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विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025

Lokesh Pal December 17, 2025 05:15 13 0

सन्दर्भ:

विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 के अनुरूप भारत की उच्चतर शिक्षा विनियामक संरचना में सुधार लाने का प्रयास करता है, जिसमें खंडित निगरानी को एक एकीकृत, पारदर्शी तथा परिणाम-उन्मुख ढाँचे से प्रतिस्थापित किया जाएगा।

विधेयक की आवश्यकता

  • उच्चतर शिक्षा में एकाधिक विनियामक: उच्चतर शिक्षा में एक से अधिक विनियामक संस्थाएँ मौजूद हैं।
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC): सामान्य विश्वविद्यालयों के लिए 1956 में स्थापित।
    • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई): तकनीकी शिक्षा के लिए 1987 में स्थापित
    • राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE): शिक्षक शिक्षा के लिए 1993 में स्थापित।
  • अति-विनियमन का मुद्दा: विनियामकों की इस बहुलता के कारण अति-विनियमन और ‘निरीक्षक राज’ का प्रचलन हुआ।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 का दृष्टिकोण: यह विधेयक राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 के दृष्टिकोण को लागू करने के लिए प्रस्तुत किया गया है, जो “कम लेकिन कठोर विनियमन” का समर्थन करता है।
    • NEP में मूल रूप से HEC (भारत का उच्चतर शिक्षा आयोग) का प्रस्ताव था, जिसे अब विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 के तहत साकार किया जाना है।

विधेयक के तहत प्रस्तावित नई संरचना

  • विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान: प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य UGC, एआईसीटीई और एनसीटीई अधिनियमों को निरस्त करना है, तथा इन विनियामकों को विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान नामक एक एकल उच्चतर शिक्षा निकाय में समेकित करना है
  • संस्थागत संरचना: प्रस्तावित निकाय नीतिगत दिशा-निर्देश और समन्वय पर ध्यान केंद्रित करेगा, एक ही विनियामक ढाँचे के तहत तीन विशेष परिषदों से मिलकर निर्मित होगा।
    • विनियामन परिषद (विनियामक परिषद): यह प्राथमिक नियामक के रूप में कार्य करती है, जो अनुपालन,विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए मानक निर्धारण तथा कॉलेजों को डिग्री प्रदान करने के लिए अधिकृत करने हेतु उत्तरदायी है
    • मानक परिषद: यह संकाय योग्यतापाठ्यक्रम मानक और अधिगम परिणामों सहित शैक्षणिक गुणवत्ता के मानदंड निर्धारित करती है।
    • मान्यता परिषद (गुणवत्ता परिषद): एक समर्पित संस्थागत मान्यता ढाँचे के माध्यम से संस्थागत ग्रेडिंग और गुणवत्ता मूल्यांकन करती है।
  • वित्तीय शक्तियाँ: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 के अनुरूप, इस निकाय के पास अनुदान देने की शक्तियाँ नहीं होंगी, जो विनियमन और वित्तपोषण के पृथक्करण को अनिवार्य बनाती है
    • वित्त पोषण का प्रबंधन शिक्षा मंत्रालय द्वारा संचालित एक तंत्र के माध्यम से किया जाएगा।
  • संरचना एवं चयन: भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक प्रतिष्ठित अध्यक्ष की अध्यक्षता में, जिसमें तीन परिषदों के अध्यक्षों और उच्चतर शिक्षा सचिव सहित अधिकतम 12 सदस्य होते हैं
    • सदस्यों का नामांकन एक खोज-सह-चयन समिति द्वारा किया जाएगा
  • प्रवर्तन शक्तियाँ: UGC अधिनियम, 1956 की कमजोर दंड व्यवस्था को 10 लाख रुपये से लेकर 2 करोड़ रुपये तक के कठोर जुर्माने से बदलकर विनियामक शक्तियों को मजबूत करता है, जिसमें बिना मंजूरी के किसी संस्थान को संचालित करने पर ₹2 करोड़ का जुर्माना शामिल है।
  • पारदर्शिता: विधेयक में प्रौद्योगिकी आधारित एकल-खिड़की प्रणाली के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ाने का भी प्रावधान है, जिसके तहत संस्थानों को सार्वजनिक प्रकटीकरण के लिए सभी वित्तीय तथा पाठ्यक्रम संबंधी विवरण स्वयं ऑनलाइन अपलोड करने होंगे।

प्रस्तावित उच्चतर शिक्षा ढाँचे से संबंधित प्रमुख चिंताएँ

  • संघवाद संबंधी मुद्दे: यद्यपि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, विधेयक परिषद के साथ विवादों की स्थिति में केंद्र सरकार को प्राथमिकता देता है और संघ को छह महीने तक के लिए इस निकाय को निरस्त करने का अधिकार भी प्रदान करता है, जिससे राज्य की स्वायत्तता सीमित हो जाती है
  • राज्यों की सीमित भूमिका: विधेयक में राज्य उच्चतर शिक्षा परिषदों के लिए कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें राज्य प्रतिनिधित्व केवल बारी-बारी से नामांकन तक सीमित है, जिससे सहकारी संघवाद पर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
  • शुल्क विनियमन में कमी: यह ढाँचा शुल्क विनियमन पर मौन है, जिससे अनियंत्रित शुल्क वृद्धि और उच्च शिक्षा के गहन व्यवसायीकरण, विशेष रूप से निजी संस्थानों द्वारा, की आशंकाएँ पैदा होती हैं।
  • क्षेत्रीय अपवर्जन: चिकित्सा, कानूनी, कृषि और पशु चिकित्सा शिक्षा को इस ढाँचे से बाहर रखा गया है और ये राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद जैसे क्षेत्र-विशिष्ट विनियामकों के तहत जारी हैं, जिससे एक खंडित विनियामक परिदृश्य निर्मित होता है

निष्कर्ष

विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 नियमों को सरल बनाने और NEP-2020 के दृष्टिकोण को साकार करने के उद्देश्य से एक प्रमुख संरचनात्मक सुधार का प्रतिनिधित्व करता है। हालाँकि संघवाद, शुल्क विनियमन और राज्य की भागीदारी से संबंधित चिंताएँ इसकी दीर्घकालिक वैधता तथा प्रभावशीलता को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण होंगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: प्रस्तावित विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 भारत में उच्चतर शिक्षा के विनियामक ढाँचे में व्यापक परिवर्तन लाने का प्रयास करता है। भारत की उच्चतर शिक्षा प्रणाली पर इस विधेयक के संभावित प्रभावों की चर्चा कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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