मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: विवाह के पैटर्न और विवाह में समस्याएँ, तलाक के प्रति बदलता सामाजिक दृष्टिकोण।
संदर्भः
एक मजबूत परिवार एक स्थायी समाज के लिए संजीवनी का काम करता है, लेकिन समाज अपने आप में बदलावों से गुजर रहा है और महिलाएँ अब चुपचाप पीड़ित होने के लिए तैयार नहीं हैं।
साथ ही तलाक की वर्जना भी कम होने लगी है।
सहायक उदाहरण:
भारत: हाल ही में, रांची का एक पिता अपनी परेशान बेटी को उसके ससुराल से ‘बैंड-बाजा-बारात’ के साथ घर वापस लाता है, ताकि उसे खुश किया जा सके और समाज को यह संदेश दिया जा सके कि बेटियाँ कोई बोझ नहीं होती हैं।
मॉरिटानिया (एक उत्तर-पश्चिमी अफ्रीकी देश): मीडिया के अनुसार तलाकशुदा महिलाओं का उनके माता-पिता परिवारों द्वारा बड़े समारोहों के बीच तेजी से स्वागत किया जा रहा है और उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य पूर्व के कई देश भी इसी प्रथा का पालन कर रहे हैं।
तलाकशुदा जोड़ों की समस्याओं के आधार पर भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना:
भारतीय महिलाओं के लिए अधिक परेशानी: वे सामाजिक-आर्थिक सहायता और मनोवैज्ञानिक कल्याण के संबंध में समान समस्याओं का अनुभव करती हैं।
हालाँकि, भारतीय महिलाओं को भारतीय पुरुषों की तुलना में अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और अमेरिकी महिलाओं की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
परेशानी का कारण: यह पुरुषों पर उनकी आर्थिक निर्भरता के कारण है और महिलाओं और विवाह के बारे में मौजूदा सांस्कृतिक मान्यताओं के कारण भी है, जो कर्तव्य और दायित्व का बोझ डालते हैं।
भारत में तलाक के कारण:
जिम्मेदारियों के बंटवारे में असमानता: तकनीकी प्रगति और महिलाओं की बढ़ती वित्तीय स्वतंत्रता के बावजूद, कुछ सामाजिक भूमिकाएँ अपरिवर्तित रहती हैं, और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ समान रूप से साझा नहीं की जाती हैं, जो एक साथी के लिए तनाव का कारण बन सकती हैं।
अन्य कारक:
जिनके कोई जीवित पुत्र नहीं है या कोई संतान नहीं है ।
ऐसी महिलाएँ जिनके पतियों की शिक्षा का स्तर निम्न है ।
अपेक्षाकृत संपन्न लोगों में अधिक स्थिर विवाह प्रचलित हैं, जबकि गरीब समाजों में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए पुनर्विवाह से जुड़ा कलंक बहुत कम है।
व्यावहारिक चिंताएँ जैसे कि एक विधवा/एकल पिता जो बच्चों की देखभाल की तलाश में है या एक विवाहित महिला जो हिंसक विवाह से बचना चाहती है।’
मुख्य आँकड़े:
वैश्विक सूचकांक के डेटा अनुसार: भारत में तलाक की दर सबसे कम मात्र 1 प्रतिशत है, जबकि पुर्तगाल में तलाक की दर 94 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक है।
फिनलैंड और बेल्जियम जैसे कई यूरोपीय देशों में तलाक की दर 50 प्रतिशत से अधिक है।
संयुक्त राष्ट्र के विवाह पैटर्न का अवलोकन: वयस्कों (35-39 वर्ष) के मध्य तलाक या अलगाव के दर के अनुपात में वृद्धि की सामान्य प्रवृत्ति थी।
भारत में, पिछले दो दशकों के दौरान, तलाक की दरों में 50 प्रतिशत से 60 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों और मेट्रो शहरों में और उनमें से 53 मामले 25-34 वर्ष की आयु के लोगों के थे।
आगे की राह
सौहार्दपूर्ण संबंधों की आवश्यकता: एक स्थिर घर ही प्रेम, प्रतिबद्धता और आपसी सम्मान पर आधारित सौहार्दपूर्ण वैवाहिक और पारिवारिक रिश्तों को कायम रख सकता है, जहाँ माता-पिता दोनों बच्चों के समग्र विकास और कल्याण में सकारात्मक रूप से निवेश करते हैं।
मजबूत परिवार, टिकाऊ समाज: मॉरिटानिया और विकसित दुनिया पहले ही ‘मजबूत परिवार, टिकाऊ समाज’ अभियान में शामिल हो चुके हैं। भारत को भी एक अक्षुण्ण, दो माता-पिता वाले परिवार और एक ऐसी पारिवारिक संरचना का पोषण और संरक्षण करना चाहिए जो महिलाओं के अधिकारों को कमजोर न करे।
राष्ट्र की ताकत: एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘किसी राष्ट्र की ताकत घर की अखंडता से उत्पन्न होती है’, जिसके लिए विश्वास, प्रेम और सम्मान के रिश्ते की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष:
तलाक की वर्जना कम हो रही है, जो बदलते सामाजिक मानदंडों को दर्शाता है, जहाँ महिलाएँ अब चुपचाप पीड़ित होने को तैयार नहीं हैं, लेकिन परिवार एक स्थिर समाज की आधारशिला बनी हुई है, जिसमें सामंजस्यपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने और पारिवारिक इकाई के भीतर सभी व्यक्तियों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।.
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