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भारत में पूर्व-पश्चिम का विभाजन: चिंता का विषय

Lokesh Pal March 26, 2024 05:30 150 0

संदर्भ:

भारत अपने पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों के मध्य बढ़ते आर्थिक और सामाजिक विभाजन की समस्या से जूझ रहा है। यह बढ़ता विभाजन देश की एकता और प्रगति में बाधक के रूप में है, जिस पर नीति निर्माताओं को तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एलपीजी सुधार एवं हरित क्रांति के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में बढ़ते पूर्व-पश्चिम विभाजन के कारण,  समस्या और समाधान ।

पूर्व-पश्चिम विभाजन के बारे में :

  • पश्चिमी भारत का प्रभुत्व: पश्चिमी भारत, खासकर महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्य आर्थिक विकास और सामाजिक संकेतकों के मामले में पूर्व के राज्यों से हमेशा आगे ही रहे हैं।
    • यह क्षेत्रीय असमानता चिंता का एक प्रमुख कारण है, क्योंकि इससे असंतोष पैदा हो सकता है और विभाजन बढ़ सकता है।
  • पूर्वी भारत की चुनौतियाँ: पूर्वी राज्यों, जैसे- बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश को विकास संबंधी गतिविधियों में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिनमें उच्च गरीबी स्तर, खराब बुनियादी ढाँचा और शासन से संबंधित समस्याएँ इत्यादि शामिल हैं।
    • इन समस्याओं की वजह से देश के पूर्वी राज्य,  पश्चिमी राज्यों के साथ बराबरी नहीं कर पाते हैं ।

आर्थिक योगदान और सामाजिक संकेतक

  • असमान सकल घरेलू उत्पाद योगदान: पश्चिमी भारत के राज्यों का आर्थिक उत्पादन $817 बिलियन है, जबकि पूर्वी भारत के राज्यों का योगदान केवल $465 बिलियन है, जो स्पष्ट विभाजन को दर्शाता है।
  • पिछड़ते सामाजिक संकेतक: नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) से पता चलता है कि बिहार और झारखंड जैसे पूर्वी राज्यों में गरीबी का स्तर सबसे अधिक है, जो लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

विभाजन को बढ़ावा देने वाले कारक:

  • ऐतिहासिक : ब्रिटेन से निकटता की वजह से ब्रिटिश उपनिवेशवादियों की पश्चिमी भारत को प्राथमिकता देने से  मुंबई जैसे शहरों में प्रारंभिक विकास और निवेश हुआ।
    • मुंबई को एलपीजी सुधारों से अधिक लाभ मिला क्योंकि निवेशकों ने मुंबई जैसे विकसित शहरों को प्राथमिकता दी।
  • भौगोलिक लाभ: पश्चिमी बंदरगाह अधिक विकसित हैं और अपने गहरे पानी और प्रमुख व्यापार मार्गों और साझेदारों से निकटता के कारण यहाँ से बड़ी मात्रा में आयात-निर्यात होता है।
  • विफल हरित क्रांति: 1960 के दशक में हरित क्रांति का लाभ मुख्य रूप से पश्चिमी भारत को मिला, जबकि पूर्वी भारत कृषि आधुनिकीकरण में पिछड़ गया।
  • संसाधनों का दोहन: पूर्व में खनिज-समृद्ध क्षेत्र अत्यधिक खनन और दोहन के कारण शासन की कमी और पर्यावरणीय समस्याओं से पीड़ित हैं।
    • सरकार द्वारा माल ढुलाई समानीकरण नीति अपनाई गई जिसके तहत भारत में कहीं भी कारखाना स्थापित किया जा सकता है और खनिजों के परिवहन पर केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाएगी।

जनजातीय अलगाव और जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ:

  • जनजातीय कारक: पूर्व में उच्च जनजातीय आबादी के कारण अलगाव, नक्सलवाद और अलगाववादी आंदोलनों में वृद्धि हुई है, जिससे राज्य के संसाधनों में विचलन और विकास में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • जनसांख्यिकीय असमानताएँ: पूर्व के ख़राब सामाजिक संकेतक, विशेष रूप से कम साक्षरता दर, ने कौशल सृजन में बाधा उत्पन्न की है और समृद्ध पश्चिम की ओर प्रवासन को बढ़ावा दिया है, जिससे विभाजन और बढ़ गया है।

निष्कर्ष: निष्कर्षस्वरुप यह कहा जा सकता है कि पूर्व और पश्चिम के विभाजन को कम करने के लिए न सिर्फ पूर्वी राज्यों के उत्थान और  बुनियादी ढाँचे के विकास पर ही ध्यान देने की ही आवश्यकता है बल्कि इसके लिए सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की भी आवश्यकता है।

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