दूरी बढ़ती है, जिससे श्रम-प्रधान उद्योगों में उनकी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त कम हो जाती है। इससे इन देशों के लिए विनिर्माण निर्यात में कम आय वाले देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
    • नवप्रवर्तन का अभाव: मध्यम आय वाले देश अक्सर कारक संचय (जैसे श्रम और पूंजी) द्वारा संचालित विकास से नवप्रवर्तन द्वारा संचालित विकास में संक्रमण के लिए संघर्ष करते हैं।
      • अनुसंधान एवं विकास, शिक्षा और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण निवेश के बिना, इन देशों के लिए मूल्य श्रृंखला में ऊपर बढ़ना कठिन होगा।
    • सीमित औद्योगिक विविधीकरण: एक या दो उद्योगों पर निर्भरता आर्थिक लचीलेपन में बाधा डाल सकती है। उच्च मूल्य-वर्धित क्षेत्रों में विविधीकरण सतत विकास के लिए आवश्यक है, लेकिन कई देशों को इसे प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • कमजोर संस्थान और शासन: कुशासन, भ्रष्टाचार और कमजोर संस्थान निवेश को हतोत्साहित करके और उद्यमशीलता गतिविधियों को रोककर आर्थिक प्रगति में बाधा डाल सकते हैं।
    • जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ: वृद्ध होती आबादी के कारण कार्यबल में कमी आ सकती है, आर्थिक गतिशीलता कम हो सकती है और सामाजिक कल्याण प्रणालियों पर बोझ बढ़ सकता है।

विकास मॉडल 

  • वाशिंगटन सहमति: अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक के अनुसार, वाशिंगटन सहमति दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए प्रमुख कारकों के रूप में मुक्त बाजार, निजीकरण और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने की वकालत करती है। 
    • विफलता या सफलता: हालांकि इस मॉडल से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है, लेकिन इससे लगातार देशों को उच्च आय की स्थिति तक पहुंचने में मदद नहीं मिली है। यह मॉडल अल्पावधि में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है, लेकिन यह राष्ट्रीय स्तर पर स्थायी धन बनाने के लिए पर्याप्त साबित नहीं हुआ है।
  • समावेशी संस्थाएँ: प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डेरॉन ऐसमोग्लू और जेम्स ए. रॉबिन्सन का तर्क है कि दीर्घकालिक विकास के लिए मज़बूत व समावेशी संस्थाएँ ज़रूरी हैं। उनका सुझाव है कि समावेशी संस्थाएँ – जैसे लोकतंत्र, कानून का शासन और स्वतंत्र न्यायपालिका – स्थापित करने से राष्ट्र के विकास में मदद मिलती है। 
    • विफलता या सफलता: हालांकि, चीन और दक्षिण कोरिया के शुरुआती वर्षों (1988 से पहले, जब यह तानाशाही के अधीन था) ऐसे विभिन्न उदाहरण दिखाते हैं कि देश प्रारंभिक चरणों में समावेशी संस्थानों के बिना भी विकास कर सकते हैं। 
    • यद्यपि यह मॉडल सुझाव देता है कि समावेशी संस्थाएं लाभदायक हैं, लेकिन यह हमेशा गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में देखी गई तीव्र विकास को ध्यान में नहीं रखता है।
  • आर्थिक राष्ट्रवाद: यह मॉडल नवोदित उद्योगों को रणनीतिक रूप से संरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करता है जब तक कि वे अपने दम पर सफल होने के लिए पर्याप्त प्रतिस्पर्धी न बन जाएं। यह उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने, घरेलू नवाचार को बढ़ावा देने और विकास का समर्थन करने के लिए रणनीतिक रूप से प्रौद्योगिकी आयात करने को प्रोत्साहित करता है। इस दृष्टिकोण में निर्यात चैंपियन विकसित करना और घरेलू प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना शामिल है।
    • सर्वश्रेष्ठ मॉडल: घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देकर और प्रतिस्पर्धात्मक लाभ हासिल करके, अल्प विकसित या निम्न मध्यम देश समय के साथ उच्च आय की स्थिति में आ सकते हैं। चीन और जापान जैसे देशों ने इस मॉडल का अनुसरण किया।

भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी गति के कारण : 

  • कमज़ोर प्रतिस्पर्धा (1991 से पहले का दौर): 1991 के आर्थिक सुधारों से पहले, भारतीय उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से काफ़ी सुरक्षा मिली हुई थी। इस सुरक्षा ने स्थानीय उद्योगों को तो सुरक्षा दी, लेकिन इससे प्रतिस्पर्धा में भी उल्लेखनीय कमी देखी गई, जिससे नवाचार और दक्षता में कमी आई। निजी क्षेत्र आर्थिक विकास को गति देने के लिए उस गति से आगे न बढ़ सका जिसकी अपेक्षा थी, जिसके परिणामस्वरूप नवाचार का स्तर कम रहा।
  • निर्यात क्षेत्रों का खराब क्रियान्वयन: जबकि भारत ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) के निर्माण के माध्यम से निर्यात को बढ़ावा दिया, इन क्षेत्रों का कार्यान्वयन अक्षम था। विशेष आर्थिक क्षेत्रों के खराब क्रियान्वयन और प्रबंधन का मतलब था कि भारत इन निर्यात केंद्रों की क्षमता का पूरा लाभ नहीं उठा सका।
  • सरकारों के बीच प्रतिस्पर्धा: चीन के विपरीत, जहाँ स्थानीय सरकारों को प्रतिस्पर्धा और नवाचार करने का अधिकार था, भारत ने शीर्ष-से-नीचे का दृष्टिकोण (Top to bottom) अपनाया जहाँ स्थानीय सरकारों के पास सीमित अधिकार थे। स्थानीय सशक्तिकरण की इस कमी ने क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं के विकास में बाधा उत्पन्न की और समग्र विकास को धीमा करने में अपना योगदान दिया।
  • अकुशल व्यवसायों को समाप्त नहीं करना : भारत में अकुशल या कम प्रदर्शन करने वाले व्यवसायों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की कोई प्रक्रिया नहीं थी। कमज़ोर व्यवसायों को हटाने या पुनर्गठन के लिए प्रभावी तंत्र के बिना, अर्थव्यवस्था गैर-प्रतिस्पर्धी क्षेत्रों के बोझ तले दब गई।
  • कमज़ोर औद्योगिक सुरक्षा और खराब क्रियान्वयन: भारत में औद्योगिक सुरक्षा उपाय कमज़ोर थे और उनका क्रियान्वयन असंगत था। मज़बूत समर्थन की कमी का मतलब था कि उद्योग अपनी पूरी क्षमता तक विकसित नहीं हो पाए और निर्यात क्षेत्रों और औद्योगिक विकास से जुड़ी नीतियों का क्रियान्वयन अक्सर अपेक्षा अनुरूप नहीं रहा।

भारत के लिए आगे की राह 

  • औद्योगिक नीति: भारत को उन उद्योगों को समर्थन देने की आवश्यकता है जिनमें वैश्विक प्रतिस्पर्धा की क्षमता है। इसके साथ ही भारत को अपने सभी अकुशल क्षेत्रों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना चाहिए। प्रमुख उद्योगों में नवाचार और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन नीतियाँ लागू की जानी चाहिए।
  • निर्यात वृद्धि: भारत को चीन और वियतनाम की तरह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विनिर्माण और सेवा दोनों क्षेत्रों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है।
  • कौशल विकास: भारत को जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के उदाहरण का अनुसरण करते हुए कौशल विकास में भारी निवेश करना चाहिए। इसमें श्रमिकों को पुनः प्रशिक्षित करना, नए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि कार्यबल के पास आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक कौशल हैं।
  • अप्रभावी नीतियों में सुधार : भारत को अप्रभावी नीतियों को ठीक करने में अधिक तत्पर होना चाहिए। नीतिगत कमियों को जल्दी से पहचानने और सुधारने की प्रणाली देश को बदलती आर्थिक स्थितियों के अनुकूल होने और प्रतिस्पर्धी बने रहने में मदद करेगी।
  • बुनियादी ढांचे में सुधार: बुनियादी ढांचे में सुधार आर्थिक विकास की कुंजी है। भारत को कनेक्टिविटी बढ़ाने, नौकरशाही बाधाओं को कम करने और व्यापार और व्यवसाय संचालन को सुगम बनाने के लिए लॉजिस्टिक्स में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

निष्कर्ष:

2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को अपनी विकास यात्रा में बाधा डालने वाली गहरी चुनौतियों का समाधान करना होगा तथा परिवर्तनकारी रणनीति की दिशा में काम करना होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत का लक्ष्य 2047 तक विकसित भारत का दर्जा प्राप्त करना है, जिसके लिए 8% या उससे अधिक की वार्षिक वृद्धि दर की आवश्यकता है। ऐतिहासिक आर्थिक वृद्धि प्रवृत्तियों और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के आलोक में इस लक्ष्य की व्यवहार्यता का विश्लेषण करें। ऐसी उच्च वृद्धि दर को बनाए रखने के लिए नीतिगत उपाय सुझाएँ। 

(15 अंक, 250 शब्द)

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