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ग्रेट निकोबार में विकास परियोजनाएँ तथा उनका समग्र पारितंत्र पर प्रभाव

Lokesh Pal October 13, 2025 05:15 13 0

सन्दर्भ:

ग्रेट निकोबार के लिए भारत की मेगा-विकास परियोजना – एक बिजली संयंत्र, टाउनशिप, ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह और हवाई अड्डा – लगभग 13,000 हेक्टेयर प्राचीन वनक्षेत्र को खतरे में डालती है, जिससे संवेदनशील पारिस्थितिकी, आदिवासी अधिकारों और जैव विविधता संबंधी चिंताओं में वृद्धि हुई है, तथा रणनीतिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के मध्य तनाव उजागर हुआ है।

ग्रेट निकोबार का पारिस्थितिक महत्त्व

  • वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एक प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट, कार्बन भंडार और जलवायु विनियामक के रूप में कार्य करता है
  • संवेदनशील पारितंत्र: अतीत में विकास मुख्य भूमि से प्रेरित रहा है, जिसमें अक्सर द्वीप-विशिष्ट पारिस्थितिक आवश्यकताओं की अनदेखी की गई है
  • रणनीतिक बनाम पर्यावरण: ग्रेट निकोबार पावर प्लांट, टाउनशिप, बंदरगाह और हवाई अड्डे जैसी बड़ी परियोजनाएँ 13,000 हेक्टेयर प्राचीन वन क्षेत्र को खतरे में डालती हैं, जिससे जैव विविधता, जनजातीय अधिकारों और जलवायु प्रभाव के संबंध में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।

जनजातीय अधिकार और विधिक उपलब्धियाँ

  • वन अधिकार अधिनियम का अनुपालन: वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के तहत जनजातीय परिषद प्रमाणीकरण वन क्षेत्र परिवर्तन से पूर्व होना चाहिए।
  • नियमगिरि हिल्स: 2013 के नियमगिरि हिल्स निर्णय ने ग्राम सभाओं को खनन परियोजनाओं को अस्वीकार करने की अनुमति दी, जिससे जनजातीय संस्कृति और सामुदायिक संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित हुई
  • निकोबार चिंता: रिपोर्टों से पता चलता है, कि परियोजना के लिए वन परिवर्तन को मंजूरी देने से पहले जनजातीय परिषद से परामर्श नहीं किया गया था।

प्रकृति और पर्यावरण के अधिकार

  • वैश्विक मॉडल: बोलीविया, कोलंबिया, इक्वाडोर और न्यूजीलैंड जैसे देश प्राकृतिक संस्थाओं को कानूनी व्यक्ति के रूप में मान्यता देते हैं तथा पारिस्थितिक संरक्षण को लागू करने के लिए संरक्षक नियुक्त करते हैं
  • जैव-सांस्कृतिक संरक्षण: कोलंबिया के अत्रातो नदी मामले (2016) ने पारितंत्र और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए स्वदेशी प्रतिनिधित्व सहित एक संरक्षकता आयोग निर्मित किया।
  • भारतीय नवाचार: उत्तराखंड उच्च न्यायालय (2017) ने नामित संरक्षकों के माध्यम से गंगा और यमुना नदियों को कानूनी व्यक्ति का दर्जा प्रदान किया।

कानूनी व्यक्तित्व का महत्त्व

  • पारिस्थितिक सुरक्षा: वनों और पारिस्थितिक तंत्रों को कानूनी व्यक्तित्व का दर्जा प्रदान करने से संरक्षण, पुनर्स्थापन और प्रबंधन के लिए संस्थागत तंत्र उपलब्ध होता है।
  • FRA एकीकरण: जनजातीय स्वायत्तता को पर्यावरण संरक्षण के साथ जोड़ता है, यह सुनिश्चित करता है कि परियोजनाएँ महत्त्वपूर्ण आवासों को नष्ट न करें।
  • संरक्षकता की भूमिका: नियुक्त निकायों को पारितंत्र की ओर से मुकदमा चलाने और जैव -सांस्कृतिक प्रबंधन को लागू करने में सक्षम बनाता है।

आगे की राह

  • FRA प्रवर्तन: वन प्रबंधन निर्णयों में जनजातीय सहमति और सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करें।
  • संरक्षकता मॉडल: उत्तराखंड की नदियों और अत्रातो नदी मामले से प्रेरित होकर प्रकृति संरक्षण को लागू करें।
  • प्रभाव आकलन: परियोजना अनुमोदन से पूर्व मजबूत पर्यावरणीय और भूकंपीय जोखिम अध्ययन आयोजित करें।
  • कानूनी स्पष्टता: सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक संस्थाओं के अधिकारों, उत्तरदायित्व और प्रवर्तन तंत्र को परिभाषित करें।

निष्कर्ष

ग्रेट निकोबार रणनीतिक विकास, जनजातीय अधिकारों और पारिस्थितिक संरक्षण के प्रतिच्छेदन का प्रतिनिधित्व करता है। जनजातीय स्वायत्तता और प्रकृति के अधिकारों का लाभ उठाकर संवेदनशील पारितंत्रों की रक्षा, सतत अवसंरचनात्मक विकास और द्वीपों की सांस्कृतिक तथा पर्यावरणीय अखंडता को संरक्षित किया जा सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: ग्रेट निकोबार में बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएँ विशाल वन क्षेत्रों और संवेदनशील पारिस्थितिकी के लिए ख़तरा हैं। ऐसी परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाले महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय और पारिस्थितिक जोखिमों पर चर्चा कीजिए। यह मामला भारत में आर्थिक विकास तथा पर्यावरणीय स्थिरता के मध्य संघर्ष को किस प्रकार प्रदर्शित करता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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