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परीक्षण पद्धतियों का विकास: जीवित पशुओं के स्थान पर जैविक मॉडलों को प्राथमिकता

Lokesh Pal July 24, 2025 05:15 16 0

संदर्भ:

मनुष्य, प्रकृति की सबसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं एक प्रमुख प्रजाति होने के नाते, अन्य सभी जीवित प्राणियों के प्रति सद्भावना और सुरक्षा बढ़ाने के लिए उत्तरदायी है।

  • हालांकि इसके बावजूद, आज हम अपनी प्रयोगशालाओं में, पशुओं पर दर्दनाक परीक्षण करने में तनिक भी संकोच नही करते हैं। यह एक ऐसी प्रथा जिसे वैकल्पिक पद्धतियों में प्रगति को देखते हुए बंद किया जाना चाहिए।

परीक्षण पद्धतियों का विकास:

  • परंपरागत प्रयोगों में मनुष्यों का उपयोग: ऐतिहासिक रूप से, दवा विषाक्तता के परीक्षण सहित प्रयोग सीधे मनुष्यों पर किए जाते थे।
    • प्रायः इन उद्देश्यों के लिए गरीब, हाशिए पर पड़े लोगों और जेल में बंद कैदियों जैसी कमजोर आबादी का शोषण किया जाता था।
  • पशु परीक्षण की ओर बदलाव: वर्तमान समय में, मानव से पशु परीक्षण की ओर बदलाव मानवीय करुणा के जागरण से प्रेरित नहीं था, बल्कि सुविधा और पूर्वानुमान के लिए वैज्ञानिक तर्क से प्रेरित था
  • पशु परीक्षण के लिए वैज्ञानिक औचित्य: एक प्रमुख शोधकर्ता, ए.एल. टेटम ने कहा कि दवाओं के प्रति मानव प्रतिक्रियाएं अप्रत्याशित होती हैं, जबकि पशुओं में अधिक सुसंगत प्रतिक्रियाएं होती हैं
    • अतः इसके कारण पशु परीक्षण को व्यापक रूप से अपनाया गया, जिसने “नैतिक उदासीनता” को उजागर किया – एक उपयोगितावादी विकल्प जो नैतिक प्रतिबिंब पर प्रयोगात्मक नियंत्रण को प्राथमिकता देता है।

पशु परीक्षण की अपर्याप्तता:

  • पशु परीक्षण की वैज्ञानिक अप्रभावशीलता: हालांकि समकालीन शोध स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि पशु परीक्षण अक्सर अप्रभावी होते हैं।
  • अनुवादात्मक विश्वसनीयता का अभाव: अक्सर पशु प्रयोगों से प्राप्त परिणाम मनुष्यों में समान प्रतिक्रियाओं की गारंटी नहीं देते हैं
  • पशुओं की पीड़ा की नैतिक मान्यता: जैसा कि इन परीक्षणों के दौरान प्रकृति की एक सजीव कड़ी होने के कारण पशुओं को भी मनुष्यों की तरह ही पीड़ा का अनुभव होता है। यह मूलभूत तथ्य नैतिक दुविधा को रेखांकित करता है कि यदि परीक्षण के नाम पर उन्हें पीड़ा पहुँचाई जाती है, और परिणाम विश्वसनीय रूप से अनुवादित नहीं होते हैं, तो यह अभ्यास अक्षम्य है।

उन्नत जैविक मॉडलों को अपनाने की आवश्यकता:

  • व्यवहार्य विकल्प: हालांकि आज मानव समाज के पास ऐसे अनेक व्यवहार्य विकल्प हैं जो न केवल उपलब्ध हैं बल्कि तेजी से हम उन पर आगे भी बढ़ रहे हैं।
  • अनुसंधान में सफलताएं: ऊतक इंजीनियरिंग और पुनर्योजी चिकित्सा के क्षेत्रों ने अनुसंधान के लिए शक्तिशाली नए उपकरण प्रदान किए हैं।
    • वैज्ञानिक अब प्रयोगशाला में स्वतंत्र रूप से कृत्रिम शरीर के अंग बनाने में सफल हो रहे हैं। उदाहरण के लिए; कृत्रिम यकृत, कृत्रिम पशु मांसपेशियाँ, कृत्रिम अग्न्याशय और कृत्रिम मूत्राशय आदि
  • कृत्रिम परीक्षण के नैतिक और वैज्ञानिक लाभ: ये कृत्रिम अंग और ऊतक परीक्षण के लिए एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं
    • किसी जीवित जानवर को नई दवा देने के बजाय, उसकी सटीक प्रतिक्रिया देखने के लिए, एक कृत्रिम यकृत पर परीक्षण किया जा सकता है। यह तरीका जानवरों को कष्ट से बचा सकता है और संभावित रूप से अधिक सटीक और वास्तविक समय के प्रयोगात्मक डेटा प्रदान कर सकता है
  • वैज्ञानिक प्रतिबद्धता का आह्वान: वैज्ञानिकों और अनुसंधान संगठनों को जहां भी संभव हो, कृत्रिम कोशिकाओं, ऊतकों और अंगों का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।
    • यह प्रतिबद्धता न केवल मानव के मानवीय दृष्टिकोण को पोषित करेगी व पशु क्रूरता को रोकेगी, बल्कि ऊतक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विस्तार और नवाचार को भी गति प्रदान करेगी।

आगे की राह:

  • विधायी सुधार की आवश्यकता: अनुसंधान में कृत्रिम विकल्पों के उपयोग को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाने के लिए पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन करना महत्वपूर्ण है।
  • नैतिक अनुसंधान प्रथाओं को अनिवार्य बनाना: नए कानूनी प्रावधानों में वैज्ञानिकों और संस्थानों के लिए यह प्रावधान किया जाना चाहिए कि जहां भी संभव हो, कृत्रिम ऊतकों और अंगों को प्राथमिकता दी जाए।
  • मानसिकता में बदलाव: सामाजिक मानसिकता और नैतिक मूल मूल्यों में बदलाव ज़रूरी है। इंसानों को जानवरों के साथ भी अस्तित्व में समान भागीदार के तौर पर व्यवहार करना चाहिए।
    • उदाहरण: इस तरह का परिवर्तन शैक्षिक प्रयोगशालाओं में हुआ है, जहां कक्षाओं में जीवित जानवरों को 2D और 3D मॉडल से बदल दिया गया है

निष्कर्ष:

यद्यपि वास्तविक परिवर्तन तभी होगा जब सहानुभूति और आधुनिक वैज्ञानिक क्षमताएं ज्ञान की खोज में पशुओं को कष्ट देने की आवश्यकता को समाप्त करते हुए कृत्रिम मॉडलों की महत्ता को व्यवहार में अपनाएगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: क्या आपको लगता है कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान में पशु प्रयोग नैतिक रूप से उचित है? व्यवहार्य विकल्प प्रस्तुत करने में पुनर्योजी चिकित्सा और जैव-कृत्रिम मॉडलों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

 (15 अंक, 250 शब्द)

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